आज का इतिहास: लैब में बनी दुनिया की पहली भेड़ डॉली का जन्म हुआ; इसका नाम अमेरिकी सिंगर के नाम पर रखा गया था

आज का इतिहास: लैब में बनी दुनिया की पहली भेड़ डॉली का जन्म हुआ; इसका नाम अमेरिकी सिंगर के नाम पर रखा गया था

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23 मिनट पहले

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आज एक ऐसी भेड़ का जन्मदिन है जो लैब में पैदा हुई थी। वैज्ञानिकों ने इस भेड़ को क्लोनिंग के जरिए बनाया था। इस तरह पैदा होने वाली ये दुनिया की पहली प्रजाति थी। इस सफलता ने वैज्ञानिकों को उत्साह से भर दिया और इसके बाद अलग-अलग प्रजातियों की क्लोनिंग की गई।

कई सालों से वैज्ञानिक क्लोन बनाने की कोशिश में जुटे थे, लेकिन सफल नहीं हो सके। दरअसल क्लोनिंग एक बेहद जटिल प्रक्रिया होती है और इससे पहले वैज्ञानिक कई बार ऐसा करने की कोशिश कर चुके थे लेकिन सफलता नहीं मिली थी। अबकी बार वैज्ञानिकों ने एक भेड़ का क्लोन बनाने की सोचा। इस पूरे प्रोजेक्ट की जिम्मेदारी मिली रोजलिन इंस्टीट्यूट के सर इयन विल्मट को। ये प्रोजेक्ट इतना अहम था कि सर विल्मट ने अपनी टीम में अलग-अलग वैज्ञानिकों, एम्ब्रोयोलोजिस्ट, वेटनरी डॉक्टर और स्टाफ को शामिल किया और पूरा प्रोजेक्ट बेहद गोपनीय रखा गया।

एक सफेद भेड़ के शरीर में से बॉडी सेल निकाली गई और एक दूसरी भेड़ के शरीर में से एग सेल निकाली गई। इन दोनों सेल को न्यूक्लियर ट्रांसफर के जरिए फ्यूजन करवाया गया और एक तीसरी भेड़ के गर्भाशय में डाला गया। तीसरी भेड़ की भूमिका बस इस बच्चे को अपने पेट में पालने की थी बिल्कुल एक सरोगेट मदर की तरह।

अपनी सरोगेट मदर के साथ डॉली।

अपनी सरोगेट मदर के साथ डॉली।

वैज्ञानिकों की मेहनत रंग लाई और आज ही के दिन 1996 में भेड़ का जन्म हुआ। वैज्ञानिक जगत के लिए ये एक बड़ी उपलब्धि थी। कहा जाता है कि भेड़ का नाम ‘डॉली’ अमेरिकी सिंगर और एक्ट्रेस डॉली पार्टन के नाम पर रखा गया था। इसकी वजह ये थी कि डॉली पार्टन काफी हष्ट-पुष्ट थीं और क्लोन से जो भेड़ पैदा हुई थी, वो भी उनकी तरह ही थी।

ये भेड़ पैदा तो हो गई थी, लेकिन अभी तक दुनिया की नजरों से दूर थी। इसे 7 महीने बाद 22 फरवरी 1997 को दुनिया के सामने लाया गया। जब दुनिया को इस बात की खबर लगी तो डॉली रातोंरात स्टार बन गई। भेड़ में डॉली के बारे में पता लगाने के लिए दुनियाभर से 3 हजार से भी ज्यादा फोन आए।

डॉली ने 2 साल की उम्र में अपने पहले मेमने को जन्म दिया जिसका नाम बोनी रखा गया। उसके बाद डॉली ने एक बार जुड़वां और एक बार ट्रिपलेट को जन्म दिया। सितंबर 2000 में जब डॉली ने अपने आखिरी मेमने को जन्म दिया तब पता चला कि डॉली को लंग कैंसर और अर्थराइटिस है। डॉली लंगड़ा कर चलने लगी और उसकी सेहत धीरे-धीरे गिरती गई।

जब डॉली की तकलीफें बढ़ने लगीं तो वैज्ञानिकों ने डॉली को मारने का फैसला लिया ताकि उसे तकलीफ भरी जिंदगी से छुटकारा मिल सके। 14 फरवरी 2003 को डॉली को युथ्नेशिया (इच्छामृत्यु) से मार दिया गया।

डॉली वैज्ञानिक जगत के लिए एक करिश्मा थी लिहाजा रोजलिन इंस्टीट्यूट ने डॉली के शव को नेशनल म्यूजियम ऑफ स्कॉटलैंड को डोनेट कर दिया। आप आज भी डॉली को इस म्यूजियम में देख सकते हैं।

