लाहौली जुराब और दस्ताने को मिला GI टैग: सोसायटी द्वारा पंजीकृत करने के बाद मिला संकेत; देशभर में यहां के बुनकरों का नाम

लाहौली जुराब और दस्ताने को मिला GI टैग: सोसायटी द्वारा पंजीकृत करने के बाद मिला संकेत; देशभर में यहां के बुनकरों का नाम

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कुल्लू12 मिनट पहले

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लाहौली जुराब और दस्ताने को मिला GI टैग: सोसायटी द्वारा पंजीकृत करने के बाद मिला संकेत; देशभर में यहां के बुनकरों का नाम

लाहौल-स्पीति में जुराबें बनाती महिलाएं।

दुनियाभर के सैलानियों की पसंद हिमाचल प्रदेश के अहम जिले लाहौल स्पीति को सुंदरता के साथ ही यहां बनने वाली जुराब और दस्तानों को एक अलग पहचान मिल गई। उत्पादन को अब भौगोलिक संकेत यानि GI टैग मिला। सेव लाहौल स्पीति सोसायटी को हिमाचल प्रदेश के पेटेंट सूचना केंद्र (एचपी काउंसिल फॉर साइंस टेक्नोलॉजी फॉर एनवायरमेंट) द्वारा यह टैग जारी किया गया। इसके लिए बकायदा लाहौली जुराब और दस्ताने उत्पाद को सोसायटी द्वारा पंजीकृत किया गया था। अब उत्पान की देखरेख इसी सोसायटी द्वारा ही की जाएगी।

सेव लाहौल स्पीति सोसायटी के अध्यक्ष प्रेम चंद कटोच ने बताया कि निश्चित रूप से लाहौल घाटी के पारंपरिक हस्तशिल्प को सुरक्षित करने की और बढ़ावा देने के लिए यह सामूहिक प्रयास किया गया, जिसकी शुरुआत बेहतरीन तरीके से हुई है। उन्होंने बताया कि लाहौल के बुनकर क्षेत्र में जुराब और दस्ताने अहम स्थान रखते हैं और यहां इस उत्पाद को बहुत ज्यादा तरजीह दी जाती है। यहां के बुनकरों का इतिहास भी घाटी में काफी अहम रहा है। सोसायटी ने घाटी के इस उत्पाद को संरक्षित करने के क्षेत्र में यह काम किया है।

बुनकरों द्वारा तैयार की गई जुराबें।

बुनकरों द्वारा तैयार की गई जुराबें।

उन्होंने कहा कि 1856 में मोरेबियन मिशनरी के केलांग आगमन के साथ-साथ विशेष रूप से लाहौल में बुनाई पर लिखित जानकारी प्रकाश में सामने आने लगी थी। मिशनरियों की पत्नियों में खासकर मारिया हाईडे ने केलांग में पहले बुनाई स्कूल की स्थापना की थी। स्कूल ने स्थानीय महिलाओं में बुनाई कौशल को विकसित करने में अहम योगदान दिया। उसके बाद घाटी में बुनाई उत्पाद में आधुनिकरण और व्यवसायी करण की शुरुआत भी हुई। यह बुनाई का काम घाटी में पीढ़ी दर पीढ़ी चलता गया और लोगों की जरूरतों को भी पूरा करता गया।

बहुत आकर्षक है जुराबें
लाहौली जुराब बहुत आकर्षक है। जुराब की बुनाई पांच सिलाई की मदद से अलग-अलग हिस्से बनाकर की जाती है। पैर से ऊपरी हिस्से को 8 रंगों के आकर्षण पारंपरिक पैटर्न देकर बुनाई की जाती है। स्थानीय बोली में इन पेट्रन को दशी कहा जाता है। जिसमें 7 से 8 प्रकार के रूपाकणों द्वारा बने पेट्रन शामिल हैं। जुराबे बुनाई का अनुक्रम में सबसे पहले टांगों की बुनाई होती है। उसके बाद तलवे के हिस्से की बुनाई होती है और दोनों को आपस में जोड़ते हुए पंजे के सिरे तक ले जाते हैं ।

सोसायटी के अध्यक्ष का कहना है कि लाहौल की वस्तुओं को जीआई टैग मिलना निश्चित तौर पर क्रियाशील दस्तकारों, स्वयं सहायता समूह, गैर सरकारी संगठनों, व्यक्तिगत स्थानीय उद्यमियों और छोटे पैमाने पर व्यवसायियों को विकसित करने और विपणन पूंजी बढ़ाने में मदद मिलेगी।

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