दिपावली पर छलका तालिबान पीड़ितों का दर्द: अफगानिस्तान में फंसे अफगानी परिवारों के पास न दवा न खाने को पैसे, गुरुद्वारा साहिब में भी समाप्त हुए लंगर

दिपावली पर छलका तालिबान पीड़ितों का दर्द: अफगानिस्तान में फंसे अफगानी परिवारों के पास न दवा न खाने को पैसे, गुरुद्वारा साहिब में भी समाप्त हुए लंगर

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लुधियाना11 मिनट पहले

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दिपावली पर छलका तालिबान पीड़ितों का दर्द: अफगानिस्तान में फंसे अफगानी परिवारों के पास न दवा न खाने को पैसे, गुरुद्वारा साहिब में भी समाप्त हुए लंगर

अफगानिस्तान में फंसे भारतियों के परिजन अपना दर्द सुनाते हुए।

तालिबान का आतंक आज भी बरकरार है। अफगानिस्तान में आज भी 212 भारतीय फंसे हुए हैं। उनके पास न तो अब काम है और न ही दवा लेने के लिए पैसे ही हैं, वह काबुल के गुरुद्वारा साहिब में शरण लेकर रह रहे हैं और वहां पर उनके लिए लंगर तक समाप्त हो चुका है। अफगानिस्तान से दो माह पहले आए भारतीय लगातार मांग कर रहे हैं कि उनके परिजनों को वहां से निकाला जाए मगर उनकी सुनवाई करने वाला कोई नहीं हैं।

अफगानिस्तान से आईं कैलाश कौर फंसे भारतियों को निकालने की अपील करते हुए।

अफगानिस्तान से आईं कैलाश कौर फंसे भारतियों को निकालने की अपील करते हुए।

अफगानिस्तान से सितंबर माह में भारत आईं 70 वर्षीय कैलाश कौर की जिंदगी का यह पड़ाव बेहद बुरे दौर में गुजर रहा है। वह कहती हैं कि वहां पर उनके दो बेटे और एक पुत्रवधु फंसे हुए हैं। वह अपने दो पोत्रों के साथ यहां पहुंची थीं और उनहें दिल्ली के तिलक नगर गुरुद्वारा साहिब में ठहराया गया था, मगर बाद में वहां से जाने को बोल दिया गया। वह लुधियाना में अपने रिश्तेदारों के पास आकर रहने लगी है मगर उनके पास यहां कोई काम नहीं है। बेटों से वीडियो कॉल के जरिए बात हो जाती है और वह कहते हैं कि उनका काम पूरी तरह से बरबाद हो चुका है। उन्हें बाहर जाने से डर लगता है। यही नहीं इनके साथ उनकी परिवार के 14 सदस्य भी गुरुद्वारा साहिब में ही रह रहे हैं, जिनमें 12 पुरुष और 2 महिलाएं शामिल हैं। काबुल में तालिबानी गुरुद्वारा साहिब आते हैं, वह कहते तो कुछ नहीं है मगर काम भी नहीं करने देते हैं। जिस कारण बेहद परेशानी में दिन कट रहे हैं। काबुल में हुए एक धमाके में वह अपना बेटा खो चुकी हैं और यही कारण है कि हर दिन डर के साय में गुजरता है कहीं उनके परिजनों को बंब से ही ना उड़ा दिया जाए।

अपने परिजन से बात करते हुए रो पड़ीं भावना, जानकारी देते समय छलकते आंसू।

अपने परिजन से बात करते हुए रो पड़ीं भावना, जानकारी देते समय छलकते आंसू।

पिता हार्ट के मरीज हैं, मगर दवाई को पैसे नहीं
भावना लुधियाना में रह रही हैं और उनके पिता हरिंदर सिंह काबुल के गुरुद्वारा साहिब में रह रहे हैं, वह बताती हैं कि पिता हार्ट के मरीज हैं। वीडियो कॉल पर वह उनसे हाल पूछते हुए रो पड़ती हैं और कहती हैं कि आप किसी भी तरह से जल्द पंजाब आ जाओ। वह कहती है कि पिता का आयुवेर्दिक दवाईयों का काम था जो बंद हो गया है। गुरुद्वारा साहिब में जो कुछ मिलता है वह खा लेते हैं। खाने के साथ साथ दवाई के भी लाले पड़े हुए हैं। दिन और रात यही डर सता रहा है कि क्या कभी वह अपने पिता से मिल पाएगी।

अपने बीमार पिता से बात करते हुए प्रिया।

अपने बीमार पिता से बात करते हुए प्रिया।

अफगानिस्तान से भाग गए हैं डाक्टर, नहीं मिल रही दवा
प्रिया बताती हैं कि मेरे पापा शाम सिंह शूग्र के मरीज हैं और अफगानिस्तान से डाक्टर भाग निकले हैं। पापा को दवा देने वाला कोई नहीं है, वह लगातार वहां से अपील कर रहे हैं कि उन्हें अफगानिस्तान से निकाला जाए। मगर कोई सुनवाई करने वाला नहीं है। अब वह भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी से अपील कर रहे हैं कि उनके परिजनों को पंजाब लुधियाना उन्हें दिपावली का तोहफा दिया जाए।

जानकारी देते हुए मीना देवी ।

जानकारी देते हुए मीना देवी ।

अफगानिस्तान में बिजनिस करने गए थे भारतीय
अफगानिस्तान से आए भारतीयों की रिश्तेदार मीना देवी कहती हैं कि ज्यादातर परिवार 1989 में अफगानिस्तान से भारत आकर बस गए थे। मगर बाद में माहौल ठीक हुआ तो वह लोग दोबारा वहां जाकर काम करने लगे। अब उनके कई परिवार वहां रहकर काम कर रहे हैं और यहां पर उनकी रिश्तेदारियां हैं। वह लोग सर्दी के मौसम में पंजाब आया करते थे और दो से तीन माह यहां अपने परिवारों के बीच लगाकर वापिस चले जाते थे। 15 अगस्त को हुए सत्ता परिवर्तन के बाद से हालात बेहद खराब हो गए हैं। पंजाबी भारतियों को वहां पर परेशान किया जा रहा है। हम बेहद परेशान हैं, अभी भी अफगानिस्तान में 212 लोग फंसे हुए हैं जिन्हें वहां से लाया जाना जरूरी है। इस लिए अपील करते हैं कि देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उन्हें वहां से लाने का प्रबंध करें।

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