बंगाल हिंसा मामले में हाईकोर्ट सख्त: कहा- सरकार हिंसा के मामलों की जांच कराने में नाकाम साबित हुई, 26 जुलाई तक दाखिल करना होगा जवाब
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कोलकाता12 मिनट पहले
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विधानसभा चुनाव के बाद पश्चिम बंगाल में हुई हिंसा के मामले में कोलकाता हाईकोर्ट ने ममता सरकार पर सख्ती दिखाई है। कोर्ट ने गुरुवार को सुनवाई के दौरान कहा कि चुनाव के बाद अप्रैल और मई में हिंसा की सरकार सही तरीके से जांच कराने में नाकाम हुई है। याचिका पर 5 जजों की बेंच ने सुनवाई की। बेंच ने अगली सुनवाई के लिए 28 जुलाई की तारीख तय की है। इससे पहले 26 जुलाई को सरकार को रिपोर्ट पर अपना जवाब दायर करने के लिए कहा गया है।
सुनवाई के दौरान बंगाल सरकार की तरफ से विरष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने की। सिंघवी ने नेशनल ह्यूमन राइट्स कमीशन (NHRC) की रिपोर्ट को खारिज कर दिया। सिंघवी ने रिपोर्ट को राजनीति से प्रेरित बताया। याचिकाकर्ता की तरफ से वकील महेश जेठमलानी सुनवाई के दौरान मौजूद रहे। उन्होंने कहा कि जिस राज्य की निष्क्रियता के कारण पूरा विवाद खड़ा हुआ है, अब वही मामले की जांच करना चाहता है। जेठमलानी ने एक स्वतंत्र एजेंसी से जांच कराने की मांग की है।
NHRC ने कोर्ट से कहा था- बंगाल में कानून का शासन नहीं
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) ने 13 जुलाई को कलकत्ता हाईकोर्ट में रिपोर्ट सब्मिट की है। आयोग ने हिंसा को लेकर अदालत से कहा था कि बंगाल में कानून का शासन नहीं, बल्कि शासक का कानून चलता है। बंगाल हिंसा के मामलों की जांच राज्य से बाहर की जानी चाहिए।
रिपोर्ट के कुछ न्यूज चैनल और वेबसाइट्स पर खुलासे के बाद ममता बनर्जी ने ऐतराज जाहिर किया था। ममता ने कहा था कि आयोग को न्यायपालिका का सम्मान करना चाहिए और इस रिपोर्ट को लीक नहीं किया जाना चाहिए। इस रिपोर्ट को केवल कोर्ट के सामने रखना चाहिए।
आयोग की रिपोर्ट के 4 सबसे बड़े पॉइंट
1. बंगाल चुनाव के बाद हुई हिंसा के मामलों की जांच CBI से कराई जानी चाहिए। मर्डर और रेप जैसे गंभीर अपराधों की जांच होनी चाहिए।
2. बंगाल में बड़े पैमाने पर हुई हिंसा ये दिखाती है कि पीड़ितों की दुर्दशा को लेकर राज्य की सरकार ने भयानक तरीके से उदासीनता दिखाई है।
3. हिंसा के मामलों से जाहिर होता है कि ये सत्ताधारी पार्टी के समर्थन से हुई है। ये उन लोगों से बदला लेने के लिए की गई, जिन्होंने चुनाव के दौरान दूसरी पार्टी को समर्थन देने की जुर्रत की।
4. राज्य सरकार के कुछ अंग और अधिकारी हिंसा की इन घटनाओं में मूक दर्शक बने रहे और कुछ इन हिंसक घटनाओं में खुद शामिल रहे हैं।
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