पंजाब में कैप्टन पर चौतरफा दबाव: बिन माफी ताजपोशी में गए, स्टेज पर बैठ सुने सिद्धू के सरकार विरोधी बोल, अब मंत्रियों को 3 घंटे कांग्रेस भवन बुलाने से टकराव तय
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जालंधर6 घंटे पहलेलेखक: मनीष शर्मा
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कैप्टन-सिद्धू की मुलाकात की यह तस्वीर बहुत कुछ बयां कर रही।
पंजाब में नवजोत सिद्धू की प्रदेश प्रधान पद पर ताजपोशी के बाद कैप्टन अमरिंदर सिंह चौतरफा दबाव में हैं। कैप्टन की नाराजगी के बावजूद नवजाेत सिद्धू ने उन पर लगाए आरोपों की माफी नहीं मांगी। इसके बावजूद मजबूर होकर कैप्टन को वहां जाना पड़ा। फिर वहां भी स्टेज पर बैठकर सिद्धू के अपनी ही सरकार के विरोधी बोल सुनने पड़े। वहां तक तो जैसे-तैसे चला लेकिन सिद्धू ने आगे संगठन में सरकार के दबदबे की नई लकीर खींच दी है। जिसकी शुरुआत उन्होंने यह कहकर कर दी कि वो तो 15 अगस्त से चंडीगढ़ स्थित कांग्रेस भवन में अपना बिस्तरा लगा रहे हैं। वहां मंत्रियों को भी 3 घंटे का टाइम देना होगा। साफ है सरकार को अब संगठन की सुननी होगी। लिहाजा कैप्टन-सिद्धू की ‘न हाथ मिले, न दिल’ वाली सुलह ने बड़े टकराव का इशारा कर दिया है।
यह तस्वीर बता रही है कि सिद्धू व कैप्टन के बीच में हाईकमान (हरीश रावत) खड़े हैं
कैप्टन बोले थे- सिद्धू माफी मांगेंगे तो मिलेंगे, उलटा सिद्धू ने ही मिलने के लिए तरसाया
कैप्टन खेमे ने पहले मुख्यमंत्री व प्रदेश प्रधान पद पर सिख चेहरे से पंजाब में सियासी नुकसान का तर्क दिया लेकिन हाईकमान नहीं माना। जब सिद्धू का नाम तय हो गया तो कैप्टन ने पंजाब कांग्रेस इंचार्ज हरीश रावत को कहा कि वो सिद्धू से तब मिलेंगे, जब वो ट्वीट व इंटरव्यू में उन पर लगाए आरोपों की माफी मांगे। सिद्धू ने वो भी नहीं किया। हाईकमान के दबाव में कैप्टन को ताजपोशी समारोह में आना पड़ा। कैप्टन यह मुलाकात विधायकों व सांसदों से बैठक में करना चाहते थे लेकिन सिद्धू निकल गए। चर्चा है कि उसके बाद हरीश रावत के बुलाने पर कैप्टन से औपचारिक मुलाकात हुई।
सिद्धू बोलने उठे तो लाल सिंह व भट्ठल के पैर छुए और कैप्टन आगे देखते रहे।
स्टेज पर सिद्धू ने दिखाए विरोधी तेवर, चिट्टा व बेअदबी से लेकर डॉक्टर-टीचर्स का मुद्दा उठाया
स्टेज पर सिद्धू व कैप्टन में कोई गुफ्तगू नजर नहीं आई। जब बोलने का मौका मिला तो सिद्धू ने सीट से उठते हुए कैप्टन को देखा तक नहीं। पूर्व प्रधान लाल सिंह व राजिंदर कौर भट्ठल के पांव छू माइक संभाल लिया। वहां बोलना शुरू किया तो लगा मानो वो सरकार विरोधी स्टेज पर बोल रहे हों। चिट्टे (नशे) से अनाथ हुए बच्चों व बेऔलाद हुए मां-बाप के जख्म कुरेदे। फिर श्री गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी का इंसाफ न मिलने की बात कही। पंजाब में आंदोलन कर रहे कच्चे अध्यापकों, डॉक्टरों का मुद्दा उठाया। यूं लगा मानो कोई विरोधी नेता सरकार की पोल खोल रहा हो। कैप्टन स्टेज पर बैठे सुनते रहे। तभी अकाली नेता दलजीत चीमा ने भी चुटकी ली कि सिद्धू भूल गए कि पंजाब में सरकार तो उनकी ही है।