डॉली की सफल क्लोनिंग के बाद वैज्ञानिकों के लिए दूसरों जानवरों की क्लोनिंग के रास्ते खुल गए। बाद में सूअर, घोड़े, हिरण और बैलों के क्लोन भी बनाए गए। इंसानों के क्लोन भी बनाने की कोशिश की गई लेकिन इंसानों की जटिल बनावट की वजह से ये प्रोजेक्ट सफल नहीं हो सका।

दुनियाभर के वैज्ञानिक जानवरों की लुप्त हो रही प्रजातियों को बचाने के लिए भी क्लोनिंग का इस्तेमाल करते हैं। वैज्ञानिकों ने जंगली बकरी की खत्म हो चुकी प्रजाति को बचाने के लिए एक बार उसका क्लोन बनाया था मगर उस क्लोन की मौत भी लंग की बीमारी से हो गई थी।

1946: दुनिया के सामने आई थी बिकनी

आज ही के दिन 1946 में पहली बार दुनिया ने किसी मॉडल को बिकनी पहने देखा था। इस बिकनी को मैकेनिकल इंजीनियर लुईस रिअर्ड ने डिजाइन किया था। लुईस की मां की कपड़ों की दुकान थी, इसी वजह से कभी-कभी वे भी अपनी मां के कामों में हाथ बंटाते थे।

दरअसल बिकनी किसने बनाई इसको लेकर भी मतभेद हैं। मई 1946 में फ्रांस के फैशन डिजाइनर जैक हैम ने ‘एटम’ नाम से एक गारमेंट बनाया था जिसे लेकर उनका दावा था कि ये दुनिया का सबसे छोटा स्विमसूट है। उन्होंने पदार्थ की सबसे छोटी इकाई एटम के नाम पर इस गारमेंट को एटम नाम दिया था।

जैक हैम द्वारा बनाई गई बिकनी। इसे उन्होंने एटम नाम दिया था।

जैक हैम द्वारा बनाई गई बिकनी। इसे उन्होंने एटम नाम दिया था।

लेकिन 5 जुलाई 1946 को लुईस रिअर्ड ने मॉडर्न बिकनी को पेश किया। उन्होंने बिकनी के बारे में बताते हुए कहा कि ये दुनिया के सबसे छोटे स्विमसूट से भी छोटी है। बिकनी को बिकनी नाम दिए जाने के पीछे भी एक वजह है। दरअसल प्रशांत महासागर में मार्शल आइलैंड पर बिकनी एटोल नाम से एक जगह है। 1946 से 1958 के दौरान अमेरिका ने यहां कई न्यूक्लियर टेस्ट किए थे। लुईस को इसी वजह से इस जगह का नाम याद था और उन्होंने अपने गारमेंट को बिकनी नाम दिया।

लुईस ने बिकनी बना तो ली थी, लेकिन एक बड़ी समस्या इसे पेश करने के लिए मॉडल ढूंढने की थी। दरअसल उस समय कोई भी मॉडल इतने कम कपड़े पहनकर लोगों के सामने आने को तैयार नहीं थी। लुईस ने इसके लिए कई मॉडल से बात की लेकिन सभी ने बिकनी पहनने से मना कर दिया। आखिरकार 19 साल की मिशलिन बर्नार्डिनी इस काम के लिए तैयार हुईं। मिशलिन एक क्लब में डांसर थीं और उन्हें बिकनी पहनने में कोई परेशानी नहीं थी।

कहा जाता है कि बिकनी फोटोशूट के बाद मिशलिन इतनी फेमस हुईं कि उनके फैंस ने उन्हें 50 हजार लेटर लिखे।

5 जुलाई के दिन को इतिहास में और किन-किन महत्वपूर्ण घटनाओं की वजह से याद किया जाता है…

2013: इराक की राजधानी बगदाद के एक मस्जिद पर हुए बम हमले में 15 लोगों की मौत।

1954: बीबीसी ने पहले टेलीविजन न्यूज बुलेटिन का प्रसारण किया। इसकी अवधि 20 मिनट थी और इसे पहले से बनाकर तैयार किया गया था।

1952: लंदन में आखिरी बार ट्राम चलाई गई।

1687: न्यूटन के प्रिंसिपिया को रॉयल सोसायटी ऑफ इंग्लैंड ने पब्लिश किया। इसमें लॉ ऑफ मोशन और गुरुत्वाकर्षण के बारे में जानकारी थी।

खबरें और भी हैं…

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