संविधान दिवस पर PM मोदी बोले: आजादी के बाद भी देश में गुलामी के दिनों की सोच मौजूद, ऐसी मानसिकता वाले विकास में रोड़ा अटकाते हैं
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- Even After Independence, The Thinking Of The Days Of Slavery Exists In The Country, People With Such Mentality Obstruct The Development.
नई दिल्लीएक घंटा पहले
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शुक्रवार को 8 घंटे में दूसरी बार संविधान दिवस पर बोले। दिल्ली के विज्ञान भवन में आयोजित कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि आजादी के बाद भी देश में गुलामी के दिनों की सोच मौजूद है। यह मानसिकता अनेक विकृतियों को जन्म दे रही है। ऐसे सोच के लोग कभी बोलने की आजादी के नाम पर तो कभी किसी अन्य चीज का सहारा लेकर देश के विकास में रोड़ा अटका रहे हैं।
प्रधानमंत्री ने कहा- सुबह मैं विधायिका और कार्यपालिका के साथियों के साथ था। और अब न्यायपालिका से जुड़े आप सभी विद्वानों के बीच हूं। हमें गुलामी की मानसिकता और इनसे उत्पन्न विकृतियों को दूर करना ही होगा।
हम सभी की अलग-अलग भूमिकाएं, अलग-अलग जिम्मेदारियां, काम करने के तरीके भी अलग-अलग हो सकते हैं, लेकिन हमारी आस्था, प्रेरणा और ऊर्जा का स्रोत एक ही है- हमारा संविधान।
सरकार और न्यायपालिका, दोनों का ही जन्म संविधान की कोख से हुआ है। इसलिए, दोनों ही जुड़वां संतानें हैं। संविधान की वजह से ही ये दोनों अस्तित्व में आए हैं। इसलिए, व्यापक दृष्टिकोण से देखें तो अलग-अलग होने के बाद भी दोनों एक दूसरे के पूरक हैं।
हमारी सरकार ने विकास में कभी भेद नहीं किया
आजादी के लिए जीने-मरने वाले लोगों ने जो सपने देखे थे, उन सपनों के प्रकाश में और हजारों साल की भारत की महान परंपरा को संजोए हुए हमारे संविधान निर्माताओं ने हमें संविधान दिया। सबका साथ-सबका विकास, सबका विश्वास-सबका प्रयास, ये संविधान की भावना का सबसे सशक्त उदाहरण है। संविधान के लिए समर्पित सरकार, विकास में भेद नहीं करती और ये हमने करके दिखाया है।
कोलोनियल माइंडसेट विकास में सबसे बड़ी बाधा
पीएम ने कहा- सरदार पटेल ने मां नर्मदा पर सरदार सरोवर डैम का सपना देखा था, पंडित नेहरु ने इसका शिलान्यास किया था। लेकिन ये परियोजना दर्शकों तक राजनीति में फंसी रही। पर्यावरण के नाम पर चले आंदोलन में फंसी रही। न्यायालय तक इसमें निर्णय लेने से हिचकते रहे। लेकिन उसी नर्मदा के पानी से कच्छ हिंदुस्तान में तेज गति से आगे बढ़ रहे जिलों में से एक बन गया है।
दुर्भाग्य यह है कि हमारे देश में भी ऐसी ही मानसिकता के चलते अपने ही देश के विकास में रोड़े अटकाए जाते हैं। कभी फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन के नाम पर तो कभी किसी और चीज का सहारा लेकर। आजादी के आंदोलन में जो संकल्पशक्ति पैदा हुई, उसे और अधिक मजबूत करने में ये कोलोनियल माइंडसेट बहुत बड़ी बाधा है।
इसी तरह पेरिस समझौते के लक्ष्यों को समय से पहले प्राप्त करने की ओर अग्रसर हम एकमात्र देश हैं। फिर भी ऐसे भारत पर पर्यावरण के नाम पर भांति-भांति के दबाव बनाए जाते हैं। यह सब, उपनिवेशवादी मानसिकता का ही परिणाम है।
गरीबों की मदद से राष्ट्र निर्माण में भागीदारी का एहसास होता है
कोरोना काल में पिछले कई महीनों से 80 करोड़ से अधिक लोगों को मुफ्त अनाज सुनिश्चचित किया जा रहा है। PM गरीब कल्याण अन्न योजना पर सरकार 2 लाख 60 हजार करोड़ रुपए से अधिक खर्च करके गरीबों को मुफ्त अनाज दे रही है। अभी कल ही हमने इस योजना को अगले साल मार्च तक के लिए बढ़ा दिया है।
जब देश का सामान्य मानवी, देश का गरीब विकास की मुख्यधारा से जुड़ता है, जब उसे समान मौके मिलते हैं, तो उसकी दुनिया पूरी तरह बदल जाती है। जब रेहड़ी, पटरी वाले भी बैंक क्रेडिट की व्यवस्था से जुड़ता है, तो उसे राष्ट्र निर्माण में भागीदारी का एहसास होता है।
गरीब से गरीब को भी क्वालिटी इन्फ्रास्ट्रक्चर मिल रहा है
आज गरीब से गरीब को भी क्वालिटी इन्फ्रास्ट्रक्चर तक वही एक्सेस मिल रहा है, जो कभी साधन संपन्न लोगों तक सीमित था। आज लद्दाख, अंडमान और नॉर्थ ईस्ट के विकास पर देश का उतना ही फोकस है, जितना दिल्ली और मुंबई जैसे मेट्रो शहरों पर है।
पुरुषों की तुलना में बेटियों की संख्या बढ़ रही
जेंडर इक्विलिटी की बात करें तो अब पुरुषों की तुलना में बेटियों की संख्या बढ़ रही है। गर्भवती महिलाओं को अस्पताल में डिलीवरी के ज्यादा अवसर उपलब्ध हो रहे हैं। इस वजह से माता मृत्यु दर, शिशु मृत्यु दर कम हो रही है।
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