रेजांगला की शौर्य गाथा: युद्ध में गोला-बारूद खत्म हुआ तो चीनी सैनिकों को बूटों से मारा, लता ने इन्हीं को याद कर गाया ऐ मेरे वतन के लोगो…
[ad_1]
- Hindi News
- Local
- Haryana
- Rohtak
- Rewari
- The War With China Took Place On The Snowy Peak Of Ladakh On This Day; Two Real Brothers Of Rewari Were Martyred Together In The Same Bunker
रेवाड़ी6 मिनट पहले
- कॉपी लिंक
18 नवंबर 1962 यानि हमारे देश के जवानों द्वारा रेजांगला की शौर्य गाथा का लिखा ऐतिहासक दिन। लेह-लद्दाख की दुर्गम बर्फीली चोटी पर अहीरवाल के वीरों ने ऐसी अमर गाथा लिखी गई, जो आज भी युवाओं के जहन में देशभक्ति की भावना पैदा करती है। चीनी आक्रमण के समय लद्दाख की बर्फीली चोटी पर स्थित रेजांगला पोस्ट पर हुए युद्ध की गौरवगाथा विश्व के युद्ध इतिहास में अद्वितीय है। इस युद्ध में हरियाणा के रेवाड़ी के रहने वाले दो सगे भाई एक ही दिन एक बंकर में शहीद हो गए थे।
जब देश में थी दीवाली वो खेल रहे थे होली
जब देश में थी दीवाली, वो खेल रहे थे होली, जब हम बैठे थे घरों में, वो झेल रहे थे गोली। देशभक्ति से भरा यह गीत लता मंगेशकर द्वारा रेजांगला युद्ध में शहादत देने वाले शहीदों को समर्पित हैं। इसकी हर एक पंक्ति रेवाड़ी और आसपास के अहीरवाल क्षेत्र के उन रणबांकुरों की शौर्य गाथा कहती है, जिन्होंने रेजागंला युद्ध के वक्त 1962 में दीवाली के दिन चीन के साथ मुकाबला कर सबसे ऊंची चोटी पर शहादत की अमर गाथा लिखी। युद्ध में एक ही कंपनी के 114 जवान वीरगति को प्राप्त हुए। रेवाड़ी में रेजांगला शौर्य स्मारक पर इन वीरों के नाम सम्मान के साथ अंकित हैं।
रेजांगला युद्ध की फाइल फोटो।
124 जवानों ने 1300 से ज्यादा चीनी सैनिकों से लोहा लिया
18 नवंबर 1962 को लेह-लद्दाख की दुर्गम और बर्फीली पहाड़ियों पर 13 कुमाऊं की चार्ली कंपनी के मेजर शैतान सिंह के नेतृत्व में तीन कमीशन अधिकारियों समेत 124 जवानों ने 1300 से अधिक चीनियों से लोहा लिया था। युद्ध में चार्ली कंपनी के 124 में से 114 जवान शहीद हो गए। इतिहास के पन्नों पर यह लड़ाई इसलिए भी महत्वपूर्ण स्थान रखती है कि मैदानी और रेगिस्तानी इलाके के वीरों ने बर्फ से ढके पहाड़ों पर लड़ने के अभ्यस्त चीनियों से लोहा लिया।
युद्ध में शहीद हुए मेजर शैतान सिंह।
साहस देख चीनी सैनिक भी नतमस्तक हो गए
इन वीरों का पराक्रम व साहस देखकर चीनी सैनिक भी नतमस्तक हो गए थे। उन्होंने युद्ध स्थल पर एक प्लास्टिक की पट्टी पर ‘ब्रेव’ लिखकर इन सैनिकों के शवों के पास सम्मानपूर्वक रखा और वहीं सम्मान के प्रतीक रूप में धरती पर संगीन गाड़ते हुए उस पर टोपी लटकाकर चले गए थे। इतिहास गवाह है कि अहीरवाल के बहादुरों की यह टुकड़ी ने गोली-बारूद खत्म हो जाने पर भी रणभूमि नहीं छोड़ी और संगीनों व अपने बूटों के सहारे चीनी सैनिकों से लड़ते रहे। आखिरकार रणभूमि में उन्होंने प्राण त्याग दिए। इस बात के प्रमाण युद्ध समाप्ति के तीन माह बाद बर्फ पिघलने पर मिले जब बर्फ में दबे कुछ सैनिकों के शव युद्धावस्था में ही मिले। शवों में जवानों के हाथ में ग्रैनेड और टूटे हुए हथियार थे।
युद्ध में शहीद हुए जवान।
एक ही बंकर में एक दिन शहीद हुए दो सगे भाई
यु्द्ध में रेवाड़ी जिले के दो सगे भाईयों नायक सिंहराम और सिपाही कंवर सिंह यादव का भी जिक्र आता है जो एक साथ एक ही बंकर में शहीद हुए। तीन माह बाद उनके शवों और 96 अन्य शवों को इसी क्षेत्र के जवान हरिसिंह ने जब मुखाग्नि दी तो उसका दिल दहल उठा था और मुखाग्नि देकर वह भी वहीं गिर पड़े थे। रेजांगला युद्ध ऐसी अनेक शौर्य की दास्तानों से भरा हुआ है। चुशुल (लद्दाख) की हवाई पट्टी पर बने विशाल द्वार पर भी लिखा है वीर अहीर रेजांगला की गाथा। आज रेजांगला कंपनी के नाम से जानी जाने वाली चार्ली कंपनी में अहीरवाल क्षेत्र के जवान शामिल हैं।
रेवाड़ी स्थित रेजांगला स्मारक पर अंकित शहीदों के नाम।
रेवाड़ी में रेजांगला स्मारक
13 कुमाऊं के 120 जवान दक्षिण हरियाणा के अहीरवाल क्षेत्र यानी रेवाड़ी, गुरुग्राम, नारनौल और महेंद्रगढ़ जिलों के थे। रेवाड़ी में रेजांगला के वीरों की याद में स्मारक बनाया गया है, जिस पर इस युद्ध में शहादत देने वाले शहीदों के नाम भी अंकित है।
[ad_2]
Source link