लोकतंत्र भारत की सबसे बड़ी ताकत है: मुझे गर्व है कि मेरे परिवार का नाम भारत की आजादी से जुड़ा, गुलामी से नहीं, 1947 में ब्रिटिश पीएम रहे क्लेमेंट ऐटली के पोते जॉन बता रहे हैं भारत से अपना रिश्ता

लोकतंत्र भारत की सबसे बड़ी ताकत है: मुझे गर्व है कि मेरे परिवार का नाम भारत की आजादी से जुड़ा, गुलामी से नहीं, 1947 में ब्रिटिश पीएम रहे क्लेमेंट ऐटली के पोते जॉन बता रहे हैं भारत से अपना रिश्ता

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6 मिनट पहले

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लोकतंत्र भारत की सबसे बड़ी ताकत है: मुझे गर्व है कि मेरे परिवार का नाम भारत की आजादी से जुड़ा, गुलामी से नहीं, 1947 में ब्रिटिश पीएम रहे क्लेमेंट ऐटली के पोते जॉन बता रहे हैं भारत से अपना रिश्ता

जॉन रिचर्ड ऐटली, ब्रिटिश सांसद

भारत जब 1947 में ब्रिटिशराज से आजाद हुआ, उस समय ब्रिटेन के प्रधानमंत्री क्लेमेंट ऐटली थे। 1927-28 में साइमन कमिशन के सदस्य के रूप में भारत आए क्लेमेंट ऐटली भारत की आजादी के प्रबल पक्षधर थे। आज उनके पोते जॉन रिचर्ड ऐटली ब्रिटेन के हाउस ऑफ लॉर्ड्स के सांसद हैं। वे भारत से अपना एक अलग रिश्ता महसूस करते हैं। उन्हीं की जुबानी जानिए, कैसा है ये रिश्ता…

मैं 1967 में 11 साल का था जब मेरे दादा जी, क्लेमेंट ऐटली, का निधन हुआ। आपको मजाक लग सकता है, लेकिन मुझे उस वक्त ऐसा लगता था जैसे सबके दादाजी प्रधानमंत्री रहे होंगे क्योंकि वे किसी भी आम आदमी की तरह सामान्य और सरल थे। उम्र बढ़ी तो पता चला कि उन्हें तो ब्रिटेन का सफलतम प्रधानमंत्री माना जाता है। बड़ा होना एक बात है, लेकिन सफल होकर भी सरल होना एक बिल्कुल अलग बात होती है।

मुझे गर्व है कि मेरे परिवार का नाम भारत जैसे महान देश की आजादी से जुड़ा है, गुलामी से नहीं। इतिहास की कड़ी मुझे ब्रिटेन के साथ-साथ भारत से भी जोड़ती है। मुझे खुशी है कि आज भी दोनों देशों की सरकारों ही नहीं नागरिकों में भी संबंध मधुर और गहरे हैं। मुझे याद है 2008 में मिलिट्री कॉलेज में अफसरों के साथ जब बात होती थी तब ये पक्का नहीं था कि चीन और भारत में आगे निकलने वाला देश कौन सा होगा। लगता था दोनों ही जल्द अमेरिका को पीछे छोड़ देंगे।

आज मुझे थोड़ी निराशा होती है कि भारत अभी उस ऊंचाई पर नहीं पहुंच पाया है जहां उसे होना चाहिए। जहां तक भविष्य का सवाल है मुझे लगता है भारत-ब्रिटेन में रक्षा संबंध और प्रगाढ़ करने होंगे। सुनिश्चित करना होगा कि लोकतंत्र फले-फूले। चीन में नेता ताकतवर हैं लेकिन एक गलत निर्णय से उनकी व्यवस्था चरमरा सकती है क्योंकि वो लोकतंत्र नहीं है।

विश्व युद्ध के समय मेरे दादा प्रधानमंत्री विन्स्टन चर्चिल के डिप्टी थे। हम युद्ध जीते लेकिन चुनाव में चर्चिल हारे। बड़ी बात ये है कि युद्ध में साथ काम करने वाले शीर्ष के दो नेता चुनाव में एक-दूसरे के खिलाफ लड़े। चुनाव के बाद नीतिगत मामलों पर जमकर लड़ने के बावजूद सार्वजनिक या निजी जीवन में एक-दूसरे का आदर करते रहे।

ऐसी संभावना लोकतंत्र की संस्था सुनिश्चित कर सकती है। मेरे दादाजी ने काबिल विरोधियों को भी सहयोगी बनाया और चुनौतीपूर्ण समय में भी जनता के लिए कल्याणकारी व्यवस्था बनाई, जिसे हम वेलफेयर स्टेट कहते हैं। जनता के लिए जरूरी है कि वे पार्टियों पर दबाव डालें कि नैतिक और काबिल नेता लाएं। ताकि जनता उचित चुनाव कर सके। – जैसा रितेश शुक्ल को बताया

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