पंजाब की सियासत में बड़े धमाके की तैयारी: नया संगठन बनाएंगे अमरिंदर, कृषि कानून वापस करवा खत्म कराएंगे आंदोलन और बनेंगे पंजाब के कैप्टन
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जालंधर8 मिनट पहले
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गृह मंत्री अमित शाह के साथ कैप्टन अमरिंदर सिंह। फाइल फोटो
पंजाब की सियासत में गांधी जयंती के दिन 2 अक्टूबर को बड़ा धमाका हो सकता है। पूर्व सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह नया संगठन बना सकते हैं। इसके जरिए कैप्टन पंजाब की सियासत में नया दांव ठोकेंगे। कैप्टन के करीबी सूत्रों की मानें तो इस संगठन की शुरूआत दिल्ली बॉर्डर पर एक साल से चल रहे किसान आंदोलन को खत्म करवा देगी। उसके बाद पंजाब में नए सियासी दल का आगाज होगा, जो पार्टियों की पहचान से ऊपर कैप्टन अमरिंदर सिंह के चेहरे के ईर्द-गिर्द घूमेगा।
कैप्टन अमरिंदर 2022 में लौटने वाले हैं, उनके सलाहकार नरिंदर भांबरी ‘कैप्टन फॉर 2022’ का पोस्टर ट्वीट कर इरादे बता चुके हैं। कुर्सी से हटाए गए तो खुद कैप्टन भी कह चुके कि वह जीत के बाद राजनीति छोड़ने वाले थे। वह फौजी हैं, अपमानित होकर मैदान नहीं छोड़ेंगे, वो चाहे सियासत का ही हो। बुधवार को दिल्ली में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात कर कैप्टन ने फिर एक बार यह संकेत दिया।
पढ़िए …. कैप्टन का नया संगठन ही क्यों, सीधे BJP में शामिल क्यों नहीं होंगे?
कैप्टन अमरिंदर सिंह के सीधे BJP में शामिल होने की संभावना कम है। न कैप्टन ये चाहते हैं और न भाजपा। गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात के बाद यह चर्चाएं जरूर हुई हैं। सियासत में सब कुछ संभव भी है, लेकिन फिलहाल ऐसा होता नजर नहीं आ रहा है। इसकी 2 बड़ी वजहें हैं…..
- एक तो कैप्टन को लेकर किसानों में गलत संदेश जाएगा। किसान सोचेंगे कि कैप्टन ने अपनी सियासत के लिए हमारा इस्तेमाल किया। कैप्टन खुद को राजनीति में स्थापित करना चाहते थे। इसलिए किसानों की आड़ ली।
- दूसरा, केंद्र सरकार अब तक कृषि कानूनों को लेकर अड़ी हुई है। भाजपा यह संदेश नहीं देना चाहेगी कि उन्हें अगले चुनावों में किसानों की जरूरत थी, इसलिए झुकना पड़ा। वैसे, जरूरत तो है, लेकिन BJP इसे अपनी मजबूरी नहीं दिखाना चाहती। ऐसा हुआ तो विरोधी मुद्दा बना लेंगे।
अब जानिए … क्या होगी पूरी रणनीति
कैप्टन अमरिंदर सिंह औपचारिक रूप से कांग्रेस छोड़ सकते हैं। फिलहाल कैप्टन सियासी संगठन नहीं बनाएंगे। वह ऐसा संगठन चाहते हैं जो नॉन-पॉलिटिकल हो। यह संगठन दिल्ली किसान आंदोलन में शामिल होगा। किसान नेताओं से मिलेगा। यह संगठन किसान आंदोलन में आगे नहीं जाएगा। बल्कि केंद्र सरकार से बातचीत में अगुवाई करेगा।
इसी बातचीत में कृषि कानून वापस कराने की पूरी भूमिका तय की जाएगी। एक विकल्प यह भी है कि MSP गारंटी कानून ला सकते हैं। कैप्टन यहीं से सफर शुरू कर रहे हैं, यह वो कल अमित शाह के आगे इन मुद्दों को उठाकर संकेत दे चुके हैं। कैप्टन ने पंजाब में जाट महासभा बनाई है, जिससे कई बड़े किसान भी जुड़े हैं। यह भी कैप्टन का एक विकल्प हाे सकता है।
कैप्टन के CM कुर्सी छोड़ने के बाद सलाहकार ने यह पोस्टर ट्वीट किया था।
कैप्टन के लिए यह काम कितना मुश्किल?
