बाहरियों ने जन्नत छोड़ी तो चरमरा जाएगी अर्थव्यवस्था: कश्मीर में 80% श्रमिक बाहरी; विकास के काम थमने लगे, घाटी में बागवानी बाहरियों के ही भरोसे
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- 80% Workers Outside In Kashmir; Development Work Stopped, Horticulture In The Valley Depended On Outsiders, Apple Crop May Also Be Affected
श्रीनगर2 मिनट पहलेलेखक: मुदस्सिर कुल्लू
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कई कश्मीरी पंडित और बाहरी मजदूरों ने कश्मीर छोड़ दिया है।
धरती की जन्नत कहलाने वाले कश्मीर में आम लोगों पर हमले की वारदातों ने लोगों के मन में खौफ भर दिया है। इससे न केवल बाहरी और अल्पसंख्यक भयभीत हैं, बल्कि स्थानीय लोग भी डर रहे हैं कि इससे कश्मीर की स्थानीय अर्थव्यवस्था चरमरा जाएगी। कश्मीर में 2 अक्टूबर के बाद से 11 आम नागरिक मारे जा चुके हैं, जो बिहार समेत 5 राज्यों के हैं। इससे पूरी घाटी में खौफ का माहौल है। कई कश्मीरी पंडित और बाहरी मजदूरों ने कश्मीर छोड़ दिया है। हालांकि, कुछ लोगों को स्थानीय मुस्लिमों ने आश्वस्त किया है कि उन्हें कोई नुकसान नहीं पहुंचाएगा।
पुराने श्रीनगर शहर के एक मकान मालिक मोहम्मद आमिम के घर पर 15 बाहरी किराएदार के रूप में रहते हैं। आमिम कहते हैं- ‘बाहरी लोगों ने कश्मीर छोड़ दिया तो यहां की अर्थव्यवस्था टूट जाएगी। मैंने अपने बाहरी भाइयों को कहा है कि उन्हें कोई नुकसान नहीं पहुंचाएगा। यदि कोई आतंकी यहां आया तो पहली गोलियां मैं अपने सीने पर झेलूंगा। यदि सभी बाहरी लोग घाटी छोड़ गए तो मैं खुद को कश्मीरियत पर धब्बा समझूंगा।’ श्रीनगर के हवल में 4 किमी की एक सड़क ‘छोटा बिहार’ के नाम से जानी जाती है।
बिहार के आफाक अहमत के अनुभव
आफाक अहमद बिहार के हैं और कश्मीर में नाई का काम करते हैं। वे कहते हैं- ‘मैं 2010 में यहां आया था। 2016 में अशांति हुई लेकिन घाटी नहीं छोड़ी। मैं यहां से नहीं जाना चाहता। कश्मीर भाईचारे का प्रतीक हैं और कश्मीरी भाइयों में मेरी पूरी आस्था है। पिछले साल मेरे पिता का इंतकाल हो गया था। स्थानीय कश्मीरी लोगाें ने उन्हें धार्मिक सम्मान से दफनाने में मदद की। हम आमतौर पर दिसंबर में घर जाते हैं। इस साल भी जाने वाले थे। मेरे स्थानीय दोस्तों ने मुझे आश्वासन दिया है कि वे मेरी मदद करेंगे।’ वहीं, हाउसिंग बोट ऑनर्स एसोसिएशन के महासचिव अब्दुल राशिद कहते हैं- ‘बाहरियों की हत्याओं के बाद 20% बुकिंग रद्द हुई हैं।’
7 लाख लोग बागवानी से जुड़े
शोपियां निवासी गुलाम मोहम्मद कहते हैं- ‘यह सेब की कटाई का पीक सीजन है। स्थिति यह है कि फल तोड़ने के लिए मजदूर नहीं मिल रहे हैं। कश्मीर में सबकुछ थम गया है। मैं सेब के उत्पादन से 7 लाख रुपए सालाना कमा लेता हूं। पर श्रमिक नहीं मिले तो भारी नुकसान होगा।’ बागवानी घाटी की अर्थव्यवस्था की मुख्य आधार है। इस क्षेत्र से 7 लाख लोग प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े हैं।
यूपी, बिहार और राजस्थान समेत अन्य राज्यों से 5 लाख श्रमिक आते हैं
- रोड एंड बिल्डिंग्स डिपार्टमेंट के एक अफसर ने बताया कि कश्मीर में 80% कुशल और अर्धकुशल श्रमिक बाहरी हैं, जो यूपी, बिहार, झारखंड और अन्य राज्यों से आते हैं। इनके जाने से डेवलपमेंट प्रोजेक्ट थम गए हैं।’ अनुमान है कि बिहार, यूपी, राजस्थान, झारखंड और बंगाल के करीब 5 लाख श्रमिक हर साल कश्मीर पहुंचते हैं।
- जम्मू-कश्मीर की ग्रॉस स्टेट डोमेस्टिक प्रोडक्शन में बागवानी की हिस्सेदारी करीब 7% है। घाटी में 3.38 लाख हेक्टेयर जमीन पर फल उत्पादन होता है। इनमें से 1.62 लाख हेक्टेयर पर सेब उगाया जाता है। सेब की फसलों से लाखों मजदूरों को रोजगार मिलता है।
- इन सबके बीच, पूरे कश्मीर की मस्जिदों से इमाम ऐलान कर रहे हैं और मुस्लिमों से अपील कर रहे हैं कि वे अपने-अपने क्षेत्रों में अल्पसंख्यकों और बाहरी श्रमिकों का ध्यान रखें।
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