दिल्ली बॉर्डर पर लौटी एक साल पुरानी रौनक: सिंघु-टीकरी बॉर्डर पर किसानों से भरे नजर आ रहे टेंट; किसानों को SKM के फैसले का इंतजार
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बहादुरगढ़16 घंटे पहले
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हरियाणा-दिल्ली के सिंघु और टीकरी बॉर्डर पर एक साल पुरानी तस्वीर फिर ताजा हो रही है। हालांकि एक साल पहले 3 नए कृषि कानूनों का आक्रोश था, लेकिन अब कानूनों की वापसी की खुशी है। 15 दिन पहले तक जिन झोपड़ी और टेंटों में ताला था, अब यह किसानों से भरे दिख रहे हैं। कई जगह नए लंगर भी शुरू हो चुके हैं। किसान अब संयुक्त किसान मोर्चा (SKM) की आंदोलन की रणनीति पर अगले फैसला का इंतजार कर रहे हैं।
बता दें कि इसी साल जनवरी के बाद सिंघु और टीकरी बॉर्डर से किसानों की संख्या लगातार कम हो रही थी। टीकरी बॉर्डर पर 12 और सिंघु बॉर्डर पर 14 किमी तक के एरिया में किसानों के टेंट और झोपड़ी तो जरूर नजर आ रही थी, लेकिन उनमें ठहरने वाले बहुत से किसान घरों को लौट गए थे। बहुत से किसान ऐसे भी रहे, जो रोटेशन के हिसाब से आंदोलन का बराबर हिस्सा भी रहे।
26 नवंबर को दिल्ली बॉर्डर पर किसानों के आंदोलन का एक साल पूरा हो गया। इससे पहले तीनों कृषि कानूनों की वापसी पर मुहर भी लग चुकी है। आंदोलन की सालगिरह मनाने के लिए शुक्रवार को पंजाब और हरियाणा से हजारों की संख्या में किसान सिंघु और टीकरी बॉर्डर पहुंचे। बहुत कम किसान ही जश्न मनाने के बाद वापस लौटे हैं। अधिकांश किसानों ने फिर से बॉर्डर पर ही अपना डेरा जमा लिया है।
बॉर्डर पर आंदोलन में महिलाएं भी लौट आई हैं।
नए लंगर शुरू हुए
टीकरी बॉर्डर पर 15 दिन पहले तक 2 हजार से भी कम संख्या में किसान नजर आ रहे थे। 19 नवंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कृषि कानूनों की वापसी का ऐलान करते ही पंजाब ही नहीं, बल्कि हरियाणा के विभिन्न जिलों से बड़ी संख्या में किसान फिर से बॉर्डर पर पहुंचने शुरू हो गए। 26 नवंबर को टीकरी बॉर्डर पर एक साल पुरानी तस्वीर नजर आई।
शुक्रवार को आंदोलन स्थल पर बना पंडाल किसानों से खचाखच भरा नजर आया। किसानों की बढ़ती तादाद के बाद किसान नेताओं में भी जोश भर गया है। किसानों के आने का सिलसिला अभी भी जारी है। बढ़ती संख्या को देखते हुए बॉर्डर पर कई जगह नए लंगर भी शुरू हो चुके हैं। कुछ इसी प्रकार की भीड़ सिंघु बॉर्डर पर भी पहुंच रही है।
किसानों की संख्या बढ़ते ही आंदोलन स्थल पर ज्यादा खाना बनना शुरू हो गया है।
किसानों को आगामी रणनीति का इंतजार
सिंघु और टीकरी बॉर्डर पर बैठे किसानों को अब आगामी रणनीति का इंतजार है। चूंकि कृषि कानूनों की वापसी पर केन्द्रीय कैबिनेट की मुहर के बाद भी किसान संसद में कानूनों के निरस्त होने की प्रक्रिया के साथ ही 29 नवंबर को संसद कूच वाले फैसले पर अभी बॉर्डर पर टिके हैं।
संयुक्त किसान मोर्चा की तरफ से कृषि कानूनों की वापसी को अधूरी जीत बताया गया है। तर्क यह दिया जा रहा है कि अभी MSP गारंटी कानून सबसे बड़ी मांग पर कोई फैसला नहीं हुआ। इसलिए किसान बॉर्डर पर ही डटे रहे।
दोनों बॉर्डर पर बड़ी संख्या में टेंट लगे हुए हैं।
700 किसानों ने गंवाई आंदोलन में जान
भले ही एक साल से चल रहे किसानों के आंदोलन में उनकी सबसे बड़ी मांग कृषि कानूनों की वापसी का ऐलान हो गया, लेकिन किसानों के इस संघर्ष में 700 किसानों ने अपनी जान भी गंवाई है। इनमें बहुत से ऐसे बुजुर्ग किसान शामिल हैं, जिनकी मौत सर्दी के मौसम में हार्टअटैक की वजह से हुई या फिर किन्हीं अन्य कारणों से। काफी किसानों की मौत सड़क हादसों में भी हुई है। आंदोलन का एक साल पूरा होने पर किसानों ने जहां कानून वापसी का जश्न मनाया। वहीं उन्हें अपने साथी किसानों को खोने का गम भी है।
पुलिस ने बढ़ाई बॉर्डर पर सुरक्षा
किसानों की बढ़ती संख्या और 29 को संसद कूच के प्रस्तावित कार्यक्रम से पहले सिंघु और टीकरी बॉर्डर पर सुरक्षा बढ़ा दी गई है। दिल्ली पुलिस के अलावा पैरामिलिट्री फोर्स को लगाया गया है। कुछ दिन पहले बॉर्डर से सुरक्षा कम की गई थी, लेकिन अब फिर से भारी सुरक्षा व्यवस्था नजर आ रही है। दिल्ली पुलिस किसानों की हर रणनीति पर नजर बनाए हुए है।
सिंघु और टीकरी बॉर्डर पर सुरक्षा बढ़ा दी गई है। यहां सेना के जवान तैनात है।
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