संसद कूच करेंगे या घर वापसी: शनिवार को सिंघु बॉर्डर पर संयुक्त किसान मोर्चा की बैठक में फैसला; मोदी सरकार से चौकन्ना रहने की जरूरत
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बहादुरगढ़10 घंटे पहले
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टीकरी बॉर्डर पर किसानों को संबोधित करते बलबीर राजेवाल।
नए खेती कानूनों को वापसी के बाद किसान 29 को संसद कूच करेंगे या फिर घर वापसी, इसका फैसला शनिवार को सिंघु बॉर्डर पर होने वाली संयुक्त किसान मोर्चा (SKM) की बैठक में होगा। आंदोलन के लिए अहम मानी जा रही बैठक में तमाम बड़े किसान नेता जुटेंगे। इसकी जानकारी शुक्रवार शाम कानून वापसी के जश्न में शरीक होने टीकरी बॉर्डर पहुंचे किसान नेता बलबीर राजेवाल ने दी।
बलबीर राजेवाल ने कहा कि एक साल चला संघर्ष का मोर्चा फतेह हो गया है। किसान जश्न मना रहे हैं। ढोल-ढमाके बज रहे हैं और मिठाई बंट रही हैं। उन्होंने कहा कि यह किसानों के संघर्ष की जीत है, इसने नया कीर्तिमान स्थापित किया। उन्होंने कहा कि 29 नवंबर को सिंघु और टीकरी बॉर्डर से 500-500 किसानों के साथ संसद भवन तक ट्रैक्टर मार्च का फैसला पहले की तरह ही है। घर वापसी के सवाल पर बलबीर राजेवाल ने कहा कि इसका निर्णय शनिवार को सिंघु बॉर्डर पर होने वाली बैठक में लिया जाएगा।
किसान नेता बलबीर राजेवाल।
राजेवाल ने कहा कि मोदी सरकार से चौकस रहने की जरूरत है। कहीं फिर से किसी रास्ते वापस कानून ना ले आए। राजेवाल ने कहा कि किसानों का यह आंदोलन इतिहास में हमेशा याद किया जाएगा कि किस तरह किसानों ने सर्दी-गर्मी, बारिश, धूप और पुलिस की लाठियां के अलावा सरकार की तानाशाही को झेलते हुए इतना लंबा संघर्ष किया। उन्होंने कहा कि दिल्ली की पक्के मोर्चे बंदी और किसानों की सख्त पहरेदारी इस जीत की अहम कड़ी है। उन्होंने कहा कि देश याद रखेगा कि किस तरह आंदोलन के बीच किसानों ने अपनी जान गंवाई। उन्होंने कहा कि कानून वापसी की मांग पूरी हो चुकी है। इसलिए ही जश्न मन रहा है, लेकिन अभी MSP पर गारंटी कानून और कुछ अन्य मांगें बची हैं, इसे लेकर बैठक में चर्चा होगी।
बॉर्डर पर सुबह से चल रहा कार्यक्रम
एक तरफ आंदोलन के एक साल पूरा होने पर शुक्रवार को भारतीय किसान यूनियन एकता (उग्राहां) ने बहादुरगढ़ के सेक्टर-13 में बड़ी महापंचायत कर किसानों की ताकत का शक्ति प्रदर्शन किया। वहीं दूसरी ओर टीकरी बॉर्डर पर चल रहे पक्के मोर्चे पर कानून वापसी का किसानों ने जश्न मनाया। टीकरी बॉर्डर के मुख्य धरना स्थल पर पिछले एक सप्ताह के मुकाबले किसानों की दोगुना से ज्यादा भीड़ नजर आई। पंजाब ही नहीं, बल्कि हरियाणा के भी विभिन्न जिलों से किसान पहुंचे हैं। पूरे दिन मंच से एक साल चले संघर्ष की कहानी बताई गई। उन किसानों को भी याद किया गया, जिन्होंने आंदोलन के बीच जान गंवाई।
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