संसदीय समिति का प्रस्ताव: शटडाउन का प्रावधान पब्लिक इमरजेंसी- ‘आपात’ क्या है पहले ये तय कर लें तब इंटरनेट शटडाउन का फैसला लें
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नई दिल्ली3 घंटे पहलेलेखक: मुकेश कौशिक
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समिति ने सिफारिश की है कि आपात स्थिति की परिभाषा और शटडाउन के पैरामीटर्स तय किए जाएं।
सरकारों की पहल पर होने वाले इंटरनेट शटडाउन से अकेले टेलीकॉम कंपनियों को हर घंटे 2.45 करोड़ रुपए घाटा होता है। करीब सवा करोड़ रु. प्रतिघंटा अन्य आर्थिक गतिविधियों का नुकसान होता है। इसके अलावा वर्चुअल कारोबार से लेकर अन्य व्यापारिक गतिविधियों पर भी असर होता है। एक अनुमान के अनुसार 2020 में इंटरनेट शटडाउन से करीब 21 हजार करोड़ रु. घाटा हुआ।
पिछले 10 साल में देश में 518 बार नेट शटडाउन किया गया, जो दुनिया में रिकॉर्ड है। टेलीकॉम मंत्रालय से जुड़ी संसद की स्थायी समिति के मुताबिक दूरसंचार नियमों में इंटरनेट शटडाउन का प्रावधान ‘पब्लिक इमरजेंसी’ के लिए है। हालांकि गृह मंत्रालय से जब इसका मतलब पूछा गया तो उनका कहना था कि इसकी व्याख्या तय नहीं है।
इसलिए समिति ने सिफारिश की है कि आपात स्थिति की परिभाषा और शटडाउन के पैरामीटर्स तय किए जाएं। इंटरनेट पूरी तरह बंद करने के बजाय सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स बंद करें। दूरसंचार विभाग ने समिति काे बताया है कि वह सिलेक्टिव शटडाउन की सिफारिश पर गौर कर रहा है। जांच में यह भी पता चला कि इंटरनेट शटडाउन की समीक्षा के लिए राज्य स्तर पर समितियां बन सकती हैं, पर कई राज्यों में नहीं बनी है।
संख्या, कारण, आधार भी दर्ज हों: समिति
- गृह मंत्रालय और दूरसंचार विभाग जल्द ऐसी व्यवस्था करें, जिससे इंटरनेट शटडाउन का देशभर का रिकॉर्ड दर्ज हो। इसमें शटडाउन की संख्या, अवधि, फैसले का आधार भी दर्ज करें।
- शटडाउन अपवाद की स्थिति में ही अपनाया जाए।
- जम्मू-कश्मीर जैसे आतंक प्रभावित राज्य में कम से कम इंटरनेट शटडाउन का सहारा लें।
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