पत्रकार के खिलाफ जारी जिलाबदर का आदेश रद्द: सुप्रीम कोर्ट ने कहा- देश में किसी को कहीं भी रहने या घूमने से नहीं रोका जा सकता
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नई दिल्ली6 मिनट पहले
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सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए केवल असाधारण मामलों में ही आवाजाही पर कड़ी रोक लगानी चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि किसी व्यक्ति को देश में कहीं भी रहने या स्वतंत्र रूप से घूमने के उसके मौलिक अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता। न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी और न्यायमूर्ति वी रामसुब्रमण्यम की बेंच ने शनिवार को एक मामले की सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की। बेंच ने महाराष्ट्र के अमरावती में जिला अधिकारियों की ओर से जारी एक पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता के खिलाफ जिलाबदर के आदेश को रद्द कर दिया। अदालत ने कहा कि कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए केवल असाधारण मामलों में आवाजाही पर कड़ी रोक लगानी चाहिए।
अमरावती जोन-1 के डिप्टी कमिश्नर ने महाराष्ट्र पुलिस अधिनियम, 1951 की धारा 56 (1)(a)(b) के तहत पत्रकार रहमत खान को शहर में आवाजाही पर रोक लगा दी थी। दरअसल, रहमत सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत एप्लिकेशन दाखिल कर रहे थे, जिसमें अलग-अलग मदरसों को फंड के बंटवारे में कथित गड़बड़ियों के बारे में जानकारी मांगी गई गई थी। इनमें जोहा एजुकेशन एंड चैरिटेबल वेलफेयर ट्रस्ट की ओर से संचालित अल हरम इंटरनेशनल इंग्लिश स्कूल और मद्रासी बाबा एजुकेशन वेलफेयर सोसाइटी द्वारा संचालित प्रियदर्शिनी उर्दू प्राइमरी और प्री-सेकंडरी स्कूल शामिल हैं।
‘भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाई तो मुझ पर ही कार्रवाई हुई’
खान का कहना था कि उनके खिलाफ यह कार्रवाई इसलिए की गई, क्योंकि उन्होंने सार्वजनिक धन के कथित दुरुपयोग को समाप्त करने के लिए कदम उठाया। अवैध गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कार्रवाई शुरू की मांग रखी। याचिकाकर्ता ने कहा कि 13 अक्टूबर, 2017 को खान ने इस मिलीभगत और सरकारी ग्रांट्स के कथित दुरुपयोग की जांच करने की अपील की थी। इसके बाद प्रभावित व्यक्तियों ने खान के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई।
धारा 56 से 59 का उद्देश्य अराजकता को रोकना
अमरावती के गाडगे नगर डिवीजन के एसिसटेंट पुलिस कमिश्नर ने रहमत खान को 3 अप्रैल, 2018 को एक कारण बताओ नोटिस जारी किया गया। इसमें महाराष्ट्र पुलिस अधिनियम, 1951 की धारा 56(1)(a) (b) के तहत उनके खिलाफ कार्यवाही शुरू करने की सूचना दी गई थी। अदालत ने कहा कि महाराष्ट्र पुलिस अधिनियम की धारा 56 से 59 का उद्देश्य अराजकता को रोकना और समाज में अराजक तत्वों से निपटना है, जिन्हें ज्यूडिशियल ट्रायल के बाद दंडात्मक कार्रवाई के स्थापित तरीकों से दंडित नहीं किया जा सकता।
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