वैक्सीनेशन इसलिए जरूरी: NIV की रिसर्च में खुलासा, वैक्सीन लगवाने वालों को डेल्टा वैरिएंट से मौत का खतरा 99% तक कम

वैक्सीनेशन इसलिए जरूरी: NIV की रिसर्च में खुलासा, वैक्सीन लगवाने वालों को डेल्टा वैरिएंट से मौत का खतरा 99% तक कम

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पुणे11 मिनट पहले

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वैक्सीनेशन इसलिए जरूरी: NIV की रिसर्च में खुलासा, वैक्सीन लगवाने वालों को डेल्टा वैरिएंट से मौत का खतरा 99% तक कम

सरकार से लेकर हेल्थ वर्कर्स तक सभी वैक्सीनेशन को ही कोरोना संक्रमण के खिलाफ सबसे बड़ा हथियार मान रहे हैं। कई रिसर्च में ये साबित भी हुआ है। वैक्सीनेशन पर की गई नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी (NIV) की स्टडी में ऐसी ही कुछ जानकारी सामने आई है।

टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक वैक्सीन कोरोना के सबसे खतरनाक और तेजी से फैलने वाले डेल्टा वैरिएंट से होने वाली मौतों से 99% तक सुरक्षा मुहैया कराती है। रिसर्च के रिजल्ट से पता चला है कि वैक्सीनेशन के बाद संक्रमित होने वाले 9.8% लोगों को ही अस्पताल में भर्ती करने की जरूरत पड़ी, जबकि सिर्फ 0.4% संक्रमितों की मौत हुई। वैक्सीनेट व्यक्ति के कोरोना संक्रमित होने पर उसे ब्रेकथ्रो इंफेक्शन कहा जाता है।

ज्यादातर सैंपल्स में मिला डेल्टा वैरिएंट
वैज्ञानिकों ने ये जानने के लिए स्टडी की थी कि वैक्सीन का एक या दोनों डोज लगवाने के बाद भी लोग वायरस से क्यों संक्रमित हो रहे हैं? रिसर्च के लिए इकट्‌ठा किए गए ज्यादातर सैंपल्स में डेल्टा वैरिएंट की पुष्टी हुई। हालांकि, कुछ केस अल्फा, कप्पा और डेल्टा प्लस वैरिएंट के भी मिले। NIV की ये स्टडी जल्द प्रकाशित होने वाली है।

सबसे ज्यादा 181 सैंपल कर्नाटक तो सबसे कम 10 बंगाल के
NIV की स्टडी में सामने आया है कि डेल्टा वैरिएंट का पहला केस अक्टूबर 2020 में महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र में मिला था। कोरोना की दूसरी लहर के लिए इस वैरिएंट को ही जिम्मेदार माना जाता है। स्टडी के लिए 53 सैंपल महाराष्ट्र से मार्च और जून के बीच लिए गए थे। सबसे ज्यादा 181 सैंपल कर्नाटक और सबसे कम 10 पश्चिम बंगाल से लिए गए। वायरस के वैरिएंट का पता लगाने के लिए इन सैंपल्स की जेनेटिक सिक्वेंसिंग भी की गई।

ज्यादातर युवाओं के सैंपल लिए, इनमें 65.1% पुरुष
स्टडी के लिए ज्यादातर 31 से 56 साल के लोगों के सैंपल लिए गए थे। इसमें 65.1% पुरुष थे। 71% मरीजों में संक्रमण के लक्षण ज्यादा थे। 69% को बुखार (समान्य लक्षण) था। 56% संक्रमितों को सिरदर्द और उल्टी के लक्षण थे। 45% को कफ और 37% को गले में दर्द की समस्या थी।

वैक्सीन की दूसरी डोज क्यों जरूरी है?
दूसरी लहर में हमने कोरोना की भयावहता को देखा। इसमें पता चला कि ये महामारी कितनी घातक हो सकती है इसका अंदाजा लगाना भी मुश्किल है, लेकिन इसके साथ ही इसने हमें तीसरी लहर से निपटने के बेहतर तरीके भी बताए।

कोरोना के संक्रमण से बचने का वैक्सीनेशन ही एकमात्र रास्ता है। उसमें भी वैक्सीन का दूसरा डोज सबसे अहम है। जब तक आप दोनों डोज नहीं लगवा लेते आप संक्रमण के खतरे से पूरी तरह दूर नहीं हुए हैं।

देश में कोरोना की तीनों वैक्सीन डबल डोज वैक्सीन हैं। ऐसे में अगर आपने वैक्सीन का एक डोज ले लिया है तो हर हाल में दूसरा डोज जरूर लें। कोवीशील्ड का दूसरा डोज पहले डोज के 12 हफ्ते बाद लगेगा। अगर आपने वैक्सीन का पहला डोज कोवैक्सिन का लिया है तो आप 4 से 6 हफ्ते के बीच दूसरा डोज लगवा सकते हैं।

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