खुशी की नई तलाश: मुश्किल विचार दबाएं नहीं, स्वीकार करें; कई बार हम छोटी दिक्कतों को भी मुसीबत मान लेते हैं

खुशी की नई तलाश: मुश्किल विचार दबाएं नहीं, स्वीकार करें; कई बार हम छोटी दिक्कतों को भी मुसीबत मान लेते हैं

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  • Do Not Suppress Difficult Thoughts, Accept Them; Sometimes We Take Even Small Problems As Troubles.

35 मिनट पहलेलेखक: हर्ष गोयनका चेयरमैन, आरपीजी एंंटरप्राइजेज

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खुशी की नई तलाश: मुश्किल विचार दबाएं नहीं, स्वीकार करें; कई बार हम छोटी दिक्कतों को भी मुसीबत मान लेते हैं

हर्ष गोयनका, चेयरमैन, आरपीजी एंंटरप्राइजेज

  • उद्योगपति हर्ष गोयनका भास्कर के पाठकों को बता रहे हैं खुश रहने का तरीका

आपको बॉबी मैक्फेरिन का सुपरहिट गाना ‘डोंट वरी, बी हैप्पी’ तो याद ही होगा…जब भी मैंने इसको सुना, मेरा रुख ऐसा होता था- कहना आसान है, करना कठिन! पर कोविड महामारी के 18 महीनों में, मुझे महसूस हुआ कि मैंने दोबारा खुशी ढूंढ़ ली। कुछ शाम पहले, आसमान में खूबसूरत इंद्रधनुष देखकर मेरा दिल खुशी से झूम उठा।

काले घने बादलों की छांव में रोशनी और रंगों का मनमोहक धनुष आकाश में मुस्कुरा रहा था और मैं सोचने लगा कि चारों तरफ फैली निराशा के बावजूद प्रकृति हमें आनंदित कर रही है। प्रकृति हमें हमेशा उम्मीद और खुशी का संदेश देती आ रही है। पर जिंदगी की अंधी दौड़, अपने काम, धनार्जन और विभिन्न लक्ष्यों को लेकर हमारे जुनून के चलते हम इनसे मुंह मोड़े खड़े हैं।

महामारी आई तो जिंदगी, अचानक थम गई। शुरू-शुरू में, मैं दुनिया में फैली महामारी और इसके भविष्य को लेकर बहुत परेशान था। हम कभी कुछ भी होने की अनिश्चितता में जिए। इसके बाद भी, कुछ खूबसूरत और अचरज भरी घटनाएं घटीं। ऐसा लगा, मानो प्रकृति ने रुकने और जिंदगी को एक नजर देखने को कहा हो। हमने छोटी-छोटी चीजों में खुशियां ढूंढ़ना शुरू किया। परिवार से संबंध बेहतर होते गए। पहली बार, शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान दिया गया।

एक साल पहले क्या कोई सोच सकता था कि किसी अनजान शख्स के लिए ऑक्सीजन सिलेंडर की व्यवस्था करना या गंभीर मरीज के लिए अस्पताल में बेड का बंदोबस्त करना खुशी का कारण होगा? जैसे-जैसे जिंदगियां बचती गईं, जैसे-जैसे हम जरूरतमंदों तक पहुंचे…मदद और दान जैसे छोटे कार्यों से आनंद मिला।

महामारी ने मुझे डेनिश शब्द ‘Hygge’ का महत्व समझाया। इसका उच्चारण ‘hoo-guh’ है, जिसका मतलब है आराम, सांत्वना, रोज होने वाली छोटी-छोटी चीजों में खुश होना, प्रियजनों से घुलना-मिलना, किसी को प्रेम से गले लगाना, जीवन को बेहतर बनाना।

परिस्थितियां बेहतर हो रही हैं, फिर भी महामारी का खौफ है। ऐसे मौके पर अक्सर नकारात्मकता घेर लेती है, जिसे अनदेखा करना आसान नहीं। मैंने अक्सर पाया कि मुश्किल विचारों को दबाने की जगह उन्हें स्वीकारने में समझदारी है। दूसरा चरण है कि आप बुरी से बुरी परिस्थिति के बारे में विचार करें, जिससे जान पाएं कि कितना बुरा हो सकता है। एक बार सबसे मुश्किल परिस्थिति का अंदाजा हो जाता है, तो आप अक्सर पाते हैं कि आप राई का पहाड़ बना रहे हैं। ज्यादातर समस्याएं पहले चरण में खत्म हो जाती हैं। जो बच गई, उनके लिए आप हल निकाल ही लेंगे।

खुश रहने का दूसरा अहम पहलू है खुद से बातें करना। अपनी सारी कोशिशों के बावजूद, अगर आप खुद को नकारात्मकता की ओर ढकेलते जा रहे हैं, तो आपको खुद के अंदर झांकने की जरूरत है। सकारात्मक सोच रखने वाले हर व्यक्ति के लिए यह बुनियादी विश्वास जरूर काम करता है। बदलाव स्वीकारना चाहिए।

यह विश्वास करना चाहिए कि एक दिन यह समय भी गुजर जाएगा। एक और चीज है जो मेरा भरोसा कायम रखती है…वह है, अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास करना और भगवान से दूसरे लोगों का ख्याल रखने की कामना करना। अपने जीने का मकसद ढूंढ़ लेना हर्ष का अपार स्रोत है।

इस महामारी ने साबित किया कि हमारा उद्देश्य हमारे ऊंचे-ऊंचे लक्ष्य न होकर रोज एक-दूसरे की मदद करना और एक-दूसरे का ध्यान रखना है। हम ऐसी दुनिया में जी रहे हैं, जहां किसी से दो पल हमदर्दी से बात करना भी दया का कार्य हो सकता है। उपहार देना खुशी पाने का दूसरा अहम साधन है।

वैदिक परंपरा में दान को इसका स्रोत माना गया है। न सिर्फ दान देनेवाला, बल्कि आस-पास के सभी लोग और दान लेनेवाला सकारात्मक विचारों से भर जाता है। आज कंपनियां कानूनी सीमाओं से आगे बढ़कर समाज और उसके आसपास सामुदायिक हितों को ध्यान में रखकर अपने उद्देश्य की नई परिभाषा गढ़ रही हैं।

जैसे-जैसे महामारी गुजर रही है, हम लोग इस लहर को आखिरी लहर होने की कामना करते हैं। इस महामारी के बाद परिवर्तित परिस्थिति में खुद को ढालने की आजकल चर्चा हो रही है जिसे ‘न्यू नॉर्मल’ कहा जा रहा है। क्या हमें काम पर लौट जाना चाहिए? छुट्टी मनाने के पुराने तरीकों पर लौटना चाहिए? क्या बाहर खाना कम करना चाहिए? क्या आम भारतीय शादियां पुराने अंदाज में भीड़भाड़ भरी होनी चाहिए? जो भी नियम आगे बनते हैं, हमें अपने आसपास सभी को लगातार खुशी देने वाली चीजों की तलाश करनी चाहिए।
खुशी एक फैसला है, जो सभी को लेना पड़ता है

मैं इस विचार के साथ विदा लेता हूं कि खुशी एक फैसला है जो हम सभी को लेना पड़ता है। यह हमारी रोजमर्रा की जिंदगी में होने वाली छोटी-छोटी बातों को अहमियत देने और उन्हें सराहने का निर्णय है- ऐसी छोटी चीजें जिनकी अहमियत हम स्वीकार नहीं करते, जैसे हमारे आसपास प्रकृति की खूबसूरती को सराहना, अपने जीवन में सभी प्रियजनों के लिए कृतज्ञता का भाव रखना और दयालु तथा उदार होने का फैसला करना। आशा करता हूं, आप यह निर्णय अवश्य लेंगे।

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