देशमुख मामले में दो बड़े अधिकारियों को समन का मामला: खुद तोता कहलाने वाली सीबीआई ने अदालत में कहा- पुलिस किसी जमींदारी व्यवस्था का हिस्सा नहीं
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मुंबई38 मिनट पहले
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सेंट्रल ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेशन(CBI) ने बॉम्बे हाईकोर्ट से कहा कि राज्य का पुलिस बल एक स्वतंत्र संस्था है।
अनिल देशमुख मामले में सोमवार को महाराष्ट्र सरकार को सोमवार को बड़ा झटका लगा है। बॉम्बे हाईकोर्ट ने 100 करोड़ की वसूली मामले में मुख्य सचिव सीताराम कुंटे और वर्तमान DGP संजय पांडेय के समन को रद्द करने से इनकार कर दिया। मामले की सुनवाई के दौरान सेंट्रल ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेशन(CBI) ने बॉम्बे हाईकोर्ट से कहा कि राज्य का पुलिस बल एक स्वतंत्र संस्था है, जिसके कार्यपालिका के नियंत्रण से मुक्त होने और किसी ‘‘ज़मींदारी व्यवस्था’’ का हिस्सा नहीं होने की उम्मीद की जाती है।
सीबीआई ने न्यायमूर्ति नितिन जामदार और न्यायमूर्ति एस वी कोतवाल की पीठ के समक्ष कहा कि महाराष्ट्र सरकार को अदालत का दरवाजा खटखटाने और राज्य के दो सबसे प्रमुख अधिकारियों को पूर्व गृह मंत्री अनिल देशमुख के खिलाफ जबरन वसूली की जांच से संबंधित मामले में जारी समन को रद्द करने का अनुरोध करने का कोई अधिकार नहीं है।
सीबीआई ने कहा-यह राज्य सरकार द्वारा जांच में हस्तक्षेप का प्रयास
अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल अमन लेखी ने कहा कि महाराष्ट्र सरकार द्वारा यह कहना गलत है कि सीबीआई द्वारा उनके डीजीपी को समन जारी किये जाने से पूरे पुलिस बल का मनोबल गिर रहा है। कानून के अनुसार, पुलिस बल को संस्थागत रूप दिया गया है और यह किसी ‘‘जमींदारी व्यवस्था’’ का हिस्सा नहीं है। लेखी ने आगे कहा कि राज्य की याचिका पूरी तरह से गलत है और देशमुख के खिलाफ सीबीआई की जांच में हस्तक्षेप करने का प्रयास है।
राज्य सरकार ने कहा-गलत नियम का इस्तेमाल कर रही सीबीआई
महाराष्ट्र सरकार के वकील डेरियस खंबाटा ने अदालत के सामने सीबीआई के समन का विरोध करते हुए कहा कि राज्य ने मामले में बॉम्बे का दरवाजा खटखटाकर सही किया, क्योंकि मुख्य सचिव और उसके सबसे वरिष्ठ पुलिस अधिकारी को सीबीआई का समन पूरे पुलिस बल का मनोबल गिरा रहा है। खंबाटा ने कहा कि राज्य कानून के एक प्रावधान ‘पैरेंस पैट्री अधिकार क्षेत्र’ का इस्तेमाल कर रहा है जो किसी नाबालिग, दिव्यांग या अदालत का रुख करने की स्थिति में नहीं किसी व्यक्ति के परिजन, कानूनी अभिभावक या मित्र को अदालत जाने की अनुमति देता है।
यह राज्य सरकार की हताशा को दर्शाता है: सीबीआई
लेखी ने हालांकि कहा, ‘‘पैरेंस पैट्री का सवाल ही नहीं उठता। हम एक आपराधिक मामले में दोष से निपट रहे हैं और किसी आपराधिक कानून में, केंद्रीय एजेंसी की जांच को रोकने के लिए पैरेंस पैट्री के सिद्धांत को लागू नहीं किया जा सकता है।’’ उन्होंने सवाल किया, ‘‘यह राज्य की हताशा को दर्शाता है। डीजीपी और मुख्य सचिव किस श्रेणी में आते हैं – नाबालिग, विक्षिप्त, दिव्यांग?’’
लेखी ने कहा कि मौजूदा मामले में राज्य सरकार के किसी मौलिक अधिकार का हनन नहीं किया जा रहा है। उन्होंने दावा किया कि राज्य सरकार की असली मंशा मुंबई के पूर्व पुलिस आयुक्त परमबीर सिंह द्वारा देशमुख के खिलाफ जबरन वसूली के आरोपों की सीबीआई जांच में हस्तक्षेप करना है।
सीबीआई ने कहा-जांच में नहीं हुआ कोई समझौता
लेखी ने राज्य सरकार उस आरोप का विरोध किया कि मामले में चल रही जांच से समझौता किया गया है क्योंकि मौजूदा सीबीआई निदेशक सुबोध जायसवाल तब राज्य के डीजीपी थे, जब देशमुख गृह मंत्री थे, इसलिए वह ऐसी कई मीटिंगों का हिस्सा रहे थे, जिसमें पुलिस अधिकारियों के तबादलों और तैनाती पर चर्चा हुई थी।
शीर्ष अदालत ने सीबीआई को ‘पिंजरे में बंद तोता’ कहा था
हालांकि, महाराष्ट्र पुलिस पर आरोप लगाने वाली सीबीआई कई बार शीर्ष अदालतों से इसी तरह की फटकार खा चुकी है। अगस्त में मद्रास हाईकोर्ट ने एक मामले की सुनवाई के दौरान कहा था कि केंद्रीय जांच ब्यूरो को सीएजी की तरह होना चाहिए जो केवल संसद के प्रति जवाबदेह है। यह ‘पिंजड़े में बंद तोते (सीबीआई)’ को रिहा करने का प्रयास है। बता दें कि 2013 में कोलफील्ड आवंटन मामलों की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई पर टिप्पणी की थी और उसे “पिंजरे के तोते” के रूप में वर्णित किया था। उस समय विपक्ष में रहने वाली भाजपा ने एजेंसी पर कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार द्वारा नियंत्रित होने का आरोप लगाया था।
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