भारत में ‘फेकबुक’ की शक्ल ले चुका है फेसबुक: फेसबुक की आंतरिक रिपोर्टों के हवाले से समाचार संस्थानों के वैश्विक समूह का खुलासा
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न्यूयॉर्कएक घंटा पहलेलेखक: शीरा फ्रेंकेल/दैवेइ अल्बा
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भारत में फेसबुक साफ तौर पर ‘फेकबुक’ (फर्जी सामग्री की पुस्तक) की शक्ल ले चुका है।
वैसे तो पूरी दुनिया में फेसबुक पर फर्जी खबरों और भड़काऊ सामग्री को अनदेखा करने का आरोप लगता है। लेकिन, भारत में यह प्लेटफॉर्म ‘फेकबुक’ (फर्जी सामग्री की पुस्तक) की शक्ल लेता जा रहा है। यह निष्कर्ष किसी और का नहीं, बल्कि फेसबुक की ही एक दर्जन अंदरूनी रिपोर्टों और अध्ययनों का है। ये अध्ययन फेसबुक के कर्मचारियों और शोधार्थियों ने किए हैं। समाचार संस्थानों के एक वैश्विक समूह ने ‘फेसबुक पेपर्स’ के नाम से ये सारी जानकारियां सार्वजनिक की हैं।
इस समूह में ‘द न्यूयॉर्क टाइम्स’ भी शामिल है। फेसबुक की पूर्व प्रोडक्ट मैनेजर फांसेस हॉजेन ने इन रिपोर्टों-अध्ययनों के दस्तावेज जुटाए हैं। इनके आधार पर वे लगातार फेसबुक की कार्य-संस्कृति, अंदरूनी खामियों आदि से जुड़े खुलासे कर रही हैं। उनके द्वारा सार्वजनिक किए गए ‘फेसबुक पेपर्स’ के मुताबिक भारत में फर्जी अकाउंट्स से झूठी खबरों के जरिए चुनावों को प्रभावित किया जाता है।
इसकी पूरी जानकारी फेसबुक को है। लेकिन, उसने इतने संसाधन ही नहीं बनाए कि वह इस गड़बड़ी को रोक सके। इस तरह की सामग्री को रोकने के लिए कंपनी ने जितना बजट तय किया है, उसका 87% सिर्फ अमेरिका में खर्च होता है। फेसबुक की प्रवक्ता एंडी स्टोन भी मानतीं हैं- ‘भारत में समुदाय विशेष के खिलाफ दुष्प्रचार का मसला लगातार बना हुआ है। इसे नियंत्रित करने के लिए हम तकनीक उन्नत कर रहे हैं।’
भारतीय भाषा, संस्कृति और राजनीति की समझ भी नहीं
फेसबुक ने भारत में विस्तार से पहले यहां की 22 मान्यता प्राप्त भाषाओं की समझ विकसित नहीं की। यहां की संस्कृति, राजनीति और उसके प्रभाव के बारे में कोई आकलन नहीं किया। कंपनी इसका भी पूर्वानुमान नहीं लगा सकी कि भारत जैसे बड़े देश में करोड़ों उपयोगकर्ताओं (वर्तमान में करीब 34 करोड़) को वह कैसे संभालेगी। उसे इसमें कितने संसाधन और धन की जरूरत होगी। इसी कारण अब फेसबुक खुद की प्रतिष्ठा और छवि को बचाने की मुद्रा में है।
ऐसा कंटेंट भी – समुदाय विशेष की जानवरों से तुलना, महिलाओं से दुष्कर्म के सुझाव के दावे
- एक आंतरिक दस्तावेज का शीर्षक ‘एडवर्सेरियल हार्मफुल नेटवर्क्स: इंडिया केस स्टडी’ है। इसमें लिखा है कि भारत में ऐसे कई समूह और पेज हैं, जिन पर भड़काऊ सामग्री परोसी जाती है। समुदाय विशेष के खिलाफ बयानबाजी, प्रचार सामग्री आदि रहती है। उस समुदाय की तुलना जानवरों से की जाती है। एक धर्म से जुड़ी सामग्री के बारे में भी दुष्प्रचार किया जाता है। यहां तक कहा जाता है कि इस सामग्री में दूसरे धर्म के लोगों को प्रताड़ित करने और उनकी महिलाओं के साथ दुष्कर्म करने का सुझाव दिया गया है।
- फेसबुक पर भारत में ऐसे खातों का वर्चस्व है, जिनके पेजों पर प. बंगाल और पाकिस्तान से लगे सीमाई मुस्लिमों की बढ़ती आबादी के मसले प्रमुखता से उठाए जाते हैं। कथित तौर पर देश में अवैध रूप से रह रहे मुस्लिमों को बाहर निकालने की बातें की जाती हैं।
- एक अन्य रिपोर्ट ‘इंडियन इलेक्शन केस स्टडी’ के नाम से तैयार की गई। इसमें बताया गया कि प. बंगाल से ताल्लुक रखने वाले 40% से अधिक अकाउंट फर्जी या अप्रामाणिक थे। इनमें से एक अकाउंट पर तो 3 करोड़ से ज्यादा लोग किसी न किसी रूप में जुड़े हुए थे। मार्च-2021 की एक अन्य रिपोर्ट में बताया कि फेसबुक को पता है कि कितने अकाउंट फर्जी हैं, लेकिन उन्हें हटाया नहीं जा रहा।
फेसबुक को पता है, पर कार्रवाई से डरता है
फेसबुक को भारत में प्रचारित, प्रसारित आपत्तिजनक सामग्री के बारे में पूरी जानकारी है। लेकिन, वह इसे प्रसारित करने वाले संगठनों पर कार्रवाई से डरता है। क्योंकि ऐसे अधिकांश संगठन राजनीतिक तौर पर सक्रिय हैं। उदाहरण के लिए एक रिपोर्ट बताती है कि धर्म के आधार पर बने संगठनों की ओर से प्रचारित-प्रसारित सामग्री पर लंबे समय से नजर रखी जा रही है। फेसबुक ने इसे ‘खतरनाक संगठन’ बताने की तैयारी की है। लेकिन, अब तक इस दिशा में किया कुछ नहीं है।
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