कैप्टन अमरिंदर सिंह के लिए यह काम ज्यादा मुश्किल नहीं होगा। उसके कारण हैं। कृषि कानूनों के विरोध में आंदोलन पंजाब की ही धरती पर जन्मा। यूं भी कह सकते हैं कि कैप्टन ने ही इसे पाल-पोष कर बड़ा किया। कैप्टन ने किसानों को खुलकर सपोर्ट की। उनके दिल्ली पहुंचने में जिसने रोड़ा अटकाया, उस पर टूट पड़े। हरियाणा में लाठीचार्ज हुआ तो कैप्टन वहां के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर पर भड़क उठे। बात नहीं सुनी जा रही थी तो केंद्र सरकार पर हमले किए।
जब किसान नेताओं को जरूरत थी तो कैप्टन डटकर खड़े रहे। अब CM कुर्सी छोड़ चुके कैप्टन को साथ की जरूरत है। ऐसे में उन्हें किसान नेताओं की हमदर्दी मिलनी तय है। कैप्टन के किसान नेताओं से रिश्ते भी अच्छे हैं। राजनीतिक दलों के बहिष्कार के बीच कैप्टन को लड्डू खिला चुके हैं।
कैप्टन की पंजाब में सियासी राह आसान कैसे?
इस सवाल के जवाब में पहले पंजाब में वोट बैंक का गुणा-गणित समझना होगा। पंजाब में 75% आबादी खेतीबाड़ी से जुड़ी है। पंजाब की इकोनॉमी ही एग्रीकल्चर पर आधारित है। खेती होती है तो उससे न केवल बाजार चलता है, बल्कि ज्यादातर इंडस्ट्रीज भी ट्रैक्टर से लेकर खेतीबाड़ी का सामान बनाती हैं। 117 सीटों वाली पंजाब विधानसभा में 77 सीटों पर किसानों के वोट बैंक का डोमिनेंस है।
अभी पंजाब के हर गांव से किसान दिल्ली बॉर्डर पर बैठे हैं। कैप्टन के लिए किसान नेताओं का सॉफ्ट कॉर्नर जरूर है। कृषि कानून वापस हो गए या संयुक्त किसान मोर्चा की सहमति से कोई हल निकल आए तो कैप्टन पंजाब के सुप्रीम यानी सबसे बड़े लीडर होंगे। पार्टी की बात पीछे छूट जाएगी। यह स्टाइल कैप्टन को खूब रास भी आता है। 2002 और 2017 में कैप्टन के नाम पर ही कांग्रेस सत्ता में आई थी।
BJP को कैप्टन से क्या फायदा?
सियासत में मुलाकात के पीछे मुद्दों से कहीं ज्यादा उसमें छिपा संदेश अहम होता है। कांग्रेस ने कैप्टन को CM की कुर्सी से हटा दिया। साफ तौर पर कांग्रेस ने कैप्टन के दौर को खत्म मान लिया। BJP ने यहीं से अपना दांव शुरू किया है। कैप्टन CM रहते तो कई बार शाह से मिले, लेकिन यह मुलाकात अलग थी। जरा वो बात भी याद कीजिए कि कैप्टन ने कहा वो दिल्ली में अपने कुछ दोस्तों से मिलेंगे। इससे पहले वो बात भी न भूलिए कि कुर्सी छोड़ने के बाद कैप्टन ने कहा था कि 52 साल के राजनीतिक करियर में कई दोस्त बने हैं। BJP ने कांग्रेस को संदेश दिया कि कैप्टन के अंदर बहुत सियासत बाकी है।
कैप्टन किसान आंदोलन हल करवा गए तो पंजाब में कैप्टन और भाजपा को एक-दूसरे का साथ मिल सकता है। अकालियों ने भाजपा का साथ छोड़ दिया। भाजपा के लिए सियासी तौर पर यहां खोने को कुछ नहीं है। हां, पाकिस्तान बॉर्डर से सटा पंजाब राष्ट्रीय सुरक्षा के लिहाज से अहम है। वहीं, सियासत की नजर से देखें तो आंदोलन खत्म होने और कैप्टन के साथ जुड़ने का बड़ा असर उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, हरियाणा में होगा, जहां भाजपा दबदबा बनाए रखना चाहती है।
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