अफगानिस्तान पर अमेरिका और रूस के बीच भारत सेतु: सीआईए चीफ और रूसी एनएसए की एक साथ मेजबानी से चीन, पाकिस्तान में खलबली
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नई दिल्लीएक घंटा पहलेलेखक: मुकेश कौशिक
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रूसी एनएसए निकोलाई पत्रूशेव की मुलाकातों का सिलसिला तो सार्वजनिक किया गया, मगर सीआईए चीफ विलियम बर्न्स का दौरा गुप्त रखा गया।
शीर्ष स्तर पर 16 दिन चली सघन कूटनीति के सकारात्मक परिणाम के रूप में बुधवार को आखिर भारत ने अफगानिस्तान के पेचीदा मुद्दे पर अमेरिका और रूस को एक जमीन पर ला खड़ा किया। काबुल में तालिबान पर नकेल कसने, आतंकवाद के खिलाफ उनसे प्रतिबद्धता हासिल करने और कानून का शासन बहाल करने की चुनौती को साकार करने के भारतीय प्रयासों के तहत अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए के प्रमुख विलियम बर्न्स और रूसी सुरक्षा परिषद के प्रमुख निकोलाई पत्रूशेव को एक साथ नई दिल्ली बुला लिया गया।
इसे अंतररष्ट्रीय कूटनीति में भारत के मास्टर स्ट्रोक के तौर पर देखा जा रहा है। सीआईए चीफ की भारत यात्रा को गोपनीयता के पर्दे में रखा गया। उनकी यात्रा की पुष्टि या खंडन करने को भी कोई सरकारी सूत्र तैयार नहीं हुआ। लेकिन एनएसए अजीत डोभाल के जवाहर भवन में विदेश मंत्रालय और साउथ ब्लॉक में प्रधानमंत्री कार्यालय की हलचलों और सिक्योरिटी सायरनों की आवाजों से उनकी मौजूदगी छिप नहीं पाई।
रूसी विदेश मंत्रालय के सूत्रों ने बताया पत्रूशेव की भारत यात्रा 24 अगस्त को पीएम मोदी और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के बीच फोन पर हुई बातचीत के ‘फालोअप’ के तौर पर हुई है। पत्रूशेव बुधवार को पीएम, विदेश मंत्री अजीत डोभाल से मिले।
अमेरिकी एजेंडा: भारत ग्राउंड इंटेलीजेंस में मदद दे, रूस से कंसल्टेशन ब्रिज बना रहे
सूत्रों ने भास्कर को बताया अमेरिका उस स्थिति से बेदाग निकलना चाहता है जो उसकी सेनाओं की वापसी के कारण पैदा हुई है। तालिबान के कई गुटों पर अमेरिकी पकड़ है। रूस उसी का फायदा लेना चाहता है।
- रूस के साथ सम्पर्क के लिए ‘कंसल्टेशन ब्रिज’ की भूमिका निभाता रहे।
- अफगानिस्तान में भारत ने आम जनता में व्यापक हमदर्दी जुटा रखी है और उसका इस्तेमाल ग्राउंड इंटेलीजेंस के तौर पर किया जाए।
- अफगानिस्तान में भविष्य के स्टेट स्ट्रक्चर के लिए अफगान लीडरशिप बचाकर रखनी है। अमेरिका चाहता है कि भारत कई उदीयमान नेताओं को राजनीतिक शरण दे।
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