नहीं रहे पद्मश्री लंगर बाबा जगदीश लाल आहूजा: सोमवार सुबह अंतिम सांस ली, PGI चंडीगढ़ के बाहर 21 सालों से दे रहे जरूरतमंदों को भोजन

नहीं रहे पद्मश्री लंगर बाबा जगदीश लाल आहूजा: सोमवार सुबह अंतिम सांस ली, PGI चंडीगढ़ के बाहर 21 सालों से दे रहे जरूरतमंदों को भोजन

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चंडीगढ़एक घंटा पहले

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नहीं रहे पद्मश्री लंगर बाबा जगदीश लाल आहूजा: सोमवार सुबह अंतिम सांस ली, PGI चंडीगढ़ के बाहर 21 सालों से दे रहे जरूरतमंदों को भोजन

PGI चंडीगढ़ के बाहर पिछले 21 साल से मरीजों और तीमारदारों को लंगर बांटने वाले जगदीश लाल आहूजा का सोमवार सुबह निधन हो गया। लंगर बाबा के नाम से प्रसिद्ध जगदीश लाल (90) की मौत के दिन भी उनकी इच्छा के अनुसार लंगर सेवा जारी रही। लंगर बाबा को उनके सामाजिक कार्य के लिए 2020 में राष्ट्रपति ने पद्मश्री से सम्मानित किया था।

लंगर बाबा जगदीश लाल आहूजा का जन्म पाकिस्तान के पेशावर में हुआ था। उनके लंगर का सिलसिला 40 साल पहले उनके बेटे के जन्मदिन पर शुरू हुआ था। उन्होंने सेक्टर 26 मंडी में लंगर लगाया था। इसके बाद से मंडी में लंगर लगने लगा। 2000 में जब उनके पेट का आपरेशन हुआ तो PGI के बाहर मदद करने का फैसला लिया। लंगर के लिए जब भी उन्हें पैसों की कमी आई, उन्होंने अपनी प्रॉपर्टी बेचनी शुरू कर दी। अपने देहांत से पहले वे करोड़ों की संपत्ति लंगर लगाने के लिए बेच चुके हैं।

शाम को बुलाकर कहा- मेरी मौत के दिन भी बंद न हो लंगर

PGI के बाहर जगदीश लाल आहूजा की ओर से लंगर बांट रहे संदीप ने बताया कि वह 10 सालों से बाबा के साथ काम कर रहा है। लंगर बाबा ने रविवार शाम उसे घर बुलाया और कहा कि मैं जब मरूं तो उस दिन भी लंगर बंद नहीं होना चाहिए। कुछ दिनों पहले ही महीनों का राशन खरीद कर चंडीगढ़ के सेक्टर 26 स्थित मकान में रखवा दिया था।

संदीप के अनुसार, सुबह 9:30 बजे लंगर बाबा के देहांत की सूचना आई। उनकी इच्छा पूरी करने के लिए सभी कर्मचारियों ने लंगर जारी रखा। सुबह 10:30 बजे लंगर शुरू हुआ और दोपहर करीब 12 बजे तक जारी रहा। लंगर बाबा PGI के बाहर करीब 4 से 5 हजार लोगों को खाना खिलाते थे।

लंगर बाबा के देहांत वाले दिन भी PGI में लंगर बांटा गया।

लंगर बाबा के देहांत वाले दिन भी PGI में लंगर बांटा गया।

कभी नौकर नहीं कहने देते थे
संदीप ने बताया कि बाबा ने कभी किसी कर्मचारी को नौकर नहीं समझा। अपने बच्चों की तरह ही रखा। यदि कोई नौकर कहता तो उससे लड़ पड़ते थे। किसी को जब जरूरत पड़ी तो उसे पैसे या अन्य सामान के लिए कभी इनकार नहीं किया। संदीप ने बताया कि लंगर बाबा पहले सेक्टर 16 और 32 में मेडिकल कॉलेज में भी लंगर चलाते थे। उन्होंने अपनी सारी प्रॉपर्टी लंगर पर खर्च कर दी।

कोरोना में चार दिन बंद रहा लंगर

बाबा अपनी पत्नी निर्मल के साथ ही लंगर बांटते थे। परिवार में बेटा संजू है। कोरोना में चार दिन लंगर बंद रहा, परंतु बाद में बाबा ने डीसी से अनुमति ली और लंगर चालू करवाया। बाबा को देखकर ही कुछ साल पहले बाकी संस्थाओं ने भी लंगर बांटना शुरू किया। पहले दो समय सुबह और दोपहर को लंगर बांटते थे, लेकिन कोरोना के बाद एक समय कर दिया गया। वहीं PGI चंडीगढ़ में पोस्टमॉटर्म के बाद शव लेकर परिजन सेक्टर 23 स्थित आवास पर चले गए।

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