ताजपोशी के बाद सिद्धू सीधे जख्मी कांग्रेसी वर्करों से मिलने पहुंचे
कैप्टन की कमजोरियों को ताकत बना रहे सिद्धू
खास बात यह है कि सिद्धू सरकार नहीं संगठन का महत्व स्थापित कर रहे हैं। कैप्टन कांग्रेसियों से नहीं मिलते तो सिद्धू ने प्रधान पद की नींव मुलाकातों से ही रखी। शुक्रवार को ही मोगा में कांग्रेस कार्यकर्ता जख्मी हुए तो वहां पहुंचकर बता दिया कि वो उनके साथ हैं। अब अगले महीने से कांग्रेस भवन में डेरा जमाने की बात कह दी। यह भी कहा कि 3 घंटे मंत्रियों को वहां आना पड़ेगा। साफ है कि कांग्रेस कार्यकर्ता आरोप लगाते रहे कि न उनकी सुनवाई होती है और न काम। मंत्रियों को तभी कांग्रेस भवन बुलाया जा रहा कि वहां कार्यकर्ता उन्हें मिल सकें।
यह तस्वीर सांसद प्रताप बाजवा ने एकजुटता दिखाते ट्वीट की है,लेकिन मुंह की दिशा सब बता रही है
अब आगे क्या…. सिद्धू तो कांग्रेस के ‘कैप्टन’ बन गए… सोचना कैप्टन को होगा
कैप्टन से सुलह बगैर सिद्धू प्रधान बन गए तो बड़ा सवाल है कि आगे क्या होगा?। पहले हाईकमान ने इशारा दिया कि पंजाब में मिशन फतेह के लिए सिर्फ कैप्टन के भरोसे नहीं रहेंगे, उनके पास नया कैप्टन सिद्धू है। सिद्धू ने भी साफ कर दिया कि इस सरकार के कामकाज भरोसे कांग्रेस 2022 में चुनावी जंग नहीं लड़ेगी। हाईकमान ने जो 18 नुक्ते बताए, उन्हें लेकर जनता के बीच जाएंगे, मतलब अपनी ही सरकार निशाने पर रहेगी। मतलब, कैप्टन और सिद्धू की जंग जारी रहेगी। सिद्धू तो कांग्रेस के अगुवा बन चुके, अब सोचना सिर्फ कैप्टन को पड़ेगा। कैप्टन को करीबी दिखाने के चक्कर में सिद्धू से दूरी बनाए बैठे मंत्रियों की मुश्किलें बढ़नी तय हैं। सिद्धू के बुलावे पर न गए तो संगठन से खटकेगी। ऐसा हुआ तो अगले साल टिकट की राह कांटों भरी होगी क्योंकि फिलहाल हाईकमान सिद्धू के साथ है। सिद्धू या कैप्टन में से किसे तरजीह दें? किसकी मानें? यह टेंशन बनी रहेगी।
हाईकमान की भी अब कैप्टन-सिद्धू पर नजर
जिन राज्यों में कांग्रेस की सरकार बची है, उसमें पंजाब भी है। लिहाजा हाईकमान इसे हाथ से नहीं जाने देगा। आरोप जो भी हों लेकिन सिद्धू को छोड़ कैप्टन कांग्रेस के अकेले चेहरे है, जिसे पंजाब में हर कोई जानता व मानता है। कैप्टन से सिर्फ राजनीतिक नहीं बल्कि पटियाला घराने के महाराजा होने की वजह से लोगों का उनसे भावनात्मक लगाव भी है। कैप्टन को हिंदु समुदाय का अच्छा समर्थन मिलता है। पिछले चुनाव में भी गांवों में आम आदमी पार्टी के जोर के बावजूद शहर से सीटें जीत कैप्टन कांग्रेस को सत्ता तक लाने में कामयाब रहे। सिद्धू भीड़ खींचने वाले नेता जरूर हैं लेकिन यह वोट बैंक में बदलेगा या नहीं? यह भी हाईकमान देखेगा। पंजाब में अकाली दल को पटखनी देने में कैप्टन को ही महारथ रही है। वरिष्ठ कांग्रेसी भी मानते हैं कि अपनी सरकार को बदनाम कर पार्टी सत्ता नहीं पा सकती। सिद्धू व कैप्टन मिलकर चलेंगे तो ही कांग्रेस का बेड़ा पार संभव है। टकराव नुकसान की तरफ ले जाएगा।
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