पथरी की जगह निकाली किडनी: डॉक्टरों की लापरवाही से 4 महीने बाद हो गई थी मरीज की मौत, अब अस्पताल को देना होगा 11.23 लाख रुपए का हर्जाना
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महिसागर (गुजरात)20 मिनट पहले
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प्रतीकात्मक फोटो।
अस्पताल की लापरवाही का करीब 10 साल पुराना यह मामला गुजरात में महिसागर जिले के बालासिनोर शहर का है, जहां अस्पताल में भर्ती एक मरीज की गुर्दे की पथरी की जगह उसकी किडनी ही निकाल दी गई थी। इसके चलते चार महीने बाद ही मरीज की मौत हो गई थी। अब इसी मामले में गुजरात उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग ने अस्पताल को आदेश दिया है कि वह मरीज के परिवार को 11.23 लाख रुपये की मुआवजा राशि का भुगतान करे।
किडनी में 14 एमएम की पथरी थी
बता दें, खेड़ा जिले के वांगरोली गांव में रहने वाले देवेंद्रभाई रावल को पेशाब में दिक्कत की थी। इसके चलते उन्होंने मई 2011 में बालानिसोर के केएमजी जनरल अस्पताल से संपर्क किया था। जांच में किडनी में 14 एमएम की पथरी होने का पता चला था। इसके बाद 3 सितंबर 2011 को उनका ऑपरेशन किया गया था। लेकिन, पथरी की जगह उनकी किडनी ही निकाल दी गई। जब देवेंद्रभाई के परिवार को इसका पता चला को उन्होंने अस्पताल से दोबारा संपर्क किया। इस पर अस्पताल के डॉक्टर्स ने दलील दी थी कि उनकी जान को खतरा था। इसके चलते किडनी निकालनी पड़ी।
जनवरी में इलाज के दौरान हो गई थी देवेंद्रभाई की मौत
लेकिन, ऑपरेशन के एक महीने बाद ही देवेंद्रभाई की हालत बिगड़ने लगी तो उन्हें नाडियाद के किडनी अस्पताल में भर्ती करवाया गया था। यहां से उन्हें अहमदाबाद के IKDRC अस्पताल रेफर कर दिया गया था। यहां इलाज
के दौरान 8 जनवरी 2012 को उनकी मौत हो गई थी। इन दोनों अस्पतालों ने भी बालासिनोर अस्पताल के केएमजी अस्पताल के डॉक्टर्स की लापरवाही की बात कही थी।
इंश्योरेंस कंपनी ने मुआवजा देने पर आपत्ति जताई
केएमजी अस्पताल के डॉक्टर्स की लापरवाही की बात सामने आने पर देवेंद्रभाई की पत्नी मीनाबेन ने नाडियाड के उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग में गुहार लगाई थी। आयोग द्वारा साल 2012 में डॉक्टर, अस्पताल और यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड को 11.23 लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश पारित हुआ था। लेकिन, मरीज की मौत अस्पताल की गलती से हुई थी। इसके चलते इंश्योरेंस कंपनी ने उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग में अपील दायर की थी कि यह चिकित्सीय लापरवाही का मामला है। इसके चलते पूरी मुआवजा राशि अस्पताल के देनी चाहिए न कि इंश्योरेंस कंपनी को।
स्वीकृति पत्र में किडनी निकालने की बात नहीं थी
इसके बाद आयोग की जांच में भी यही बात सामने आई कि केएमजी अस्पताल के डॉक्टर्स ने देवेंद्रभाई के परिवार से पथरी निकालने की ही लिखित में स्वीकृति ली थी, न कि किडनी निकालने की। अस्पताल द्वारा दिए गए
स्वीकृति पत्र में किडनी निकालने का कहीं कोई जिक्र नहीं ही। इस तरह यह चिकित्सीय लापरवाही थी, जिसके लिए इंश्योरेंस कंपनी जिम्मेदार नहीं है। इसलिए आयोग ने अस्पताल को ही यह मुआवजा राशि चुकाने का आदेश दिया है। आयोग ने अस्पताल को साल 2012 से अब तक 7.5 फीसदी ब्याज के साथ यह मुआवजा देने का आदेश दिया है।
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