अमरिंदर की नई पारी से विरोधी चिंतित: 52 साल का सियासी करियर; 2 बार अपने बलबूते CM बने; पंजाब में किसान आंदोलन से जमेंगे पैर

अमरिंदर की नई पारी से विरोधी चिंतित: 52 साल का सियासी करियर; 2 बार अपने बलबूते CM बने; पंजाब में किसान आंदोलन से जमेंगे पैर

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जालंधर24 मिनट पहलेलेखक: मनीष शर्मा

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अमरिंदर की नई पारी से विरोधी चिंतित: 52 साल का सियासी करियर; 2 बार अपने बलबूते CM बने; पंजाब में किसान आंदोलन से जमेंगे पैर

कैप्टन अमरिंदर सिंह की नई सियासी पारी ने कांग्रेस समेत विपक्षी दलों की चिंता बढ़ा दी है। इसकी बड़ी वजह पंजाब में अमरिंदर का सियासी कद है। अमरिंदर अभी तक पंजाब में इकलौते चेहरे हैं, जिनके आगे बादल परिवार की सियासी पकड़ तक ढीली पड़ गई। गांवों से लेकर शहरों में तक कैप्टन मुख्यमंत्री के रूप में बड़ा चेहरा हैं। पंजाब की सियासत में अमरिंदर का 52 साल का अनुभव है। 2 बार वो अपने बलबूते कांग्रेस को सत्ता में ले आए।

एक महीने पहले उन्हें अपमानित होकर CM की कुर्सी छोड़नी पड़ी। अब किसान आंदोलन का हल निकलवा वह फिर से पैर जमा सकते हैं। नई पार्टी बना BJP से गठजोड़ कर चुनाव मैदान में उतरने के ऐलान से सबसे ज्यादा कांग्रेस को जमीन खिसकने का डर सता रहा है। अमरिंदर जल्द नई पार्टी की घोषणा कर सकते हैं।

यही वजह है सभी दल कैप्टन का नया सियासी दांव संभालने में जुटे हैं। इसीलिए कैप्टन की BJP से साठगांठ के मुद्दे को हवा दी जा रही है। विरोधियों की नजर किसान आंदोलन से पंजाब में भाजपा के खिलाफ बने माहौल पर है। उसी में अमरिंदर को भी निपटाने की कोशिश हो रही है। हालांकि अमरिंदर मंझे हुए खिलाड़ी हैं। तभी मोदी लहर में एक महीने के प्रचार से अमरिंदर ने 2014 में दिग्गज भाजपा नेता अरूण जेटली को अमृतसर से लोस चुनाव हरा दिया था।

पंजाब में अमरिंदर असरदार क्यों?

  • सियासी अनुभव : कैप्टन अमरिंदर सिंह का पंजाब में 52 साल का सियासी करियर है। इनमें 42 साल कांग्रेस में रहे। 3 बार कांग्रेस के प्रधान और 2 बार साढ़े 9 साल के लिए CM रह चुके हैं। कांग्रेस में करीब 20 साल उनका एकछत्र राज रहा।
  • अपने चेहरे पर जीते 2 चुनाव : कांग्रेस को 2002 और 2017 में अमरिंदर के चेहरे और सियासी दमखम पर सत्ता मिली थी। खुद कांग्रेसी भी इस बात को मानते हैं।
  • बादल परिवार को टक्कर देने में सक्षम : पंजाब में अगर परकाश सिंह बादल और उनके परिवार के सियासी रसूख को अब तक कोई पटखनी दे सका है तो वो अमरिंदर ही हैं।
  • गांवों से लेकर शहर तक बड़ा चेहरा : अमरिंदर इकलौते नेता हैं, जिन्हें सिख समाज से लेकर हिंदू समुदाय पसंद करता है। गांवों में फसल खरीद और सतलुज-यमुना लिंक (SYL) नहर पर स्टैंड के लिए उन्हें याद किया जाता है। शहरों में सांप्रदायिक सौहार्द के लिए कैप्टन फेवरेट हैं।
  • किसान आंदोलन : पंजाब चुनाव का बड़ा मुद्दा है। अमरिंदर इसे हल करा गए तो पंजाब में उनका सियासी दबदबा बढ़ेगा। किसानों का समर्थन मिलेगा और सीधा फायदा पंजाब विस चुनाव में होगा।
अमरिंदर ने CM रहते गन्ने के रेट बढ़ाए तो किसानों ने उनका मुंह मीठा कराया

