तालिबान से ज्यादा खतरनाक है उनका साथ देने वाले ये आतंकी गुट, जानिए उनके बारे में सबकुछ

तालिबान से ज्यादा खतरनाक है उनका साथ देने वाले ये आतंकी गुट, जानिए उनके बारे में सबकुछ

[ad_1]

अफगानिस्तान में तालिबान राज आ चुका है। लेकिन यहां पर तालिबान के अलावा भी कई आतंकी गुट सक्रिय हैं। यह आतंकी गुट न सिर्फ सक्रिय हैं, बल्कि तालिबान से बराबर संपर्क में हैं। इसके चलते विश्व समुदाय को इस बात की आशंका सताने लगी हैं कि कहीं तालिबान अफगान धरती पर आतंक का पनाहगार न बन जाए। इस आशंका के पीछे वाजिब वजहें भी हैं। असल में अफगानिस्तान पर साल 1996 से 2001 के शासन के दौरान तालिबान अलकायदा को पाला-पोसा था। आइए एक नजर डालते हैं उन आतंकी गुटों पर जो फिलहाल अफगान धरती पर सक्रिय हैं। साथ ही यह भी जानेंगे कि फिलहाल उनके तालिबान से संपर्क की स्थिति क्या है…

अलकायदा कोर
तालिबान के बाद यह अफगानिस्तान का इस समय का टॉप आतंकी गुट है। सितंबर 2001 में हुए आतंकी हमलों के बाद से यह लगातार अमेरिका के निशाने पर रहा है। इसकी आतंकी गुट की कमाना अयमान अल जवाहिरी के हाथ में है। अमेरिकी कांग्रेस थिंक टैंक की रिपोर्ट के मुताबिक तालिबान-अलकायदा का गठजोड़ 1990 के पहले से है। दोनों ने अमेरिका और अंतर्राष्ट्रीय फौजों के साथ मिलकर लड़ाई भी लड़ी है। वहीं एक-दूसरे गुट के साथ इनके वैवाहिक और निजी संबंध भी हैं। अप्रैल 2021 में संयुक्त राष्ट्र ने एक रिपोर्ट में बताया था कि अलकायदा और तालिबान अब भी साथ काम कर रहे हैं। वहीं अफगानिस्तान में तालिबान का शासन स्थापित होने के बाद अलकायदा ने जश्न भी मनाया था।

इंडियन सबकांटिनेंट में अलकायदा यानी एक्यूआईएस
ऐसा ही एक अन्य आतंकी संगठन है एक्यूआईएस, यानी अल-कायदा इन इंडियन सबकांटिनेंट। यह संगठन कोर अलकायदा से पूरी तरह से अलग है। इसकी स्थापना उपमहाद्वीप में गुट की मौजूदगी को बढ़ाने के लिए हुई थी। यह स्थानीय जगहों पर आतंकी भी बनाता है। वहीं इस गुट के कुछ आतंकी सीरिया भी भेजे गए हैं। पिछले कुछ वक्त में एक्यूआईएस ने अफगानिस्तान में तालिबान को लड़ाके भी भेजे हैं। अमेरिकी रक्षा विभाग की रिपोर्ट के मुताबिक एक्यूआईएस अमेरिकी सेनाओं को अफगानिस्तान में धमकी देता रहा है।

इस्लामिक स्टेट खोरासन प्रोविंस यानी आईएसकेपी
इस गुट की अफगानिस्तान में मौजूदगी जनवरी 2015 से है। यह इस्लामिक स्टेट का ही एक रूप है। इसमें तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान के ज्यादातर आतंकी हैं, जो 2014 में पाकिस्तान आर्मी से भाग निकले थे। आईएसकेपी को आईएसआईएस-के नाम से भी जाना जाता है और एक समय यह बहुत सफल माना जाता था। इस गुट के कुनार और नांगरहार प्रांत जैसे छोटे इलाको में 1500 से 2200 आतंकी लड़ाके होने का अनुमान है। इस गुट के तालिबान से रिश्ते बहुत अच्छे नहीं बताए जाते हैं। कुछ इलाकों में कब्जे को लेकर दोनों आतंकी गुटों में लड़ाइयां भी हो चुकी हैं। बताया तो यह भी जाता है कि दोबारा पावर में आने के बाद तालिबान ने जेल में बंद एक आईएसकेपी आतंकी को फांसी की सजा सुनाई थी। दोनों गुटों के बीच कई अन्य मुद्दों पर भी मतभेद है। 

हक्कानी नेटवर्क 
हक्कानी नेटवर्क और तालिबान के बीच दोस्ताना जगजाहिर है। वहीं अलकायदा के साथ भी अच्छी बनती है। इस तरह अफगानिस्तान में यह एक खतरनाक तिकड़ी बनती है। हक्कानी नेटवर्क का नेतृत्व सिराजुद्दीन हक्कानी करता है जो कि तालिबान का डिप्टी भी रह चुका है। इस गुट के पास बहुत ही कुशल लड़ाके हैं जो खतरनाक हमलों को अंजाम देने की कालबिलियत रखते हैं। इन लड़ाकों के पास टेक्निकल स्किल्स भी काफी ज्यादा हैं और एक्सप्लोसिव डिवाइस और रॉकेट बनाने में सक्षम हैं। हक्कानी नेटवर्क ने अफगानिस्तान में कुछ बेहद खतरनाक हमलों को अंजाम दिया है। वहीं तालिबान से संबंधों की बात करें तो यह नेटवर्क तालिबान की सुप्रीम काउंसिल को रिपोर्ट करता है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की रिपोर्ट की मुताबिक हक्कानी क्षेत्रीय और विदेशी आतंकी संगठनों के साथ तालिबान और अलकायदा के मेलजोल में बड़ी भूमिका निभाता है। 

अन्य आतंकी संगठन
तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी): यह आतंकी गुट पाकिस्तान तालिबान के नाम से जाना जाता है। पाकिस्तान के खिलाफ इसने कई हमले किए हैं। वहीं तालिबान के साथ मिलकर अफगान सरकार के खिलाफ भी लड़ाई लड़ी है। पाकिस्तान में पैदा हुए इस गुट की स्थापना साल 2007 में हुई थी। लेकिन 2013 में इसके लीडर हकीमुल्लाह मसूद की मौत के बाद इसमें बिखराव शुरू हो गया। हालांकि 2020 के बाद से एक बार फिर यह गुट एकजुट होने लगा है। 

इस्लामिक मूवमेंट ऑफ उज्बेकिस्तान: इस गुट की स्थापना उज्बेकों ने की थी। यह इस्लामी ताकतों के साथ ताजिकिस्तान में 1992 से 1997 के साथ सिविल वॉर में शामिल हुआ था। इसने मध्य एशियाई देशों पर कई हमले किए हैं और अलकायदा का प्रमुख साथी रहा है। 2001 में जब अमेरिका अफगानिस्तान आया इस गुट ने भी अपना ध्यान अफगानिस्तान और पाकिस्तान पर केंद्रित कर लिया। यूएन की रिपोर्ट में यह बताया गया है कि यह गुट तालिबान के नियंत्रण में है।

ईस्टर्न तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट : इस गुट को तुर्किस्तान इस्लामी पार्टी के नाम से भी जाना जाता है। यह उइगर मुसलमानों के लिए एक अलग इस्लामी देश बनाना चाहता है। उइगर मुसलमान पश्चिमी चीन में टर्की बोलने वाले हैं। इस गुट का संबंध अलकायदा से भी है। संयुक्त राष्ट्र की जून 2021 में जारी रिपोर्ट के मुताबिक इस गुट में बड़ी संख्या में लड़ाके उत्तर पूर्वी अफगानिस्तान से हैं।

[ad_2]

Source link

Published By:

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *