भास्कर एक्सक्लूसिव: भीमा कोरेगांव हिंसा के आरोपी स्टेन स्वामी 7 महीने जेल में रहे; लेकिन एक बार भी NIA ने पूछताछ नहीं की, इलाज में भी बरती गई लापरवाही

भास्कर एक्सक्लूसिव: भीमा कोरेगांव हिंसा के आरोपी स्टेन स्वामी 7 महीने जेल में रहे; लेकिन एक बार भी NIA ने पूछताछ नहीं की, इलाज में भी बरती गई लापरवाही

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नई दिल्लीएक घंटा पहलेलेखक: संध्या द्विवेदी

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कैथोलिक प्रीस्ट स्टेन स्वामी की मौत के बाद कई सवाल उठ रहे हैं। दरअसल उनकी मौत भले ही अस्पताल में हुई हो लेकिन वे एक कैदी थे। दो बार उनकी बेल याचिका दायर की जा चुकी थी। कहा जा रहा है कि उनकी मौत पोस्ट-कोविड के बाद हुई मेडिकल लापरवाही से हुई है। उनके वकील, परिचित और स्वामी खुद लगातार कोर्ट से सेहत ठीक न होने और इलाज में बरती जा रही लापरवाही की वजह से जेल से रिहा होने की गुहार लगा रहे थे।

मेडिकल बैकग्राउंड के आधार पर लगाई गई बेल में स्वामी ने साफ कहा था कि अगर मुझे अंतरिम जमानत पर रिहा नहीं किया गया तो ‘मैं बिना इलाज मर जाऊंगा’। बावजूद इसके उनकी जमानत याचिका रद्द हो गई। हालांकि उन्हें 28 मई को अस्पताल भेजा गया। लेकिन, इलाज के दौरान वेंटिलेटर पर उनकी मौत हो गई। उनके साथी और वकील सदमे में हैं। क्योंकि उनकी मौत जिस वक्त हुई उसके ठीक एक घंटे बाद तीसरी बार दाखिल गई याचिका पर हाई कोर्ट में सुनवाई होनी थी।

कोर्ट में उनका केस लड़ रहे एडवोकेट मिहिर देसाई ने दैनिक भास्कर से खास बातचीत करते हुए बताया, ‘इस बार हमें यकीन था कि उनकी खराब होती हालत को देखते हुए कोर्ट स्वामी के पक्ष में फैसला देगा। वे कई दिनों से वेंटिलेटर पर थे। 5 जून दोपहर 2.30 में केस की सुनवाई होनी थी। हम सभी उत्साहित थे। लेकिन, 1.30 बजे उनकी मौत की खबर ने सबको स्तब्ध कर दिया।

एल्गार परिषद के कार्यक्रम में भड़काऊ भाषण देने के आरोप में स्टेन स्वामी को पिछले साल अक्टूबर में NIA ने गिरफ्तार किया था।

एल्गार परिषद के कार्यक्रम में भड़काऊ भाषण देने के आरोप में स्टेन स्वामी को पिछले साल अक्टूबर में NIA ने गिरफ्तार किया था।

NIA की भूमिका पर भी सवाल

मिहिर देसाई कहते हैं कि 8 अक्टूबर, 2020 को स्टेन को NIA पूछताछ के लिए रांची स्थित उनके घर से ले गई। 23 अक्टूबर को उन्हें तलोजा जेल भेजा गया। सात महीने से भी ज्यादा वे जेल में रहे। लेकिन उनसे एक बार भी NIA ने पूछताछ नहीं की। क्यों? 28 मई, 2021 को उनकी बिगड़ती हालत को देखते हुए उन्हें होली फैमिली अस्पताल में भर्ती किया गया।

ट्रायल कोर्ट में स्टेन के वकील रहे शरीफ शेख भी एडवोकेट मिहिर देसाई से बिल्कुल सहमत नजर आते हैं। वे कहते हैं, ‘पड़ताल की मंशा थी तो पूछताछ में इतनी हीलाहवाली क्यों? इतना ही नहीं कोविड संक्रमण होने पर उनके इलाज को लेकर भी लापरवाही बरती गई।’

मौत के बाद भी इंसाफ की लड़ाई जारी रहेगी

एडवोकेट देसाई कहते हैं, ‘मौत के बाद भी स्टेन के लिए इंसाफ की लड़ाई जारी रहेगी। उनकी मौत कैद रहते हुए हुई है। इसलिए उनके खिलाफ लगे आरोपों के खिलाफ लड़ाई लड़ी जाएगी। एडवोकेट शेख कहते हैं, ‘फिलहाल हमारी मांग डेड बॉडी का पोस्टमार्टम करते वक्त वीडियो रिकॉर्डिंग करने की है। ताकि मेडिकल रिपोर्ट से कोई छेड़छाड़ न हो।’

शरीफ कहते हैं, ‘इतनी बड़ी जेल के कैदियों के लिए वहां किसी काबिल डॉक्टर की नियुक्ति तक नहीं है। केवल एक आयुर्वेद का डॉक्टर एलोपैथी की दवाएं कैद मरीजों को प्रिस्क्राइब करता है। क्या इसे कैदियों के मानवाधिकार का हनन नहीं कहेंगे?’

अस्पताल में बुनियादी चीजें भी नहीं थीं

एडवोकेट शरीफ शेख कहते हैं, ‘स्टेन स्वामी पार्किन्सन डिजीज से जूझ रहे थे। यह बीमारी नर्वस सिस्टम को ब्रेक कर देती है। दिमाग से शरीर के दूसरे सिस्टम तक जाने वाले मैसेज टूट-टूटकर पहुंचने लगते हैं। लिहाजा मरीज के हाथ कांपते हैं। वह कोई काम ठीक से नहीं कर पाता।’

स्टेन स्वामी ने एक एप्लीकेशन डाली थी कि उन्हें चाय या कुछ भी पीने के लिए एक स्ट्रॉ मुहैया करवाई जाए लेकिन वो भी उन्हें नहीं दी गई।’ शेख कहते हैं कि कोविड होने के दौरान स्टेन ने बताया था कि यहां कैदियों की देखरेख में लापरवाही हो रही है। उनकी तबीयत लगातार बिगड़ रही है। मेडिकल बैकग्राउंड पर डाली गई याचिका को भी रद्द कर दिया गया।

कैदियों के मानवाधिकारों से लगातार हो रहा खिलवाड़

एडवोकेट शरीफ शेख कहते हैं, ‘अभी मैं तकरीबन UAPA के तहत आरोप झेल रहे 12-15 लोगों का केस लड़ रहा हूं। ज्यादातर मामलों में इन आरोपियों के साथ बहुत खराब बर्ताव जेल में होता है। इनके मानवाधिकार खत्म कर दिए जाते हैं।’ वे बताते है,’जेल के अधिकारी इनकी बेसिक जरूरत वाली चीजों को भी मुहैया नहीं करवाते। यानी आरोप होने से पहले इन्हें आतंकवादी मानकर जेल प्रशासन इनके साथ बदतर बर्ताव करता है। कानून तो गुनहगार के भी मानवाधिकारों की रक्षा करने का है। फिर ये लोग तो अभी सिर्फ आरोपी ही हैं। आखिर इनके मानवाधिकारों को खत्म करने का अधिकार जेल प्रशासन को किसने दिया?’

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