अमरिंदर ने CM रहते गन्ने के रेट बढ़ाए तो किसानों ने उनका मुंह मीठा कराया

किसान नेताओं से अच्छे रिश्ते

अमरिंदर के किसान नेताओं से अच्छे रिश्ते हैं। केंद्र सरकार के कृषि सुधार कानूनों के खिलाफ आंदोलन को CM रहते पूरा सपोर्ट किया। एक महीने पंजाब में बेरोक-टोक आंदोलन चला। केंद्र के कहने पर भी पंजाब के किसानों के दिल्ली कूच को नहीं रोका। हरियाणा में किसानों पर लाठीचार्ज हुआ तो अमरिंदर वहां की खट्‌टर सरकार पर टूट पड़े। किसान नेताओं के साथ अमरिंदर की करीबी तब भी नजर आई, जब गन्ने का रेट बढ़ा। किसान नेताओं ने उनका मुंह मीठा करवाया, जिसकी तस्वीर खूब वायरल हुई। अमरिंदर किसानों की जरूरत के वक्त साथ खड़े रहे। अब अमरिंदर को जरूरत है तो किसानों से पूरा सहयोग मिल सकता है। यहीं से लग रहा है कि अमरिंदर केंद्र और संयुक्त किसान मोर्चा के बीच मध्यस्थ बन इसका हल निकलवा सकते हैं।

कलह की शिकार कांग्रेस में बड़ी टूट के आसार

अमरिंदर की नई पारी की सबसे बड़ी चिंता पंजाब कांग्रेस को है। यहां पहले ही संगठन और सरकार में टकराव चल रहा है। हाईकमान की एक महीने की मशक्कत के बाद भी कलह बरकरार है। पंजाब कांग्रेस चीफ नवजोत सिद्धू अब नए सीएम चरणजीत चन्नी से टकरा रहे हैं। ऐसे में अमरिंदर की नई पार्टी बनते ही बड़े स्तर पर नेता टूटने तय हैं। इनमें मंत्री पद से हटाए नेताओं के साथ संगठन से नजरअंदाज नेता भी शामिल हैं। पंजाब कांग्रेस में चल रहा बिखराव अमरिंदर को मजबूती देगा।

यही वजह है कि कैप्टन के ऐलान करते ही पंजाब से लेकर दिल्ली तक अमरिंदर पर हमले शुरू हो गए। पंजाब के डिप्टी सीएम सुखजिंदर रंधावा ने कैप्टन को मौकापरस्त कह दिया। मंत्री परगट सिंह और अमरिंदर सिंह राजा वड़िंग भी कैप्टन पर हमलावर हो गए। पंजाब कांग्रेस हरीश रावत ने भी कैप्टन के बीजेपी से रिश्तों पर सवाल खड़े कर दिए।

हिंदू वोट बैंक का फायदा

पंजाब चुनावों में वोट बैंक का जातीय गणित भी कम असरदार नहीं। अब तक 19% जट्‌टसिख आबादी पर ही सबका फोकस रहा है। पहली बार अनुसूचित जाति के 31.94% वोट को लेकर सियासत हुई। यह देख कांग्रेस ने अनुसूचित जाति का सीएम बना दिया। यह मुद्दा कांग्रेस के पास चला गया। इसके बाद अब 38.49% हिंदू वोट बैंक पर सबकी नजर है। अमरिंदर को BJP का साथ मिला तो उनके लिए फायदे का सौदा होगा।

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