भास्कर एक्सप्लेनर: दो अलग वैक्सीन को मिक्स और मैच किया जा रहा, क्योंकि इससे प्रतिरोधकता में इजाफा हो रहा है

भास्कर एक्सप्लेनर: दो अलग वैक्सीन को मिक्स और मैच किया जा रहा, क्योंकि इससे प्रतिरोधकता में इजाफा हो रहा है

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7 मिनट पहले

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भास्कर एक्सप्लेनर: दो अलग वैक्सीन को मिक्स और मैच किया जा रहा, क्योंकि इससे प्रतिरोधकता में इजाफा हो रहा है

डॉ. जुगल किशोर, एचओडी कम्युनिटी मेडिसिन, सफदरजंग अस्पताल, दिल्ली

कोरोना वायरस का डेल्टा वैरिएंट तेजी से फैल रहा है। वायरस के म्यूटेशन को देखते हुए अलग-अलग वैक्सीन को मिक्स और मैच करने का ट्रायल कई देशों में हो रहा है। विशेषज्ञों का मानना कि ऐसा करने से टीके का असर बढ़ सकता है। ताजा कड़ी में कोविशील्ड व कोवैक्सीन को भारत में, जबकि कई देशों ने दूसरी वैक्सीन के मिक्सिंग की मंजूरी मिली है। यहां मिक्सिंग से जुड़े सवाल और जवाब…

कोरोना टीकों के मिक्सिंग और मैचिंग में क्या शामिल है?
मिक्स और मैच में पहली खुराक के लिए एक ब्रांड को पहले डोज के लिए चुना जाता है। वहीं, दूसरे ब्रांड की वैक्सीन को दूसरे डोज के लिए चुना जाता है। ऐसा करने से इससे शरीर की प्रतिरोधक क्षमता में इजाफा हो सकता है।

दुनिया में किन-किन देशों ने ऐसी प्रक्रिया की शुरुआत की है?
नॉर्वे ने एस्ट्राजेनेका-फाइजर/मॉडर्ना वैक्सीन को मिक्स कर शुरुआत की थी। अब चीन, भूटान, इटली, बहरीन, द. कोरिया, यूएई, वियतनाम, फिनलैंड, फ्रांस, रूस, स्पेन, स्वीडन, ब्रिटेन, अमेरिका, कनाडा, थाईलैंड, इंडोनेशिया इसे आगे बढ़ा रहे हैं।

क्या इस मिक्सिंग से काेई फायदा हो सकता है?
कई विशेषज्ञ वैक्सीन मिक्सिंग का समर्थन कर रहे हैं। पहली वजह- कई परिणामों में प्रतिरोधकता और एंटीबॉडी बढ़ने के संकेत मिले हैं। हालांकि इसके विस्तृत अध्ययन अभी तक बाकी हैं। दूसरी- डेल्टा वैरिएंट पर मौजूदा टीकों का असर कम है। ऐसे मिक्सिंग से असर बढ़ने की उम्मीद बंध रही है।

विशेषज्ञ दो टीकों के मिक्स और मैच के खिलाफ क्यों हैं?
अभी उपलब्ध डेटा और सुरक्षा की कमी का हवाला देकर कुछ विशेषज्ञ व डॉक्टर इस बारे में नीति लागू करने के खिलाफ हैं। टीकाकरण अभियान जब शुरू हुआ था, तभी से वे कहते आए हैं कि लाभार्थियों को सिर्फ एक वैक्सीन के डोज लगें।

क्या ऐसा करना सुरक्षित है?
अभी तक कई क्लिनिकल ट्रायल के इम्यूनोजेनेसिटी और सहनशीलता के परिणामों से पता चला है कि वैक्सीन मिक्सिंग का प्रतिकूल असर नहीं हुआ है। इससे प्रतिरक्षा शक्ति बढ़ाने में मदद ही मिली है। हालांकि मिक्स वैक्सीन से सुरक्षा के पक्ष में अभी तक पर्याप्त डेटा नहीं है।

मिक्स एंड मैच वैक्सीन के ट्रायल में परिणाम कैसे रहे?
नॉर्वे ने फरवरी में फाइजर और एस्ट्राजेनेका वैक्सीन से मिक्सिंग शुरू किया था। उसके परिणाम की प्रतीक्षा है। फिनलैंड ने मार्च में एस्ट्राजेनेका और एक अन्य वैक्सीन की मिक्सिंग की थी। आरंभिक तौर पर जिन देशों ने मिक्स वैक्सीन दी, उनके असर बेहतर पाए गए।

क्या कोई ऐसा कॉम्बिनेशन है, जो सबसे प्रभावी हो?
जहां सिनोवैक लग रही है, वहां दूसरे डोज में एस्ट्राजेनेका देने की सलाह है। जहां एस्ट्राजेनेका लगी, वहां फाइजर या मॉडर्ना को मिक्स किया जा रहा है। अब तक सबसे प्रभावी उपाय एमआरएनए यानी मॉडर्ना-एस्ट्राजेनेका की मिक्सिंग है।

क्या कोरोना से पहले भी वैक्सीन की मिक्सिंग की कवायद हुई?
जी हां, मिक्सिंग पहले भी हुई है। 1990 के दशक में एचआईवी रिसर्च में दो वैक्सीन डोज को परखा गया। हालांकि यह बेहद जटिल रही। उसमें पता करने की कोशिश की गई कि टी सेल और बी सेल प्रतिरोधकता बढ़ाती हैं या नहीं।

दुनिया में मिक्स एंड मैच की पाॅलिसी कब तक आ सकती है?
विश्व स्वास्थ्य संगठन का रुख अभी मिक्स एंड मैच के पक्ष में नहीं है। इसके ट्रायल और परिणाम में वक्त लग सकता है। इस कारण नीति आने में समय लगना तय है।

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