राहुल गांधी पर दिखाई ट्विटर ने सख्ती, एक गलती पर की बड़ी कार्रवाई

राहुल गांधी पर दिखाई ट्विटर ने सख्ती, एक गलती पर की बड़ी कार्रवाई

[ad_1]

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज घोषणा की है कि राजीव गांधी खेल रत्न अवॉर्ड का नाम अब मेजर ध्यानचंद खेल रत्न अवॉर्ड होगा। पीएम मोदी ने कहा कि देशवासियों के आग्रह के बाद उन्होंने यह फैसला लिया है। यह पुरुस्कार देश का सबसे बड़ा खेल सम्मान है। पहली बार यह पुरस्कार 1991-92 में दिया गया था। शतरंज खिलाडी विश्वनाथन आनंद को पहली बार इस पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।

क्यों ध्यानचंद को कहा जाता है ‘हॉकी का जादूगर’ 

मेजर ध्यानचंद का जन्म 29 अगस्त 1905 को प्रयागराज में हुआ था। भारत में यह दिन राष्ट्रीय खेल दिवस के रूप में मनाया जाता है। ध्यानचंद का असली नाम ध्यान सिंह था। ध्यानचंद सिर्फ 16 साल की उम्र में भारतीय सेना में भर्ती हो गये थे। वे ड्यूटी के बाद चांद की रोशनी में हॉकी की प्रैक्टिस करते थे, इसलिए उनका नाम  ध्यानचंद पड़ा. उनके खेल की बदौलत ही भारत ने 1928, 1932 और 1936 के ओलिंपिक में गोल्ड मेडल जीता था। 1928 में एम्सटर्डम ओलिंपिक में उन्होंने सबसे ज्यादा 14 गोल किए। उस दौरान एक स्थानीय अखबार ने लिखा, ‘यह हॉकी नहीं, जादू था और ध्यानचंद हॉकी के जादूगर हैं।’ तभी से उन्हें हॉकी का जादूगर कहा जाने लगा। ध्यानचंद ने अपने अंतरराष्ट्रीय करियर के दौरान 185 मैंचो में 570 गोल किये। 

हॉकी स्टिक तोड़कर की गयी जांच 

ध्यानचंद के खेल कौशल पर शंका करते हुए नीदरलैंड में इस महानतम हॉकी खिलाड़ी को अपमानित भी किया गया था और वो भी उनकी हॉकी स्टिक तोड़कर। ये बात उस वक्त की है, जब ध्यानचंद 16 साल के थे। नीदरलैंड में खेल अधिकारियों को ध्यानचंद की हॉकी स्टिक में चुंबक होने की आशंका नजर आई, जिसके बाद उन्होंने इसे तोड़ा और जांचा, लेकिन उनको ऐसा कुछ भी नहीं मिला ।

विश्वपटल पर बनाई पहचान

अपने जमाने में ध्यानचंद  ने किस हद तक अपना लोहा मनवाया होगा इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि वियना के स्पोर्ट्स क्लब में उनकी एक मूर्ति लगाई गई है जिसमें उनके चार हाथ और उनमें चार स्टिकें दिखाई गई हैं, मानों कि जैसे वो कोई देवता हों। लंदन के एक ट्यूब स्टेशन का नाम ध्यानचंद के नाम पर रखा गया है।

नंगे पैर किया धमाल 

साल 1936 में ओलंपिक खेलों के दौरान जर्मनी के खिलाफ ध्यानचंद मुकाबला खेल रहे थे। इस बीच उनके स्पाइक्स वाले जूते और यहां तक की मोजे तक उतरवा दिए गए थे  वह दूसरे हाफ में नंगे पैर ही खेले और तीन गोल भी दागे ।

अमेरिका को रिकॉर्ड 24-1 से दी मात 

1932 ओलंपिक में 4 अगस्त को भारत ने जापान के खिलाफ अपना पहला मैच खेला और 11-1 से जीत हासिल की। 11 अगस्त को फाइनल में भारत मेजबान अमेरिका के खिलाफ खेला। भारत ने 24-1 से विश्व रिकॉर्ड बनाते हुए जीत हासिल की और एक बार फिर स्वर्ण पदक अपने नाम किया। चंद ने 8, रूप सिंह ने 10 गोल किये थे

ध्यानचंद की शिकायत पर गोल पोस्ट को नापा गया

एक मैच में लगातार कईं प्रयासों के बाद भी ध्यानचंद गोल करने में नाकाम रहे। ऐसा उनके साथ पहले कभी नहीं हुआ था। वो बार-बार कोशिश करते पर उनकी गेंद गोल पोस्ट के कार्नर से टकराकर वापस हो जाती।

ध्यानचंद के खेल पर न तो दर्शकों और न ही किसी खिलाड़ी को शक था। आखिरकार उन्होंने गोल पोस्ट की लम्बाई को लेकर रेफरी से शिकायत की। उनकी इस शिकायत पर सब हैरान थे। हॉकी के खेल इतिहास में ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था। ध्यानचंद की शिकायत पर जब गोल पोस्ट को नापा गया, तो नियमों के मुताबिक गोल पोस्ट छोटा था। 

हिटलर के ऑफर को ठुकराया

 1936 बर्लिन ओलंपिक में भारत और जर्मनी के बीच हुए मुकाबले में पहले हाफ में जर्मनी ने भारत को एक भी गोल नहीं करने दिया। इसके बाद दूसरे हाफ में भारतीय टीम ने दवाब बनाते हुए एक के बाद एक गोल दागने शुरु किए और जर्मनी को चारो खाने चित कर दिया।

इस मैच के खत्म होने से पहले ही हिटलर ने स्टेडियम छोड़ दिया था क्योंकि वो अपनी टीम को हारते हुए नहीं देखना चाहता था। इतना ही नहीं इस मैच के दौरान हिटलर ने मेजर ध्यानचंद की हॉकी स्टिक भी चेक करने के लिए मंगवाई। बताया जाता है कि मैच के बाद मेजर ध्यानचंद को हिटलर ने मिलने के लिए बुलाया और उन्हें जर्मन आर्मी में सीनियर पोस्ट ऑफर की। लेकिन ध्यानचंद ने इसे सिरे से नकार दिया था।

 

[ad_2]

Source link

Published By:

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *