आजाद भारत का पहला तिरंगा बनने की कहानी: मेरठ के गांधी आश्रम में रातों रात तैयार हुआ था पहली बार लाल किले पर फहरा तिरंगा, फूलों से सजे बक्से में दिल्ली भेजा गया था
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- On 15 August 1947, The Tricolor Hoisted On The Red Fort Was Prepared Overnight At Gandhi Ashram In Meerut, Wrapped In Muslin Cloth And Sent To Delhi.
मेरठ26 मिनट पहले
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पिता नत्थे सिंह की तस्वीर के साथ उनके बेटे रमेश।
आजाद भारत में फहराया गया पहला तिरंगा झंडा बनने की कहानी बेहद रोचक है। 75 साल पहले 16 अगस्त 1947 को पंडित जवाहरलाल नेहरू ने दिल्ली के लाल किले पर तिरंगा झंडा फहराकर सलामी दी। कम लोग इस हकीकत से वाकिफ हैं कि लाल किले के ललाट पर सजा वो तिरंगा झंडा मेरठ के गांधी आश्रम में रातों रात सिला गया था।
खादी का वह झंडा मेरठ के नत्थे सिंह ने सिला था। 2 साल पहले 94 वर्ष की उम्र में यहां सुभाष नगर के रहने वाले नत्थे सिंह का देहांत हो गया है। नत्थे अंतिम समय तक तिरंगों की सिलाई करते रहे। आज नत्थे सिंह के बेटे रमेश चंद्र तिरंगे झंडे सिलते हैं। आजाद भारत का पहला तिरंगा कैसे तैयार हुआ? इसके बारे में रमेश ने दैनिक भास्कर से पिता की उन यादों को शेयर किया…
मेरठ का क्षेत्रीय गांधी आश्रम जहां तिरंगे झंडे तैयार किए जाते हैं
दिल्ली से नजदीकी के कारण चुना मेरठ
रमेश कहते हैं कि इस बात का आधिकारिक कागज हमारे पास नहीं है कि 16 अगस्त 1947 को लाल किले की प्रचीर से फहराया गया तिरंगा झंडा मेरठ से बनकर गया था। पिताजी बताते थे बस वही याद है। वो बताते थे कि मेरठ दिल्ली के करीब है इसलिए यहां से झंडा गया। देश में अचानक आजादी की घोषणा हुई। 14 अगस्त को महात्मा गांधी, नेहरू जी सहित अन्य नेताओं ने तय किया कि जश्न लाल किले पर तिरंगा फहराकर होगा।
उस समय जो माहौल था उसमें झंडा फहराना जरूरी था। लेकिन रातों रात नया तिरंगा कहां से आए। 14 अगस्त से पहले अंग्रेजी हुकूमत में तिरंगा बनाना मौत को दावत देना था। जश्न के लिए नया तिरंगा चाहिए था वो भी खादी का। तब तय हुआ कि मेरठ के क्षेत्रीय गांधी आश्रम से तत्काल तिरंगा बनवाकर लाया जाए। क्रांतिकारियों का दल मेरठ आया और तिरंगा झंडा लेकर गया।
फूलों से सजे बक्से में गया था राष्ट्रीय ध्वज
आजादी के बाद पहली बार लाल किले पर 16 अगस्त 1947 को तिरंगा फहराया गया था।
रमेश के पिता नत्थे सिंह का 1925 में जन्म 2019 में 94 साल में निधन हुआ। रमेश के अनुसार पुराने लोगों में देशप्रेम की भावना इतनी गाढ़ी थी कि राष्ट्रीय ध्वज पूरे अनुष्ठान के साथ बनाया जाता था। झंडा हमेशा सम्मान से मलमल के कपड़े में लपेटकर लकड़ी के नए बक्से में रखा जाता था।
तब मेरठ में था गांधी आश्रम
रमेश के अनुसार पिताजी बताते थे कि मेरठ में 1920 में क्षेत्रीय श्री गांधी आश्रम की स्थापना हो चुकी थी। यहां चरखा कातकर सूत बुनता था। खादी की टोपियां, कपड़े सप्लाई होते थे। इसलिए मेरठ गांधी आश्रम में पहला झंडा बनाया गया। दिल्ली से क्रांतिकारियों का दल मेरठ संदेश लेकर पहुंचा तो उसमें झंडे के तीनों रंग, चरखे का चिन्ह बताया गया।
75 सालों से गांधी आश्रम में बन रहा है झंडा
75 सालों से मेरठ के क्षेत्रीय गांधी आश्रम में तिरंगा झंडा तैयार हो रहा है। झंडे की रंगाई, छपाई, कटाई, सिलाई होती है। मेरठ से खादी के ये झंडे देश के सभी सरकारी विभागों, पुलिस महकमों, सेना, स्कूलों, मंत्रालयों में जाते हैं। यहां 4 आकार 45-70, 60-90, 90-135, 120-180 में झंडे बनते हैं। मेरठ के झंडे को बॉर्डर से लेकर जम्मू कश्मीर, दक्षिण भारत तक जाता है। रमेश कहते हैं कि साल में 5 हजार से अधिक झंडे तैयार करते हैं। 26 जनवरी, 2 अक्तूबर, 15 अगस्त पर विशेष मांग होती है। झंडे के लिए तीन रंग में छपा कपड़ा गांधी आश्रम से मिलता है। पहले झंडे के मध्य में चरखा छपता था।
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