कोलकाता में बढ़ती आबादी के चलते ट्राम सेवा पर दबाव: मेट्रो, बस से मुकाबले में पिछड़ रही ट्राम; लोग बोले-बंद करने के बजाय इस विरासत को सहेजना चाहिए
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कोलकाता41 मिनट पहलेलेखक: एमिली श्माल
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कोलकाता में एशिया की पहली ट्राम सेवा है।
सिटी ऑफ जॉय यानी कोलकाता की लाइफलाइन ट्राम सेवा की चमक फीकी पड़ रही है। 140 सालों से यह लोगों को कॉलेज, दफ्तरों, रेलवे स्टेशन समेत अन्य गंतव्य तक पहुंचाती आई है। आज अंग्रेजों के जमाने के इस साधन को कोलकाता के या बाहर से वहां पहुंचने वाले लोग काम पर पहुंचाने वाले साधन के बजाय आनंदमय यात्रा के लिए ज्यादा इस्तेमाल कर रहे हैं।
स्थानीय लोगों का कहना है कि यह कोलकाता की धरोहर है। इस विरासत को सहेजकर रखना चाहिए। बहुत से लोग इसे परी कथा जैसा मानते हैं। कोलकाता में एशिया की पहली ट्राम सेवा है। 1881 में बनी ट्राम प्रणाली ने कोलकाता को महानगर के रूप में विकसित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। देश में अब तक संचालित यह इकलौती सेवा अब खतरे में हैं। वजह है- हाल में आई प्राकृतिक आपदाओं और प्रशासनिक अनदेखी से यह ट्राम सेवा पिछड़ गई है।
अब यह पुरानी यादों की धरोहर का रूप लेती जा रही है। शहर का सबसे सस्ता साधन होने के बावजूद नियमित यात्रियों की संख्या घट रही है। ज्यादातर लोग अपने वाहनों से ही सफर कर रहे हैं। ट्राम में दिखते हैं तो सिर्फ पर्यटक। हालांकि अधिकारियों का कहना है कि बस और मेट्रो रेल के साथ ट्राम शहर के यातायात साधनों का मिश्रित हिस्सा रहना चाहिए। क्योंकि यह डेढ़ करोड़ आबादी वाले शहर के लोगों का जीवन 21वीं सदी में भी बेहतर बनाती आई है।
ट्राम ईको फ्रेंडली है, लोगों की भावनाएं भी जुड़ीं
ट्राम समर्थक एक्टिविस्ट का कहना है कि जलवायु परिवर्तन के दौर में डीजल-पेट्राल से चलने वाली बसें, कारें प्रदूषण फैलाती हैं। वहीं, ट्राम ओवरहेड इलेक्ट्रिक लाइनों से चलती है और ईको फ्रेंडली विकल्प है। वैज्ञानिक, आर्थिक, पर्यावरणीय रूप से ट्राम को बसों को जगह देने के लिए नहीं हटाया जाए।
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