IMF की मुख्य अर्थशास्त्री गीता गोपीनाथ की सलाह: अर्थव्यवस्था में पूरी रिकवरी होने तक सरकार को जारी रखनी होगी वित्तीय सहायता, ऊंची महंगाई दर पर भी बारीकी से नजर रखने की जरूरत है

IMF की मुख्य अर्थशास्त्री गीता गोपीनाथ की सलाह: अर्थव्यवस्था में पूरी रिकवरी होने तक सरकार को जारी रखनी होगी वित्तीय सहायता, ऊंची महंगाई दर पर भी बारीकी से नजर रखने की जरूरत है

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7 मिनट पहले

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IMF की मुख्य अर्थशास्त्री गीता गोपीनाथ की सलाह: अर्थव्यवस्था में पूरी रिकवरी होने तक सरकार को जारी रखनी होगी वित्तीय सहायता, ऊंची महंगाई दर पर भी बारीकी से नजर रखने की जरूरत है

आईएमएफ की मुख्य अर्थशास्त्री गीता गोपीनाथ ने दैनिक भास्कर से बातचीत से कहा कि कोविड की दूसरी लहर के झटके को देखते हुए जरूरी है कि मौद्रिक नीति के जरिए दी जा रही राहत बनी रहे।

विकसित देश राजकोषीय और मौद्रिक सहायता जारी रखे हुए हैं, वहीं विकासशील देश समर्थन वापस ले रहे हैं। पूरी रिकवरी होने तक वित्तीय सहायता जरूरी है। कोविड से प्रभावित सेक्टर्स की अच्छी फर्म्स तक लिक्विडिटी पहुंचानी होगी। आईएमएफ की मुख्य अर्थशास्त्री गीता गोपीनाथ ने दैनिक भास्कर के स्कन्द विवेक धर से बातचीत में यह बात कही। पेश है बातचीत के मुख्य अंश…

Q. महामारी के दौरान और इसके बाद सबसे बड़ी आर्थिक चुनौतियां क्या हैं?

विकसित देशों में 40 फीसदी आबादी को टीका लग गया है। उभरती अर्थव्यवस्थाओं में यह आंकड़ा 11 फीसदी और कम आय वाले विकासशील देशों में नाममात्र है। भारत सहित सभी उभरती और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में टीकाकरण में तेजी लाना सबसे बड़ी चुनौती है।

दूसरी चुनौती यह है कि देश इस अनिश्चित हालात से निपटने के लिए पॉलिसी सपोर्ट कैसे करते हैं? विकसित एवं विकासशील देशों के बीच आर्थिक प्रदर्शन में बढ़ते अंतर का कारण पॉलिसी सपोर्ट में अंतर भी है। विकसित देश जहां राजकोषीय और मौद्रिक सहायता जारी रखे हुए हैं, वहीं, उभरते और विकासशील देश सहायता वापस ले रहे हैं।

Q.इन चुनौतियों से कैसे निपटा जा सकता है?

सरकारों को राजकोषीय और मौद्रिक सहायता जारी रखनी होगी। सीमित संसाधनों वाले देशों को खर्च की प्राथमिकता में स्वास्थ्य और गरीब परिवारों की आजीविका रखनी होगी। केंद्रीय बैंकों को यह सुनिश्चित करना होगा कि लोन की शर्तें समय से पहले कड़ी न हों। कम आय वाले देशों को अंतरराष्ट्रीय वित्तीय सहायता की भी जरूरत होगी।

Q. वर्ल्ड इकोनॉमिक आउटलुक के मुताबिक, दुनियाभर में 8 करोड़ लोग अत्यधिक गरीबी में जाने वाले हैं। इसमें से भारत के कितने लोग हाेंगे?

अगर हम दो साल की अवधि (2020 और 2021) को देखें और इसकी तुलना 2019 से करें, तो अनुमान है कि तकरीबन 2.9 करोड़ भारतीय अतिगरीब हो जाएंगे। यह संख्या सामाजिक सुरक्षा जाल को मजबूत करने और सबसे कमजोर लोगों को वित्तीय सहायता बढ़ाने की तात्कालिक जरूरत को उजागर करती है।

Q.वर्ल्ड इकोनॉमिक आउटलुक में 2021 में भारत के विकास अनुमान में 3 फीसदी की भारी कमी की गई है। इसकी क्या वजह है?

वित्त वर्ष 2021-22 में जीडीपी वृद्धि दर का अनुमान घटाने की मुख्य वजह कोविड के मामलों में आया उछाल है। अप्रैल के वर्ल्ड इकोनॉमिक आउटलुक में हमने विकास अनुमानों में इस जोखिम का जिक्र किया था, जो अब सही साबित हुआ है।

Q.ऊंची महंगाई दर को देखते हुए भारतीय रिजर्व बैंक को किस तरह के कदम उठाने चाहिए?

खाद्य वस्तुओं की कीमतों में तेजी और महामारी से बिगड़ी सप्लाई चेन की वजह से महंगाई का दबाव बना हुआ है। हालांकि, कोविड की दूसरी लहर के झटके को देखते हुए जरूरी है कि मौद्रिक नीति के जरिए दी जा रही राहत बनी रहे। कोविड से प्रभावित सेक्टर्स की अच्छी फर्म्स तक लिक्विडिटी पहुंचनी चाहिए। रिजर्व बैंक का उदार मौद्रिक रुख और विभिन्न सेक्टर्स को पर्याप्त सिस्टमैटिक लिक्विडिटी पहुंचाना सही फैसला है। साथ ही, ऊंची महंगाई दर पर भी बारीकी से नजर रखने की जरूरत है।

Q.एक अर्थशास्त्री के रूप में भारत सरकार को आपकी क्या सलाह होगी?

पहली प्राथमिकता स्वास्थ्य संकट को दूर करना होनी चाहिए। इसके लिए टीकाकरण सहित एक सतत को-ऑर्डिनेटेड पॉलिसी रिस्पाॅन्स महत्वपूर्ण है। स्वास्थ्य पर खर्च एवं सबसे कमजोर समूहोंं की सहायता बढ़ाने के साथ पूरी तरह रिकवरी होने तक अतिरिक्त वित्तीय सहायता जरूरी है। मौद्रिक नीति उदार बनी रहनी चाहिए। पर्याप्त सिस्टेमैटिक लिक्विडिटी सुनिश्चित करनी चाहिए। ऐसी फर्म जो बच सकती हैं उन्हें सपोर्ट बरकरार रखना चाहिए और कर्जधारकों के लिए राहत के उपाय जारी रखे जाने चाहिए।

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