तालिबान से डरा अमेरिका: वार्ताकारों ने तालिबान से की गुजारिश, काबुल पर कब्जा करने के बाद हमारे दूतावास पर हमला मत करना

तालिबान से डरा अमेरिका: वार्ताकारों ने तालिबान से की गुजारिश, काबुल पर कब्जा करने के बाद हमारे दूतावास पर हमला मत करना

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नई दिल्ली9 मिनट पहलेलेखक: पूनम कौशल

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तालिबान से डरा अमेरिका: वार्ताकारों ने तालिबान से की गुजारिश, काबुल पर कब्जा करने के बाद हमारे दूतावास पर हमला मत करना

तालिबान ने अब तक 11 प्रांतों पर कब्जा कर लिया है।

अफगानिस्तान में तालिबान की पकड़ मजबूत होती जा रही है। इस बीच दुनिया का सबसे शक्तिशाली देश अमेरिका भी तालिबान से डरा हुआ दिखाई दे रहा है। दरअसल, अमेरिका ने ये अनुमान लगाया था कि तालिबान को राजधानी काबुल पर कब्जा करने में 90 दिन का समय लगेगा। इतने दिनों में अमेरिका अपने नागरिकों को और अधिकारियों को देश से बाहर कर लेगा।

लेकिन अमेरिका का यह अनुमान धरा का धरा रह गया। तालिबानी लड़ाके अब तक 10 प्रांतों पर कब्जा करने के बाद राजधानी काबुल से करीब 150 किलोमीटर दूर रह गए हैं। यानी विद्रोही अगले कुछ दिनों में काबुल पर कब्जा कर लेंगे।

सूत्रों के मुताबिक, अमेरिकी वार्ताकारों ने तालिबान से गुहार लगाई है कि अगर वे राजधानी काबुल पर कब्जा कर लेते हैं तो वे उसके दूतावास पर हमला नहीं करेंगे। साथ ही उसके नागरिकों और दूतावास के अफसरों को भी कोई नुकसान नहीं पहुंचाएंगे। तालिबान के साथ मुख्य अमेरिकी दूत जाल्मय खलीलजाद के नेतृत्व में बातचीत हो रही है।

बताया ये भी जा रहा है कि अमेरिका अफगानिस्तान में आने वाली सरकार (जो तालिबान की ही होगी) को आर्थिक सहयोग लटकाने की धमकी देकर अपने लोगों की सुरक्षा पुख्ता करना चाहता है।

उधर, कतर में चल रही वार्ता में अफगान सरकार के वार्ताकारों ने तालिबान को देश में लड़ाई खत्म करने के बदले सत्ता के बंटवारे के सौदे की पेशकश की है।

अमेरिका ने कहा- 5400 दूतावास कर्मचारी अफगानिस्तान में ही रहेंगे
राष्ट्रपति जो बाइडेन के अफसरों ने जोर देकर कहा कि काबुल दूतावास में उसके करीब 5400 कर्मचरी हैं। इसमें 1400 अमेरिकी हैं, जिन्हें अफगानिस्तान से नहीं हटाया जाएगा। विदेश विभाग ने एक बयान में कहा, ‘हम अफगानिस्तान से अपनी सेना वापस ले रहे हैं, लेकिन हम अफगानिस्तान से नहीं हट रहे हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका अफगानिस्तान के साथ मजबूत राजनयिक संबंध बनाए रखेगा।’

तालिबान को अपनी मान्यता का डर
तालिबान नेतृत्व चाहता है कि अफगानिस्तान पर कब्जे के बाद उसे दुनियाभर के देश मान्यता दें। हालांकि, उसकी नजर विश्व के शक्तिशाली देशों अमेरिका, चीन और रूस की ओर ज्यादा है। तालिबान नेतृत्व चाहता है कि उसे इन देशों से आर्थिक मदद मिले ताकि वो खुद को अफगानिस्तान के शासक के रूप में स्थापित कर सकें। वह इन देशों से सहयोग की मांग भी कर चुका है।

खलीलजाद के प्रयासों को भी इसी मांग का हिस्सा माना जा रहा है। कुल मिलाकर अफगानिस्तान की आने वाली सरकार का भविष्य इन अमीर देशों की शर्तों पर ही तैयार होगा। जर्मनी जैसे देशों ने तालिबान को पहले ही चेतावनी दे डाली है कि अगर वह अफगानिस्तान में कठोर इस्लामी कानून के साथ शासन करता है तो बर्लिन उसे किसी भी प्रकार की सहायता नहीं देगा।

भारत ने भी जारी की एडवायजरी

इस बीच, भारत ने भी अफगानिस्तान में रह रहे अपने नागरिकों के लिए सिक्योरिटी एडवायजरी जारी की है। यह तीसरी एडवायजरी है। वहीं विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहा कि हम आशा करते हैं कि तत्काल युद्धविराम होगा। हम अफगानिस्तान की सभी शांति पहलों का समर्थन कर रहे हैं। हमारी प्राथमिक चिंता उस देश में शांति और स्थिरता है। उन्‍होंने कहा कि तालिबान के साथ चर्चा (प्रश्न) पर, हम सभी हितधारकों, विभिन्न हितधारकों के संपर्क में हैं। मैं आगे कुछ नहीं कहना चाहूंगा।

भारत अपना दूतावास बंद नहीं करेगा
उन्‍होंने कहा कि पिछले साल काबुल में हमारे मिशन ने अफगानिस्तान में हिंदू और सिख समुदाय के 383 से अधिक सदस्यों को भारत वापस लाने में मदद की थी। काबुल में हमारा मिशन अफगान हिंदू और सिख समुदाय के सदस्यों के संपर्क में बना हुआ है और हम उन्हें सभी आवश्यक सहायता का प्रावधान सुनिश्चित करेंगे। अफगानिस्तान में कितने भारतीय हैं के सवाल पर अरिंदम बागचीने कहा कि हमारे पास नंबर नहीं है, लेकिन हम सभी को लौटने की सलाह देंगे, साथ ही यह भी कहा कि काबुल स्थित दूतावास को बंद नहीं किया जा रहा।

तालिबान द्वारा पकड़े गए भारतीय हेलीकॉप्टरों के बारे में विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि कुंदुज में हेलीकॉप्टर के बारे में बात हुई है, जिसे छोड़ दिया गया है। यह अफगानिस्तान का आंतरिक मामला है क्योंकि यह भारतीय वायुसेना का हेलीकॉप्टर नहीं है। यह एक अफगान हेलीकॉप्टर है।

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