MP के राज्यपाल मंगु भाई की सलाह: सिकलसेल पीड़ित कपल बच्चा पैदा न करें, गर्भ की जांच कराकर अबॉर्शन करा लें
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भोपाल2 घंटे पहले
मध्यप्रदेश मानव अधिकार आयोग के एक कार्यक्रम में राज्यपाल मंगुभाई पटेल ने सिकलसेल बीमारी को लेकर सलाह दी है। उन्होंने अबॉर्शन को इस बीमारी का इलाज बता दिया है। सिकलसेल पीड़ित दंपतियों को बच्चे नहीं पैदा करने के लिए कहा है।
उन्होंने कहा- जो लड़का-लड़की (दोनों) सिकलसेल बीमारी से ग्रस्त हैं, वे आपस में शादी कतई ना करें। अन्यथा उनकी संतान भी बीमारी लेकर पैदा होगी। उनका जीवन भी कम ही रहेगा। मां के गर्भ के समय ही जांच हो जाए तो उसका यही इलाज है कि मां-बाप को समझाकर अबॉर्शन करा दें। बच्चे का जन्म ही नहीं हो। राज्यपाल यहां शुक्रवार को बाल पोषण पर अपनी बात रख रहे थे।
अच्छी लड़की है, पैसे वाला लड़का है, पर सिकलसेल है तो शादी मत करना
प्रशासन अकादमी में हुए कार्यक्रम में राज्यपाल ने कहा, सिकलसेल बीमारी बहुत खतरनाक है। हम कॉलेज में जाकर युवाओं को समझाते हैं कि कितनी भी अच्छी लड़की हो, कितना भी पैसे वाला लड़का हो, अगर दोनों को सिकलसेल है तो आपस में शादी मत करना। गुजरात में हम ट्राइबल में बोलते थे, किसी के पास सिकलसेल वाला यलो कार्ड है तो उससे शादी मत करना। दोनों यलो कार्ड वालों की शादी हुई तो उनसे जो बच्चा आएगा, वह सिकलसेल वाला ही आएगा।
राज्यपाल ने कहा कि मैंने बीमार बच्चों को प्रत्यक्ष रूप से देखा है। मेरे करीबी के दो बच्चों को मैंने ऐसा होते देखा है। तीन दिन की बुखार में बच्ची चली गई। फिर 14 साल की बच्ची भी चली गई। मैंने उस दौरान ही सिकलसेल को लेकर प्रयास शुरू किया। इसका कुछ न कुछ इलाज हो। वहां मंत्री रहने के दौरान इसे लेकर दवा व जांच शुरू की गई।
मध्यप्रदेश में भी देखा कि 1.75 करोड़ ट्राइबल हैं। यहां भी इसे लेकर प्रयत्न कर रहे हैं। इसे लेकर मुख्यमंत्री से बात भी हुई। मां के गर्भ में ही बच्चे का इलाज हो तो ही फायदा है। नहीं तो बाद में इलाज का कोई मतलब नहीं। आगे जाकर कितना भी अच्छा खिलाओ, उसका भी कुछ असर नहीं होता है।
डॉक्टर भी अबॉर्शन के लिए नहीं कह सकते, जेनेटिक बीमारी है : एक्सपर्ट
सिकलसेल एक जेनेटिक बीमारी है। यह ब्लड से जुड़ी बीमारी है। माता-पिता दोनों सिकलसेल पीड़ित हैं तो उनसे पैदा होने वाले बच्चे को भी हो सकती है। इसका इलाज है, लेकिन वह परमानेंट नहीं है। गर्भ के समय जांच में अगर बच्चे में इस बीमारी की पहचान हाे जाए तो इलाज जारी रख सकते हैं।
ऐसे युवक-युवतियों की जेनेटिक काउंसिलिंग करते हैं। मेडिकली तौर पर कोई भी डॉक्टर माता-पिता के सिकलसेल पीड़ित होने पर गर्भ में पल रहे बच्चे के अबॉर्शन के लिए नहीं कह सकता है। वह बच्चा जन्म के बाद कितने समय तक रहता है, यह बीमारी पर निर्भर करता है।
डॉ. नितिन नागरकर, भोपाल और रायपुर एम्स के डायरेक्टर
सिकलसेल में रेड ब्लड सेल बनने बंद हो जाते हैं
यह एक जेनेटिक बीमारी है। डॉक्टरों के अनुसार इसमें शरीर में पाई जाने वाली लाल रक्त कणिकाएं गोलाकार होती हैं, लेकिन बाद में वह हंसिए की तरह बन जाती है। वह धमनियों में अवरोध उत्पन्न करती हैं। इससे शरीर में हीमोग्लोबिन व खून की कमी होने लगती है। रोगी के शरीर में रेड ब्लड सेल बनने बंद हो जाते हैं। शरीर में खून की कमी आ जाती है। बार-बार खून चढ़ाना पड़ता है।
रंग पीला पड़ जाता है। सिकलसेल का पूर्ण रूप से उपचार संभव नहीं है, मगर दवा के सेवन व खानपान में सावधानी बरतकर इस बीमारी के साथ भी रोगी जी सकता है। हालांकि, स्वस्थ व्यक्ति से इनकी आयु कम ही होती है।
जनजातीय समुदाय में अधिकतर यह मामले पाए जाते हैं। इसके अलावा कुछ अन्य समुदाय व पिछड़े वर्ग में यह बीमारी आनुवांशिक तौर पर पाई गई है। इसकी जागरूकता को लेकर हर साल 19 जून को विश्व सिकलसेल दिवस मनाया जाता है।
सिकलसेल प्रभावित प्रदेश के 22 जिले
आलीराजपुर, अनूपपुर, बालाघाट, बड़वानी, बैतूल, बुरहानपुर, छिंदवाड़ा, धार, डिंडोरी, होशंगाबाद, जबलपुर, झाबुआ, खंडवा, खरगोन, मंडला, रतलाम, सिवनी, शहडोल, शिवपुरी, सीधी, सिंगरौली और उमरिया।
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