तालिबान की इस एक वादे से करीब आया चीन, मान्यता तक देने को हुआ तैयार, जानें- कैसे हैं दोनों के रिश्ते
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अफगानिस्तान पर तालिबान का कब्जा हो गया है। अफगानिस्तान में तालिबान ने जितनी तेजी से कब्जा किया है उससे हर देश हैरान है। भारत, अमेरिका, कतर, उज्बेकिस्तान, ब्रिटेन, यूरोपीय संघ, जर्मनी जैसे कई देशों ने ऐलान किया है कि वे अफगानिस्तान में तालिबान शासन को मान्यता नहीं देंगे। हालांकि, दूसरों को शांति का पाठ पढ़ाने वाले चीन को बंदूक की भाषा बोलने वाले तालिबानियों से ज्यादा समस्या नहीं है। चीन ने पहले ही साफ कर दिया था कि वह तालिबान को मान्यता देने के मूड में है लेकिन इसकी वजह क्या है? तालिबान के पिछले राज को चीन ने मान्यता नहीं दी थी मगर इस बार दोनों दोस्ती की पींगे बढ़ाते दिख रहे हैं।
दरअसल, चीन की 76 किलोमीटर लंबी सीमा अफगानिस्तान से लगती है। बीजिंग को लंबे समय से यह डर सताता आया है कि संवेदनशील प्रांत शिनजियांग में रह रहे अल्पसंख्यक उइगुर समुदाय के लिए कहीं अफगानिस्तान एक मंच न बन जाए। बीजिंग को लग रहा था कि अफगान में तालिबान राज की वजह से उसके शिनजियांग प्रांत में अल्पसंख्यक मुस्लिम समुदाय के अलगाववाद को बढ़ावा मिल सकता है। शिनजियांग प्रांत की सीमा अफगानिस्तान, पाक अधिकृत कश्मीर और कजाख्स्तान, किर्गीस्तान, ताजिकिस्तान जैसे मध्य एशियाई देशों से लगती है।
तालिबान ने चीन से किया ये वादा
मुल्लाह अब्दुल गनी बरादर को संभवतः अफगानिस्तान का अगला राष्ट्रपति बनाया जाएगा। बीते महीने बरादर के नेतृत्व में ही तालिबानी प्रतिनिधिमंडल ने चीन के विदेश मंत्री वांग यी इन से तियांजिन में मुलाकात की थी। इस दौरान तालिबान ने चीनी विदेश मंत्री से यह वादा किया था कि वह अफगानिस्तान की धरती का इस्तेमाल उइगुर चरमपंथियों के अड्डे के तौर पर नहीं होने देगा।
संयुक्त राष्ट्र की एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, पूर्वी तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट (ETIM) के सैकड़ों आतंकवादी, जो अल कायदा के आतंकी संगठन से जुड़े हैं, देश में तालिबान द्वारा की गई सैन्य प्रगति के बीच अफगानिस्तान में जुट रहे हैं। इसके अलावा चीन के लिए मध्य एशिया तक पहुंचने का अफगानिस्तान सबसे बेहतर जरिया है। चीन बेल्ट एंड रोड एनीशिएटिव के तहत अफगानिस्तान में निवेश करने की तैयारी में है।
चीन से दोस्ती का तालिबान को क्या फायदा?
तालिबान भी चीन के उइगुर मुस्लिमों का साथ छोड़ने में अपना फायदा देख रहा है। दरअसल, चीन ने तालिबान से वादा किया है कि अगर वह उसकी इच्छा पूरी करेगा तो बदले में बीजिंग अफगानिस्तान को आर्थिक मदद देगा साथ ही अफगानिस्तान के पुनर्निमाण के लिए भी निवेश मुहैया कराएगा। इसके अलावा चीन जैसे बड़े एशियाई देश से मान्यता पाना तालिबान को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वैधता पाने में भी मदद करेगा। तालिबान प्रवक्ता सुहैल शाहीन ने भी यह कहा था कि अगर चीन अफगानिस्तान में निवेश करता है तो तालिबान उसकी सुरक्षा की गारंटी देगा।
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