सबसे ज्यादा फायदे में अमरिंदर: शुरू से आंदोलन के पक्ष में डटे रहे कैप्टन; किसानों को दिल्ली कूच से नहीं रोका, मुआवजा मॉडल उन्हीं का
[ad_1]
चंडीगढ़12 घंटे पहले
- कॉपी लिंक
दिल्ली बॉर्डर पर किसान आंदोलन खत्म होने के बाद सबकी नजर पंजाब की सियासत पर है। पंजाब से ही यह आंदोलन शुरू हुआ था। अब पंजाब में 3 महीने बाद विधानसभा चुनाव हो रहे हैं। किसान वोट बैंक को बटोरने की कोशिश सभी दलों ने की लेकिन पंजाब के पूर्व CM कैप्टन अमरिंदर सिंह सबसे फायदे में नजर आ रहे हैं।
कैप्टन अमरिंदर सिंह ही वह शख्स हैं, जिन्होंने आंदोलन को न केवल पंजाब में खड़ा करने में मदद की बल्कि दिल्ली बॉर्डर तक पहुंचा दिया। इसके बाद भी कैप्टन डटकर किसानों के साथ खड़े रहे। आंदोलन खत्म होने से लेकर केस वापसी में भी अमरिंदर भूमिका निभा रहे हैं।
5 महीने पंजाब में चला आंदोलन
किसान आंदोलन की शुरूआत जून महीने में हुई थी। उस वक्त कैप्टन अमरिंदर सिंह पंजाब में मुख्यमंत्री थे। नवंबर महीने तक किसानों ने पंजाब में टोल बंद किए। रेलवे ट्रैक जाम किए। पंजाब में जगह-जगह सड़कों पर धरने लगे लेकिन कैप्टन ने कोई कार्रवाई नहीं की। इसकी जगह कैप्टन भी कानून के विरोध में रहे। उन्होंने विधानसभा में संशोधित कानून तक पास कर गवर्नर को भेज दिया।
पंजाब में 5 महीने तक आंदोलन चला।
कैप्टन से मीटिंग के बाद दिल्ली कूच
पंजाब में किसानों के प्रदर्शन के बाद भी केंद्र ने कानून वापसी पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। इसके बाद चंडीगढ़ में कैप्टन की किसान नेताओं से मीटिंग हुई। जिसके बाद नवंबर महीने के आखिरी हफ्ते में किसानों ने दिल्ली कूच कर दिया। कैप्टन ने सीएम रहते हुए भी किसानों को दिल्ली कूच करते वक्त पंजाब के बॉर्डर पर नहीं रोका। कैप्टन ने बाद में कहा भी था कि केंद्र सरकार ने उन्हें किसानों को रोकने को कहा था लेकिन उन्होंने नहीं रोका।
हरियाणा में लाठीचार्ज हुआ तो भड़के कैप्टन
जब किसान दिल्ली जाने के लिए हरियाणा पहुंचे तो अंबाला और करनाल में पुलिस ने किसानों को रोक लिया। वहां पर लाठीचार्ज हुआ। किसानों पर पानी की बौछार मारी गई। बैरिकेडिंग कर उन्हें रोका गया। यह देख कैप्टन अमरिंदर भड़के उठे और सीधे हरियाणा के सीएम मनोहर लाल खट्टर से ट्विटर पर भिड़ गए।
कैप्टन ने कांग्रेस को भी पंजाब में चिंता में डाल रखा है
मुआवजे का पंजाब मॉडल कैप्टन का ही
आंदोलन में मरे 700 से ज्यादा किसानों के लिए संयुक्त किसान मोर्चा मुआवजे का जो पंजाब मॉडल बता रहा है, वह कैप्टन का ही है। अमरिंदर ने सीएम रहते मृत किसानों के परिवार को 5 लाख की वित्तीय मदद और एक सदस्य को सरकारी नौकरी का वादा किया। हालांकि इसे शुरू करने से पहले कुर्सी चली गई। इसके बावजूद किसान नेता इस बात को जानते हैं कि यह कैप्टन की ही देन है।
कुर्सी गई तो आंदोलन से जोड़ा भविष्य
जब कैप्टन अमरिंदर सिंह की CM की कुर्सी चली गई तो कैप्टन ने फिर से चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया। कैप्टन ने भाजपा से मिलकर चुनाव लड़ने की बात कही लेकिन कहा कि किसान आंदोलन की समाप्ति के बाद ही वह बातचीत करेंगे। इसके बाद बैक डोर से कैप्टन केंद्र सरकार और पंजाब के किसान संगठनों से अनौपचारिक तौर पर बातचीत करते रहे।
हरियाणा के CM खट्टर से मिलते अमरिंदर सिंह।
कॉफी नहीं खट्टर से किसानों पर मुलाकात
कुछ दिन पहले कैप्टन हरियाणा के CM मनोहर लाल खट्टर से मिलने पहुंचे। तब उन्होंने कहा कि कॉपी पर गए थे लेकिन असल सच्चाई यह थी कि किसानों के मुद्दे पर ही कैप्टन वहां पहुंचे थे। कैप्टन पंजाब की सियासी स्थिति बताने के साथ केस वापस लेने पर उसके राजनीतिक फायदे के बारे में बताने गए थे। जिसका बाद में असर भी नजर आया।
कैप्टन ने गन्ने के रेट बढ़ाए तो आंदोलन के दौरान ही किसानों ने उनका मुंह मीठा कराया जबकि किसानों ने राजनीतिक दलों और नेताओं का बहिष्कार कर रखा था।
कैप्टन के साथ किसान नेताओं की अच्छी ट्यूनिंग
कैप्टन के साथ किसान नेताओं की अच्छी पटती है। यह तस्वीर तब भी सामने आई थी जब कैप्टन ने गन्ना किसानों के आंदोलन पर गन्ने का रेट बढ़ाया तो लड्डू खिला कैप्टन का मुंह मीठा कराया गया। यह तस्वीर भी काफी चर्चा में रही। कैप्टन के पंजाब के किसान नेताओं से अच्छे संबंध हैं। आंदोलन खत्म होने के बाद अंदरख़ाने उन्हें इसका सियासी फायदा मिल सकता है।
कैप्टन मंगलवार को पंजाब में BJP के चुनाव प्रभारी केंद्रीय मंत्री गजेंद्र शेखावत इस तरह से सिसवां फार्म हाउस में मिले थे।
पंजाब में कैप्टन-BJP का कामयाब गठजोड़
अगर कैप्टन को किसान आंदोलन का फायदा मिला तो फिर पंजाब चुनाव में उनका BJP से गठजोड़ कामयाब हो सकता है। पंजाब में 77 सीटों पर किसान चुनावी हार-जीत का फैसला करते हैं। ग्रामीण सीटों में किसानों का दबदबा है। यहां से कैप्टन मजबूत होकर बाहर आ सकते हैं। शहरी क्षेत्र में हिंदू वोट बैंक पर भाजपा की अच्छी पकड़ है। कांग्रेस में सीएम और प्रधान सिख चेहरे होने से हिंदू छिटक सकते हैं। अकाली दल पर पहले ही सिखों की पंथक पार्टी का ठप्पा है। ऐसे में शहरी क्षेत्र में भाजपा चौंका सकती है। ऐसे में कैप्टन को इसका बड़ा सियासी फायदा मिल सकता है।
[ad_2]
Source link