बिकेगी भारतीय सेना की जमीन: मोदी सरकार बदलेगी अंग्रेजों के जमाने का 250 साल पुराना कानून, अब सिविल प्रोजेक्ट्स के लिए भी दी जाएगी सेना की जमीन

बिकेगी भारतीय सेना की जमीन: मोदी सरकार बदलेगी अंग्रेजों के जमाने का 250 साल पुराना कानून, अब सिविल प्रोजेक्ट्स के लिए भी दी जाएगी सेना की जमीन

[ad_1]

  • Hindi News
  • National
  • First Time In 250 Years India To Bring About Changes In Defence Land Policy

3 घंटे पहले

  • रक्षा मंत्रालय के पास 17.95 लाख एकड़ जमीन
  • इसमें से 16.35 लाख एकड़ छावनियों से बाहर है

250 साल में पहली बाद केंद्र सरकार डिफेंस लैंड पॉलिसी में बड़े बदलाव करने जा रही है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक नरेंद्र मोदी सरकार ने इस पॉलिसी से जुड़े नए नियमों की मंजूरी दे दी है। इसके तहत पब्लिक प्रोजेक्ट के लिए सेना से जो जमीन ली जाएगी उसके बदले उतनी ही वैल्यू के इन्फ्रास्ट्रक्चर (EVI) डेवलपमेंट की इजाजत होगी। यानी डिफेंस से जुड़ी जमीन को उतनी ही वैल्यू की जमीन देने के बदले या बाजार कीमत के भुगतान पर लिया जा सकेगा।

डिफेंस लैंड पॉलिसी में 1765 के बाद पहली बार बदलाव किए जा रहे हैं। उस वक्त ब्रिटिश काल में बंगाल के बैरकपुर में पहली कैंटोनमेंट (छावनी) बनाई गई थी। तब सेना से जुड़ी जमीन को मिलिट्री के कामों के अलावा किसी और मकसद के लिए इस्तेमाल करने पर पाबंदी लगाई गई थी। बाद में 1801 में ईस्ट इंडिया कंपनी के गवर्नर जनरल-इन-काउंसिल ने आदेश दिया था कि किसी भी कैंटोनमेंट का कोई भी बंगला और क्वार्टर किसी ऐसे व्यक्ति को बेचने की इजाजत नहीं होगी जो सेना से नहीं जुड़ा हो।

लेकिन अब सरकार डिफेंस लैंड रिफॉर्म्स पर विचार करते हुए कैंटोनमेंट बिल-2020 को फाइनल करने में जुटी हुई है। ताकि कैंटोनमेंट जोन्स में भी विकास हो सके। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक रक्षा मंत्रालय के अफसरों का कहना है कि मेट्रो की बिल्डिंग, सड़कों, रेलवे और फ्लाइओवर जैसे बड़े पब्लिक प्रोजेक्ट्स के लिए सेना की जमीन की जरूरत है।

कैंटोनमेंट जोन में मिलिट्री अथॉरिटी तय करेगी जमीन के रेट
नए नियमों के तहत आठ EVI प्रोजेक्ट्स की पहचान की गई है। इनमें बिल्डिंग यूनिट्स और रोड भी शामिल हैं। इसके तहत कैंटोनमेंट जोन्स में डिफेंस से जुड़ी जमीन की वैल्यू वहां की लोकल मिलिट्री अथॉरिटी की अगुवाई वाली कमेटी तय करेगी। वहीं कैंटोनमेंट से बाहर की जमीन के रेट डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट तय करेंगे।

एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक वित्त मंत्रालय ने भी एक नॉन-लेप्सेबल मॉडर्नाइजेशन फंड के लिए रेवेन्यू जुटाने के लिए डिफेंस की जमीन को मॉनेटाइज करने का सुझाव दिया है। अधिकारियों के मुताबिक डिफेंस मॉडर्नाइजेशन फंड बनाने के ड्राफ्ट कैबिनेट नोट पर भी चर्चा जारी है। इस बारे में जल्द आखिरी फैसला लिया जाएगा और कैबिनेट की मंजूरी के लिए भेजा जाएगा।

DMA को वित्त मंत्रालय के फॉर्मूले पर आपत्ति
दूसरी ओर डिपार्टमेंट ऑफ मिलिट्री अफेयर्स (DMA) पिछले साल सरकार से कह चुका है कि सेना की जमीन के मॉनेटाइजेशन से मिलने वाली रकम सशस्त्र बलों की जरूरतें पूरी करने के ही शायद ही पूरी होगी। DMA ने सुरक्षाबलों का बजट कम होने का मुद्दा भी उठाया था। साथ ही वित्त मंत्रालय के इस सुझाव पर भी आपत्ति जताई थी कि सेना की जमीन को बेचने से मिलने वाले फंड का 50% हिस्सा कंसोलिडेटेड फंड ऑफ इंडिया को जाएगा।

रक्षा मंत्रालय के पास 17.95 लाख एकड़ जमीन
डायरेक्टोरेट जनरल डिफेंस एस्टेट्स के मुताबिक रक्षा मंत्रालय के पास करीब 17.95 लाख एकड़ जमीन है। इसमें से 16.35 लाख एकड़ 62 कैंटोनमेंट्स से बाहर है। इसमें रक्षा मंत्रालय के तहत आने वाली पब्लिक सेक्टर यूनिट्स (PSUs) जैसे- हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स, भारत इलेक्ट्रोनिक्स, भारत डायनामिक, भारत अर्थ मूवर्स, गार्डन रीच वर्कशॉप्स, मझगांव डॉक्स शामिल नहीं हैं। साथ ही 50,000 किमी सड़कें बनाने वाला बॉर्डर रोड ऑर्गेनाइजेशन भी शामिल नहीं है।

देश में कैंटोनमेंट्स के बाहर सेना की काफी जमीन है। इनमें कैंपिंग ग्राउंड्स, खाली पड़ी छावनियां, रेंज और एयरफील्ड्स शामिल हैं। इनका कुल अनुमानित इलाका इतना है कि दिल्ली जितने 5 इलाके आ सकते हैं।

1991 में तत्कालीन रक्षा मंत्री शरद पवार ने सबसे पहले छावनियों को खत्म करने का विचार रखा था। ताकि अतिरिक्त जमीन का उपयोग किया जा सके। हालांकि, इस पर विवाद होने के बाद उन्होंने सफाई दी थी कि छावनियों को खत्म नहीं किया जाएगा।

खबरें और भी हैं…

[ad_2]

Source link

Published By:

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *