दलित कार्ड खेल रही कांग्रेस के सामने नई मुसीबत: सुरजीत धीमान ने ओबीसी विधायकों के लिए कैबिनेट में मांगे 2 मंत्री पद, बोले- 31% आबादी की नुमाइंदगी करते हैं 9 MLA
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लुधियाना5 घंटे पहले
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दलित कार्ड खेलकर चरणजीत चन्नी को सीएम बना चुकी पंजाब कांग्रेस के समक्ष अब जातिवाद को लेकर समस्या खड़ी हो रही है। अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) से संबंधित दिड़बा से विधायक सुरजीत धीमान ने हाई कमान के सामने नई मांग रख दी है। उन्होंने पंजाब कैबिनेट में कम से कम 2 विधायकों को मंत्री बनाने की मांग रखी है। उनका कहना है कि पार्टी ये बेहद सराहनीय काम किया है कि दलित भाईचारे को सूबे का नेतृत्व सौंपते हुए चन्नी को मुख्यमंत्री बनाया गया है। इसके साथ ही दूसरे समुदाय के नुमाइंदों को भी उनका हक मिलना चाहिए। इसके लिए वह लंबे समय से मांग करते आ रहे हैं। दैनिक भास्कर संवाददाता से बात करते हुए सुरजीत धीमान ने कहा है कि अगर उनकी मांग नहीं मानी जाती तो वह ओबीसी भाईचारे से बात कर अगला फैसला लेंगे।
31% ओबीसी आबादी की 9 विधायक करते हैं नुमाइंदगी
सुरजीत धीमान का कहना है कि कांग्रेस पास 80 विधायक हैं और उनमें से 9 विधायक ओबीसी से संबंधित हैं। अब जब दलित भाईचारे से मुख्यमंत्री, जट्ट सिख और हिंदू चेहरे को उप मुख्यमंत्री बनाया गया है। तो उनके समुदाय के लोग भी मांग कर रहे हैं कि ओबीसी विधायकों को भी मंत्रीपद मिलना चाहिए। वह 31 फीसदी ओबीसी भाईचारे की नुमाइंदगी करते हैं। ओबीसी भाईचारे को भी बनता हक मिलना चाहिए। 9 में से कम से कम दो विधायकों को तो मंत्रीपद मिलना ही चाहिए।
विधायक सुरजीत धीमान। फाइल फोटो
कैप्टन के खिलाफ भी आवाज उठा चुके हैं धीमान
बता दें कि सुरजीत धीमान ने कैप्टन अमरिंदर सिंह के मुख्यमंत्री रहते हुए यह कहकर सब को चौंका दिया था कि कैप्टन की अगुवाई में अगला चुनाव नहीं लडेंगे। इसके बाद से वह लगातार चर्चा में हैं। अब उनकी ओर से ओबीसी भाईचारे के लिए आवाज उठा दी गई है और मांग की गई है कि जब जात और धर्म के नाम पद बांटे जा रहे हैं तो उनके समुदाय को भी बनता मान सम्मान मिलना चाहिए।
पहले भी उठा चुका हूं एसी मांग, मगर नहीं हुई सुनवाई
धीमान कहते हैं कि यह पहली बार नहीं है कि वह इस संबंधी बात नहीं कर रहे हैं। पहले भी दिल्ली में हाईकमान से बात की है और विधान सभा में यह मुद्दा उठाया है। मगर मेरी सुनवाई नहीं हुई है। अब जब कैबिनेट का विस्तार हो रहा है तो इस तरफ ध्यान देना चाहिए। क्योंकि अकेली 34 फीसदी दलित वोट से अगली सरकार नहीं बननी है। सभी को साथ लेकर चलना भी जरूरी है और उनके समुदाय की पिछले लंबे समय से अनदेखी हो रही है। अब अगर सुनवाई नहीं होती है तो ओबीसी भाईचारे के लोग कैसे उन्हें वोट देंगे।
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