भास्कर EXPLAINER: देश में सिर्फ गंभीर मर्ज वालों को बूस्टर डोज की तैयारी
[ad_1]
- Hindi News
- National
- Bhaskar EXPLAINER Preparation Of Booster Dose Only For Those With Serious Merges In The Country
43 मिनट पहलेलेखक: इमरान होथी
- कॉपी लिंक
अमेरिका-ब्रिटेन समेत दुनिया के दर्जनों देशों में कोरोना के खिलाफ बूस्टर डोज लगनी शुरू हो चुकी हैं। इजरायल में तो 40% वयस्क आबादी को बूस्टर डोज लगाई जा चुकी हैं। भारत में भी इसे लेकर चर्चा शुरू हो चुकी है। भारत में बूस्टर डोज लगनी चाहिए या नहीं? लगे भी तो सही समय क्या होना चाहिए? किन लोगों को लगनी चाहिए? जैसे कई सवालों पर भास्कर के पवन कुमार ने देश के प्रमुख विशेषज्ञों से बातचीत की। पेश हैं प्रमुख अंश…
बूस्टर डोज क्या, क्यों लगाई जाती है?
दर्जनों देशों में कोरोना के खिलाफ इम्यूनिटी को बूस्ट करने के लिए बूस्टर डोज लग रही हैं। बूस्टर डोज वैक्सीन की दोनों डोज लगने के कम से कम 6 महीने बाद लगती है। वैक्सीन कंपनियां दावा करती हैं कि जब टीके का असर खत्म होने लगता है कि बूस्टर डोज बेहद जरूरी है। हालांकि, देश-दुनिया के कई विशेषज्ञ ऐसा नहीं मानते।
क्या भारत में बूस्टर डोज जरूरी है?
विशेषज्ञ अभी इसे लेकर एकमत नहीं हैं। कुछ कहते हैं कि बूस्टर डोज तब लगनी चाहिए, जब भविष्य में भी संक्रमण का खतरा हो। देश की मौजूदा स्थिति को देखते हुए माना जा रहा है कि संक्रमण अब नियंत्रण में है। ऐसे में सभी को बूस्टर डोज लगाने का फैसला करना फायदेमंद नहीं होगा।
बूस्टर डोज का फैसला कैसे होगा?
भारत में बूस्टर डोज की जरूरत है या नहीं, यह जानने के लिए पहले पर्याप्त आंकड़े उपलब्ध करने होंगे। हमें यह देखना होगा कि जिन लोगों को पहले संक्रमण हुआ था, उनमें से कितनों को दोबारा संक्रमण हो रहा है? जिन्हें संक्रमण हो रहा है, वे गंभीर रूप से बीमार पड़ रहे हैं या साधारण फ्लू जैसी स्थिति है? क्योंकि, वैक्सीन संक्रमण की गंभीरता को कम करने में कारगर है। अगर गंभीर रूप से बीमार पड़ने वालों का औसत बहुत कम है तो पूरी आबादी को बूस्टर डोज लगवाना सही नहीं हो सकता।
संक्रमण बढ़ता है तो भी क्या सभी को बूस्टर की जरूरत नहीं पड़ेगी?
इसी बात पर केंद्र सरकार की एक्सपर्ट कमेटी मंथन कर रही है। वह जल्द ही कोई पॉलिसी डॉक्यूमेंट पेश कर सकती है। लेकिन, क्लीनिकल समझ यही कहती है कि सभी लोगों को बूस्टर डोज की जरूरत नहीं पड़ती। क्योंकि, सीरो सर्वे बता रहे हैं कि देश की ज्यादातर आबादी संक्रमित हो चुकी है, करीब-करीब आधी आबादी को वैक्सीन की सिंगल डोज भी लग चुकी है और अभी तक वे ठीक हैं।
जिनका इम्यून सिस्टम कमजोर है या उन्हें पहले से कोई गंभीर बीमारी है, उन्हें बूस्टर डोज लगवाने के बारे में सोचा जा रहा है। जब जनवरी में टीकाकरण शुरू हुआ था तो ऐसे करीब दो करोड़ लोगों की पहचान हुई थी।
गंभीर बीमारियों वालों के अलावा और किन्हें बूस्टर डोज दे सकते हैं?
बुजुर्गों को। क्योंकि, 60 साल से ज्यादा उम्र वालों में कोरोना से होनी वाली मौतों की दर सबसे ज्यादा है। वैक्सीन गंभीर रूप से बीमार पड़ने से बचाती है, इसलिए बुजुर्गों को सुरक्षित रखने के लिए बूस्टर डोज लगवाई जा सकती है। इजरायल, तुर्की जैसे छोटे देशों को छोड़ दें तो अभी दुनिया के किसी भी देश में पूरी आबादी को बूस्टर डोज नहीं लग रही हैं। सिर्फ बुजुर्गों और गंभीर बीमारियों वालों को बूस्टर डोज लग रही हैं।
वैक्सीन कब तक सुरक्षा देती है?
कोरोना होने के बाद शरीर में जो एंटीबॉडी बनती है, वह वैक्सीन से बनने वाली एंटीबॉडी के मुकाबले ज्यादा समय तक रहती है। दुनिया में अभी तक प्रकाशित रिसर्च बताती हैं कि संक्रमित होने के बाद कम से कम एक साल तक एंटीबॉडी रहती है।
जिन्हें टीका लगे 8-9 महीने हो गए, क्या उनमें एंटीबॉडी कम हो गई है?
भारत में अभी इस पर स्टडी नहीं हुई है। एक्सपर्ट कमेटी ऐसे ही सवालों के जवाब तलाशने में जुटी है। अभी यह माना जा रहा है कि एंटीबॉडी 6 माह बाद घटने लगती है।
- प्रो. संजय रॉय, कम्यूनिटी मेडिसिन, एम्स दिल्ली
- प्रो. जुगल किशोर, एचओडी कम्यूनिटी मेडिसन, सफदरजंग अस्पताल दिल्ली
- डॉ. नरेंद्र अरोड़ा, चेयरमैन, कोविड-19 वर्किंग ग्रुप, केंद्र सरकार।
[ad_2]
Source link