पेगासस जाजूसी लिस्ट में शामिल पत्रकार बोले: सिर्फ सफाई देने से काम नहीं चलेगा, जब हम अपराधी और देशद्रोही नहीं है तो सरकार बताए कि किसके इशारे पर जासूसी हो रही थी

पेगासस जाजूसी लिस्ट में शामिल पत्रकार बोले: सिर्फ सफाई देने से काम नहीं चलेगा, जब हम अपराधी और देशद्रोही नहीं है तो सरकार बताए कि किसके इशारे पर जासूसी हो रही थी

[ad_1]

नई दिल्ली15 मिनट पहलेलेखक: संध्या द्विवेदी/रवि यादव

  • कॉपी लिंक
पेगासस जाजूसी लिस्ट में शामिल पत्रकार बोले: सिर्फ सफाई देने से काम नहीं चलेगा, जब हम अपराधी और देशद्रोही नहीं है तो सरकार बताए कि किसके इशारे पर जासूसी हो रही थी

पेगासस जासूसी मामले में जारी की गई लिस्ट में 40 पत्रकारों के नाम शामिल हैं। इस लिस्ट में शामिल पत्रकारों का बस एक ही सवाल है कि क्या हम अपराधी हैं, देशद्रोही हैं? आखिर हमारी जासूसी क्यों? वरिष्ठ पत्रकार परंजॉय गुहा ठाकुरता जिनका नाम विवादास्पद लिस्ट में शामिल है, कहते हैं, ‘किसी भी व्यक्ति या फिर निजी संस्था के लिए पेगासस जासूसी नहीं करती। यह किसी सरकारी संस्था के लिए ही काम करती है। अगर यह जासूसी सरकार नहीं करवा रही तो फिर सवाल उठता है कि आखिर यह सरकारी संस्था है कौन? सरकार इस मामले में न हां कह रही है और ना हीं ना। सरकार को इस सरकारी संस्था का पता लगाना ही चाहिए। क्योंकि, इस तरह की जासूसी लोकतंत्र पर हमला है, बहुत बड़ा खतरा है।’

वे कहते हैं, ‘यह कंपनी नशे का व्यापार करने वाले अपराधियों, बच्चों को टारगेट करने वाले पीडोफाइल, बच्चों का अपहरण करने वाले अपराध से जुड़े मामलों की पड़ताल के लिए अपनी सेवाएं प्रदान करती है। तो सवाल उठता है कि क्या हम इनमें से कोई एक हैं?’ वरिष्ठ पत्रकार स्मिता शर्मा, जिनका नाम भी इस लिस्ट में शामिल है। वे कहती हैं कि सरकार कह रही है कि हम इस जासूसी के पीछे नहीं हैं। लेकिन सिर्फ सफाई देने से तो काम नहीं चलेगा। सरकार को इस मामले की जांच करवानी चाहिए ताकि पता चल सके इसके पीछे है कौन?’

वे सवाल उठाती हैं कि अगर केंद्र सरकार इसमें शामिल नहीं है तो क्या गृह मंत्रालय या कोई और सरकारी एजेंसी इसमें शामिल है? क्या कोई राज्य सरकार ऐसा कर रही है या फिर कोई कॉर्पोरेट घराना इसके पीछे है। इसलिए इसकी जांच बेहद जरूरी है ताकि इसके पीछे कौन है ये पता चल सके।

इस सूची में शामिल वरिष्ठ पत्रकार संतोष भारतीय भी इस पूरे जासूसी प्रकरण की जांच सरकार द्वारा करने की मांग करते हैं, वे कहते हैं, सरकार कह रही है कि हमने जासूसी नहीं करवाई, तो यह और भी गंभीर मुद्दा है, क्योंकि फिर यह देश की सुरक्षा व्यवस्था में बड़ी सेंध है।

क्या सरकार से सवाल पूछने वालों की हो रही निगरानी?

स्वतंत्र पत्रकार रूपेश कुमार सिंह एक कदम और आगे बढ़कर सवाल उठाते हैं। वे कहते हैं, ‘आप 40 पत्रकारों की प्रोफाइल उठाकर देखिए, वे सब उनमें शामिल हैं जो सरकार के खिलाफ आवाज उठाते हैं। जनविरोधी नीतियों का भंडाफोड़ करते हैं। मैं लगातार बस्तर में उन आदिवासियों के हक में लिख रहा हूं जिन्हें माओवादी बताकर हत्या की जा रही है। जेल में ठूंसा जा रहा है।’

