विक-कैट वेडिंग: शादी के बाद 700 सीढ़ियां चढ़कर चौथ माता के मंदिर में दर्शन के लिए जाएंगे विक्की-कटरीना, ​​​​​​​9 दिसंबर को लेंगे सात फेरे

विक-कैट वेडिंग: शादी के बाद 700 सीढ़ियां चढ़कर चौथ माता के मंदिर में दर्शन के लिए जाएंगे विक्की-कटरीना, ​​​​​​​9 दिसंबर को लेंगे सात फेरे

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राजस्थान31 मिनट पहलेलेखक: राजेश गाबा

विक्की कौशल और कटरीना कैफ 7 से 9 दिसंबर के बीच राजस्थान में शादी करने वाले हैं। इस शादी को शाही बनाने के लिए सवाई माधोपुर के चौथ का बरवाड़ा की सिक्स सेंसेस होटल में लगभग सभी तैयारियां पूरी कर ली गई हैं। दैनिक भास्कर इस हाईप्रोफाइल वैडिंग की ग्राउंड रिपोर्ट आप तक लेकर आ रहा है। अब तक मिल रही जानकारी के मुताबिक, शादी के बाद विक्की और कटरीना चौथ माता के मंदिर में आशीर्वाद लेने जाएंगे।

चौथ माता हिंदू धर्म की प्रमुख देवी मानी जाती है। वह माता पार्वती का एक रूप है। चौथ माता का एक सबसे प्राचीन मंदिर राजस्थान के सवाई माधोपुर के चौथ का बरवाड़ा गांव में अरावली पहाड़ की एक चोटी पर है। इस मंदिर की स्थापना 1451 में राजा भीम सिंह ने की थी। 568 साल पुराना यह मंदिर 1000 फीट की ऊंचाई पर बना है। इसके दर्शन के लिए भक्तों को 700 सीढ़ियों चढ़नी होती है।

568 साल पुराना चौथ माता का यह मंदिर 1000 फीट की ऊंचाई पर बना है

568 साल पुराना चौथ माता का यह मंदिर 1000 फीट की ऊंचाई पर बना है

इस मंदिर में सुहागिनें अपने पति की रक्षा के लिए प्रार्थना करती हैं। चौथ माता की पूजा करने से अखंड सौभाग्य का वरदान मिलता है और दाम्पत्य जीवन में भी सुख बढ़ता है। आसपास के गांवों में शादी के बाद नवविवाहित जोड़ा मां के दरबार में जाकर आशीर्वाद लेता है।

ऐसी मान्यता है कि चौथ माता के दर्शन और आशीर्वाद के बगैर विवाह की रस्म को पूरा नहीं माना जाता। इस मंदिर से कुछ ही दूरी पर सिक्स सेंसेस फोर्ट है, जहां विक्की और कटरीना शादी के बंधन में बंधने जा रहे हैं।

शादी के बाद नवविवाहित जोड़ा मां के दरबार में हाजिरी लगाकर उनका आशीर्वाद लेते हैं

शादी के बाद नवविवाहित जोड़ा मां के दरबार में हाजिरी लगाकर उनका आशीर्वाद लेते हैं

मंदिर में जल रही है अखंड ज्योति
हाड़ौती क्षेत्र के लोग हर शुभ काम से पहले चौथ माता को निमंत्रण देते हैं। प्रगाढ़ आस्था के कारण बूंदी राजघराने के समय से ही उन्हें कुल देवी के रूप में पूजा जाता है। माता के नाम पर कोटा में चौथ माता बाजार भी है। मान्यता है कि माता सभी की इच्छा पूरी करती हैं। मंदिर में सैकड़ों साल से अखंड ज्योति जल रही है। इसके जलते रहने का रहस्य आज तक कोई नहीं समझ पाया है।

