राष्ट्रीय बाल भवन के अध्यापकों की हो रही है दुर्दशा, सरकारें खामोश, राष्ट्रीय बाल भवन पर किया दर्शन
राष्ट्रीय बाल भवन के अध्यापकों की हो रही है दुर्दशा, कोई सुनवाई नहीं सरकारें खामोश
गुरु यानी अध्यापक, यानी शिक्षक, यानि राह दिखने वाले
जहाँ गुरु दिवस आने वाला वही गुरुओं की दुर्दशा देखने को मिली है जंहा सरकारें नौकरी देने के बड़े बड़े वादे कर रही है वही नौकरी कर रहे बाल भवन के अध्यापको को सम्म्मानीय सैलरी भी नहीं दी जारही है
जी हाँ राष्ट्रीय बाल भवन एक ऐसी सरकारी संस्था जिसने मासूम बच्चो का भला करने की एक मुहीम चलाई थी जिसमे बच्चो को क्रिएटिव एक्टिविटीज़ के लिए सन 1980 से लेकर अब तक लगभग 52 बाल केन्द्रो की स्थापना की है जिसमे 108 अध्यापको को इन बाल केन्द्रो पर पढ़ाने के लिए रखा था। जो अब सिर्फ 63 बचे है
सुरूआत में इनकी सैलरी सिर्फ 240 रुपये महीना हुआ करती थी। लेकिन आज भी इनकी सैलरी लगभग सिर्फ 12 हजार के आस पास ही है, जो सरकार के मिनिमम वेजिज के मुताबिक लगभग आधी है
ये वही गुरु है जो देश के बच्चो का जीवन बनाते है लेकिन , इनके तरफ सरकार आंख बाद कर लेती है क्योंकि इन अध्यापको पर टीचर होने का टैग लग जाता है इसके बाद ये कुछ और कर नहीं सकते है लेकिन फिर भी देश और मासूम बच्चों की वजह से इस कार्य में तन मन धन से लगे रहते हैं
लेकिन राष्ट्रीय बाल भवन सिर्फ बच्चों के बारे में सोचता है नाकि उनके बारे में जिन्होंने बालभवन का साथी बनकर इन बच्चों को सफल बनाने में मदद की। आज ये अध्यापक खुद एक मासूम बच्चे के तरह इन अधिकारीयों का मुँह ताक रहे हैं
इसी के चलते 31 अगस्त को राष्ट्रीय बाल भवन के गेट पर इन अध्यापकों ने शांति पूर्ण प्रदर्शन किया और अपने मन की बात कही, इनकी पीड़ा को इनसे बात कर के ही महसूस किया जा सकता है जो हमने किया
देखते है ये रिपोर्ट
तो ये थे स्वतंत्र भारत के बंधे हुए अध्यापक जो अपने हक़ की लड़ाई लड़ते लड़ते 108 से सिर्फ 63 बचे हैं
अब ऐसे में सवाल ये उठता है
क्या सरकार तक इनकी बात नहीं पहुंच रही ?
क्या देश में बच्चो को इन बाल केन्द्रो की जरूरत नहीं रही ?
इन्हे क्यों निकाला जारहा है ?
इनकी सैलरी क्यों नहीं बढ़ाई जारही है
जबकि जनसंख्या वृद्धि के साथ साथ ऐसे अध्यापको की तो और जरुरत होनी चाहिए।
अब ये सवाल है उन जन सेवकों से जो बड़े बड़े वादे करते है परन्तु जमीनी इस्तर देश को दिशा देने वाले ये अध्यापक भी परेशान हैं
ये हमारे गुरुओं की आवाज है इसे हम सब को मिलकर उठाना चाहिए