रूपेश कहते हैं कि 2017 में मैंने झारखंड के गिरिडीह जिले के पारसनाथ पर्वत पर 9 जून को आदिवासी डोली मजदूर मोतीलाल बास्के की CRPF कोबरा द्वारा फर्जी मुठभेड़ में ‘माओवादी’ बताकर की गई हत्या पर खुलकर रिपोर्ट की। मेरी रिपोर्ट के बाद यह मुद्दा नेशनल मीडिया में भी आया। उसके बाद से मुझ पर प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तरह से दबाव बनाया जाना शुरू किया गया। रूपेश की इस बात में दम इसलिए नजर आता है क्योंकि पत्रकारों की सूची उठाकर देखो तो ज्यादातर पत्रकार इसमें वे शामिल हैं जो कहीं न कहीं सरकार या उनके नजदीकियों पर सवाल खड़े करते आए हैं।

न्यूजक्लिक में परंजॉय ने एक सीरीज की थी, जिसमें अडानी के पक्ष में उस वक्त सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस अरुण मिश्रा द्वारा फैसले सुनाने का आरोप तथ्यपरक ढंग से लगाया गया था। इतना ही नहीं, साल 2014 में उनकी एक किताब पब्लिश हुई जिसका शीर्षक था, Gas Wars: Crony Capitalism and the Ambanis. इस किताब ने तहलका मचा दिया था।

2016 में वे इकोनोमिक एंड पॉलिटिकल वीकली (EPW) के संपादक बने। उन्होंने एक आर्टिकल लिखा कि कैसे अडानी ग्रुप को सरकार की नीतियों से फायदा पहुंचा? उसके बाद उन्हें मानहानि का नोटिस भेजा गया। यह कोई छोटा मोटा मसला नहीं था, 500 करोड़ का मामला था। ठाकुरता को मैगजीन से इस्तीफा देना पड़ा। ये केवल बानगी है, ऐसे कई और लेख और किताबें ठाकुरता ने लिखे साथ ही कई डाक्यूमेंट्री भी बनाईं।

द वायर के कई पत्रकारों का नाम इस सूची में शामिल है। द वायर की ‘पत्रकारिता’ से भी आम लोग परिचित ही हैं। लिहाजा यह सवाल उठना जायज है कि क्या उन्हीं पत्रकारों की जासूसी हुई जिन्होंने सरकार या उनके करीबी माने जाने वाले औद्योगिक घरों से सवाल पूछे? स्मिता शर्मा कहती हैं, ‘यह कोई नया मामला नहीं है ऐसा दशकों से होता रहा है अनेक ऐसी सरकारें आईं जिनको अपनी आलोचना पसंद नहीं है और कड़े सवाल पूछा जाना पसंद नहीं है।’

सूची तो अभी जारी हुई पर हमें अंदाजा था कि हमारे फोन पर कोई निगरानी कर रहा है? परंजॉय ठाकुरता कहते हैं, ‘मार्च में चेन्नई से एक आदमी मेरे पास आया था, जिसने मुझसे कहा था आपके फोन की निगरानी की जा रही है।

फोन में कॉल करते वक्त अजीब सी ‘बीप’ सुनाई देती थी

फ्रांस के दो व्यक्तियों ने इसके बाद मुझसे संपर्क साधा और मेरे फोन पर निगरानी होने की बात कही। उन्होंने कहा, ‘आपका डेटा हमें चाहिए होगा, आप चिंता न करें इससे छेड़छाड़ नहीं होगी, यह पूरी तरह सुरक्षित रहेगा।’ जांच के बाद मैं हैरान था क्योंकि मार्च-अप्रैल 2018 से मेरे फोन की निगरानी चालू थी।’

रूपेश कुमार ने भी बताया कि फर्जी मुठभेड़ में एक आदिवासी की हत्या के खिलाफ जब जनांदोलन तेज हो गया, तो मेरे फोन में कॉल करते वक्त अजीब सी ‘बीप’ सुनाई देती थी। 4 जून, 2019 को मैं अपने अधिवक्ता मित्र के साथ रामगढ़ से औरंगाबाद जा रहा था। रास्ते में ही सेंट्रल IB ने मुझे और मेरे ड्राइवर को उठा लिया।

हमें बिहार के गया जिले के तहत आने वाले कोबरा 205 बटालियन के स्थायी कैंप में 2 दिन तक हिरासत में रखा गया। इंटेरोगेशन के दौरान सेंट्रल IB ने मुझे बताया भी कि आपके फोन पर निगरानी की जा रही है। बाद में मेरे ऊपर UAPA की 6 संगीन धाराओं के तहत मुकदमा दर्ज कर जेल में बंद कर दिया गया था।

वरिष्ठ पत्रकार संतोष भारतीय कहते हैं, ‘मेरे पास कनाडा से 2-3 बार फोन आया। लेकिन, बात एक ही बार हुई। मुझे लगा कि यह कोई ट्रैप न हो। मैंने अपने सूत्रों से पता लगाया तो पता चला कि मेरे लेखों से सरकार को दिक्कत है। सरकार चिंतित है क्योंकि मेरे लेखों का असर लोगों के दिमाग तक होता है। इसलिए मुझ पर नजर रखी जा रही है।

खबरें और भी हैं…

[ad_2]

Source link

Published By:

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *