आज का इतिहास: पहली बार समुद्र में 205 फीट नीचे से एक्वानॉट ने स्पेस मिशन पर गए एस्ट्रोनॉट दोस्त से रेडियो टेलीफोन पर बात की

आज का इतिहास: पहली बार समुद्र में 205 फीट नीचे से एक्वानॉट ने स्पेस मिशन पर गए एस्ट्रोनॉट दोस्त से रेडियो टेलीफोन पर बात की

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  • Today History (Aaj Ka Itihas) 29 August | 1965 Astronaut Aquanaut Radio Telephone And Major Dhyan Chand Born In Allahabad

13 मिनट पहले

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आज का इतिहास: पहली बार समुद्र में 205 फीट नीचे से एक्वानॉट ने स्पेस मिशन पर गए एस्ट्रोनॉट दोस्त से रेडियो टेलीफोन पर बात की

29 अगस्त 1965। इस दिन को कम्युनिकेशन टेक्नोलॉजी के इतिहास में यादगार दिन माना जाता है। दरअसल इस दिन एक एस्ट्रोनॉट ने एक्वानॉट से बात की थी। यानी अंतरिक्ष की ऊंचाई से समुद्र की गहराई में पहली बार बात की गई।

21 अगस्त 1965 को अमेरिका ने जेमिनी-5 स्पेसक्राफ्ट लॉन्च किया था। इसमें गॉर्डन कूपर और पीट कॉनरेड अंतरिक्ष में गए थे। दोनों ने 8 दिन अंतरिक्ष में बिताए जो उस समय अंतरिक्ष में सबसे ज्यादा देर तक रहने का रिकॉर्ड था। दरअसल किसी भी स्पेसक्राफ्ट को धरती से चांद तक जाने और वापस आने में करीब 8 दिन का समय लगता है। नासा टेस्ट करना चाहता था कि नई बनाई बैटरी स्पेसक्राफ्ट को 8 दिन तक इलेक्ट्रिसिटी सप्लाय कर पाती है या नहीं।

एक तरफ ये दोनों अंतरिक्ष में रिकॉर्ड बना रहे थे, दूसरी तरफ कूपर के ही एक दोस्त स्कॉट कारपेंटर अमेरिका के एक समुद्री मिशन का हिस्सा थे। स्कॉट समुद्र की गहराई मापने से पहले एक अंतरिक्षयात्री थे और कूपर के साथ नासा के एक मिशन का हिस्सा रहे थे। इसलिए दोनों एक-दूसरे को पहले से जानते थे। अंतरिक्ष की यात्रा करने के बाद स्कॉट ने फैसला लिया कि वो समुद्र की गहराइयों को भी मापेंगे। 1965 में स्कॉट अमेरिकी नेवी के सीलैब-II मिशन का हिस्सा बन गए। इस मिशन का उद्देश्य डीप सी डाइविंग और समुद्र की गहराइयों में इंसानों पर हो रहे फिजियोलॉजिकल और साइकोलॉजिकल प्रभावों का अध्ययन करना था।

सीलैब- II की लॉन्च से पहले स्कॉट कारपेंटर (आगे वाली पंक्ति में बाएं से दूसरे)

सीलैब- II की लॉन्च से पहले स्कॉट कारपेंटर (आगे वाली पंक्ति में बाएं से दूसरे)

28 अगस्त को एक कैप्सूलनुमा ट्यूब के जरिए स्कॉट और उनकी टीम के लोग समुद्र में उतारे गए। 29 अगस्त 1965 को उन्होंने समुद्री सतह से 205 फीट की गहराई से अंतरिक्ष में अपने दोस्त कूपर से रेडियोटेलीफोन के जरिए बातचीत की। इतनी लंबी दूरी की ये पहली कॉल थी।

अगले ही दिन गॉर्डन कूपर और चार्ल्स पीट अंतरिक्ष से लौटे। उनका पैराशूट प्रशांत महासागर में लैंड हुआ, इसी महासागर में 205 फीट नीचे स्कॉट अपने मिशन पर थे।

स्कॉट 30 दिन तक समुद्र में रहे। उस समय सबसे ज्यादा दिनों तक समुद्र में रहने का ये भी एक रिकॉर्ड था।

1831: माइकल फैराडे ने इलेक्ट्रोमैग्नेटिक इंडक्शन की खोज की

साल 1819 में हैंड्स ओसर्टेड ने ये बताया था कि इलेक्ट्रिक करंट से मैग्नेटिक फील्ड बनाई जा सकती है। जब इस बारे में फैराडे को पता चला तो उन्होंने सोचा कि अगर इलेक्ट्रिक करंट से मैग्नेटिक फील्ड बनाई जा सकती है, तो मैग्नेटिक फील्ड से भी इलेक्ट्रिक करंट फ्लो हो सकता है।

फैराडे अपने इस आइडिया पर काम करने लगे। 29 अगस्त 1831 को उन्होंने एक मोटी लोहे की रिंग पर 2 इंसुलेटेड वायर की क्वाइल को लपेट दिया। एक क्वाइल को बैटरी से और दूसरी को गेल्वेनोमीटर से जोड़ा गया। जब बैटरी से इलेक्ट्रिसिटी फ्लो की गई तो पास वाली क्वाइल के गेल्वेनोमीटर में हलचल होने लगी। जब सर्किट बंद किया गया तो गेल्वेनोमीटर की सुई उल्टी दिशा में हलचल करने लगी।

ये पेंटिंग 27 दिसंबर 1855 के दिन की है, जब फैराडे रॉयल इंस्टीट्यूशन में व्याख्यान दे रहे थे।

ये पेंटिंग 27 दिसंबर 1855 के दिन की है, जब फैराडे रॉयल इंस्टीट्यूशन में व्याख्यान दे रहे थे।

फैराडे ने इस एक्सपेरिमेंट के आधार पर निष्कर्ष निकाला कि इलेक्ट्रोमैग्नेटिक फील्ड में बदलाव होने से इलेक्ट्रोमोटिव फोर्स सर्किट में इलेक्ट्रिसिटी पैदा करता है। इसे ही इलेक्ट्रोमैग्नेटिक इंडक्शन कहा जाता है और इसी की मैथेमेटिकल इक्वेशन को फैराडे के नियम के नाम से जाना जाता है।

फैराडे की ये खोज इलेक्ट्रिसिटी के क्षेत्र में बहुत महत्वपूर्ण थी। फैराडे की थ्योरी पर ही वर्तमान के इलेक्ट्रिक मोटर और डायनेमो काम करते हैं।

29 अगस्त के दिन को इतिहास में और किन-किन महत्वपूर्ण घटनाओं की वजह से याद किया जाता है…

1997: अमेरिकन आन्त्रप्रेन्योर रीड हेस्टिंग्स और मार्क रेंडोल्फ ने स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म नेटफ्लिकस की स्थापना की।

1958: अमेरिकी पॉप सिंगर माइकल जैक्सन का जन्म हुआ।

1949: सोवियत संघ ने अपने पहले परमाणु बम का परीक्षण किया।

1947: बाबासाहेब अंबेडकर संविधान की ड्रॉफ्टिंग कमेटी के अध्यक्ष नियुक्त किए गए।

1905: भारतीय हॉकी के स्टार प्लेयर मेजर ध्यानचंद का इलाहाबाद में जन्म हुआ।

1612: सूरत की लड़ाई में अंग्रेजों के हाथ पुर्तगालियों को हार का सामना करना पड़ा।

खबरें और भी हैं…

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