चौथ माता के आशीर्वाद के बिना विवाह पूरा नहीं माना जाता
चौथ माता मंदिर के पुजारी पंडित मनोज सैनी ने बताया कि आसपास के क्षेत्र में जिनके घर में कोई शुभ काम होता है, वे सभी माता का आशीर्वाद लेने आते हैं। खासतौर पर शादी के बाद माता के दर्शन करना और आशीर्वाद लेना जरूरी होता है। मान्यता है कि यहां सुहागिनों को अखंड सौभाग्यवती का आशीर्वाद मिलता है। हमारे गांव में विक्की कौशल और कैटरीना कैफ की शादी हो रही है। अब तक उनके परिवार से मंदिर में कोई नहीं आया। लेकिन हमें उम्मीद है कि यहां कोई भी शुभ कार्य या विवाह होता है, दर्शन करने के लिए जरूर आते हैं। उन दोनों को भी जरूर आना चाहिए, तभी विवाह पूरा माना जाएगा।

चौथ माता का मंदिर सवाई माधोपुर के चौथ का बरवाड़ा गांव में अरावली पहाड़ की एक चोटी पर स्थित है।

चौथ माता का मंदिर सवाई माधोपुर के चौथ का बरवाड़ा गांव में अरावली पहाड़ की एक चोटी पर स्थित है।

मंदिर के बनने की कहानी
इस मंदिर की स्थापना राजा भीम सिंह ने कराई थी। मान्यता है देवी चौरू माता ने सपने में राजा भीमसिंह चौहान को दर्शन देकर यहां अपना मंदिर बनवाने का आदेश दिया था। राजा एक बार बरवाड़ा से शाम को शिकार पर निकल रहे थे, तभी उनकी रानी रत्नावली ने उन्हें रोका। मगर, भीमसिंह ने यह कहकर बात को टाल दिया कि चौहान एक बार सवार होने के बाद शिकार करके ही नीचे उतरते हैं। इस तरह रानी की बात को अनसुना करके भीमसिंह अपने कुछ सैनिकों के साथ घनघोर जंगलों की तरफ चले गए।

शाम ढलते उन्हें वहां एक मृग दिखा, सभी उस मृग का पीछा करने लगे। कुछ देर में रात हो गई। रात होने के बावजूद भीमसिंह मृग का पीछा करते रहे। धीरे-धीरे मृग भीमसिंह की नजरों से ओझल हो गया। तब तक साथ के सैनिक भी राजा से रास्ता भटक चुके थे। अकेले में राजा विचलित हो उठा। काफी खोजने के बाद भी पीने को पानी नहीं मिला। इससे वह मूर्छित होकर जंगलों में ही गिर पड़े। तब अचेतावस्था में भीमसिंह को पचाला तलहटी में चौरू माता की प्रतिमा दिखने लगी। कुछ देर बाद उन्होंने देखा कि भयंकर बारिश होने लगी और बिजली कड़कने लगी। मूर्छा टूटने पर राजा को अपने चारों तरफ पानी ही पानी नजर आया।

राजा ने पहले पानी पिया। फिर वहीं अंधकार भरी रात में एक कांतिवान बालिका पर उनकी नजर पड़ी। वह कन्या खेलती नजर आई। राजा ने पूछा कि तुम इस जंगल में अकेली क्या कर रही हो? तुम्हारे मां-बाप कहां पर हैं।’ कन्या ने तोतली वाणी में कहा कि ‘हे राजन तुम यह बताओ कि तुम्हारी प्यास बुझी या नहीं।’ इतना कहकर वह कन्या अपने असली देवी रूप में आ गई। तब राजा उनके चरणों में गिर पड़ा। बोला कि, ”हे आदिशक्ति महामाया! मुझे आप से कुछ नहीं चाहिए, अगर आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो हमारे प्रांत में ही हमेशा निवास करें।’ तब ‘ऐसा ही होगा’ कहकर, वह देवी अदृश्य हो गईं।

राजा को वहां चौथ माता की एक प्रतिमा मिली। उसी चौथ माता की प्रतिमा को लेकर राजा बरवाड़ा की ओर लौट पड़ा। बरवाड़ा आते ही राजा ने राज्य में पूरा हाल कह सुनाया। तब पुरोहितों की सलाह पर संवत् 1451 में बरवाड़ा की पहाड़ की चोटी पर, माघ कृष्ण चतुर्थी को विधि विधान से उस प्रतिमा को मंदिर में स्थापित कराया। ऐसा कहा जाता है कि तब से आज तक इसी दिन यहां चौथ माता का मेला लगता है। करवा चौथ के पर्व के मौके पर कई राज्यों से लाखों की तादाद में भक्त मंदिर दर्शन के लिए आते हैं।

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