जानिए…किसानों की मांगें मानने के पीछे की पूरी कहानी: किसान नेताओं ने वकीलों से राय ली, छठे दौर की वार्ता में रखे केस के कानूनी पहलू; 5 दौर में अड़ियल रुख दिखाने वाली सरकार को माननी पड़ी 2 मांगें

जानिए…किसानों की मांगें मानने के पीछे की पूरी कहानी: किसान नेताओं ने वकीलों से राय ली, छठे दौर की वार्ता में रखे केस के कानूनी पहलू; 5 दौर में अड़ियल रुख दिखाने वाली सरकार को माननी पड़ी 2 मांगें

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करनाल6 मिनट पहले

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जानिए…किसानों की मांगें मानने के पीछे की पूरी कहानी: किसान नेताओं ने वकीलों से राय ली, छठे दौर की वार्ता में रखे केस के कानूनी पहलू; 5 दौर में अड़ियल रुख दिखाने वाली सरकार को माननी पड़ी 2 मांगें

किसानों ने करनाल में मिनी सचिवालय के बाहर पांच दिनों से चल रहा अपना धरना शनिवार को प्रशासन के साथ सहमति बनने के बाद खत्म कर दिया। 7 सितंबर के बाद किसान नेताओं के साथ हुई 5 दौर की वार्ता में हरियाणा सरकार एक भी मांग मानने को तैयार नहीं थी मगर शुक्रवार को बातचीत के बाद अचानक उसके रवैये में बदलाव देखने को मिला और शनिवार सुबह होते-होते सरकार के प्रतिनिधि के तौर पर बातचीत कर रहे ACS देवेंद्र सिंह ने कहा कि सरकार किसानों की 2 प्रमुख मांगें मानने को तैयार है। ऐसे में बड़ा सवाल यही है कि आखिर शुक्रवार शाम साढ़े 5 बजे छठे दौर की वार्ता में ऐसा क्या हुआ कि सरकार बैकफुट पर आने को मजबूर हो गई।

दरअसल शुक्रवार शाम को प्रशासन के साथ छठे दौर की समझौता वार्ता में जाने से पहले किसान नेताओं ने वकीलों और कानूनी जानकारों से सभी पहलुओं पर मंथन किया था। किसान नेताओं ने कानूनी जानकारों से समझा कि आखिर 28 अगस्त को किसानों के सिर फोड़ने के आदेश देने वाले करनाल के तत्कालीन SDM आयुष सिन्हा के वीडियो के आधार पर उनके खिलाफ किस धारा के तहत क्या कानूनी कार्रवाई हो सकती है? इसके अलावा बसताड़ा टोल प्लाजा पर पुलिस लाठीचार्ज में घायल होने की वजह से दम तोड़ने वाले सुशील काजल के परिवार के सदस्यों को अनुकंपा आधार पर नौकरी दिलाने का उनका दावा भी कितना मजबूत है?

दोनों ही मुद्दों पर कानूनी जानकारों की राय के हिसाब से किसानों ने ACS देवेंद्र सिंह के साथ हुई छठे दौर की वार्ता में मजबूती के साथ अपने तर्क रखे। यही वजह रही कि किसान नेताओं की मांग पर प्रशासन को झुकना पड़ा और सरकार ने दो महत्वपूर्ण शर्तों पर अपनी सहमति दे दी।

7 और 8 सितंबर को करनाल जिला प्रशासन के अधिकारियों के साथ 5 दौर की वार्ता विफल होने के बाद किसानों ने मांग रखी थी कि वह अब सिर्फ सरकार के सीनियर अधिकारियों से ही बात करेंगे। ऐसा इसलिए क्योंकि करनाल जिला प्रशासन के अधिकारी हर दौर की वार्ता के बाद चंडीगढ़ में आला अफसरों से संपर्क साध रहे थे। ऐसे में किसान नेता समझ गए कि उनकी किसी भी मांग पर फैसला लेना करनाल जिला प्रशासन के अधिकार क्षेत्र से बाहर की बात है। यही वजह रही कि 8 सितंबर को पांचवें दौर की वार्ता विफल होने के बाद किसान नेताओं ने स्पष्ट कर दिया कि अब वह सरकार के सीनियर अधिकारियों से ही बातचीत करेंगे।

किसान नेताओं का रुख भांपने के बाद हरियाणा सरकार ने ACS देवेंद्र सिंह को उनसे बातचीत की जिम्मेदारी सौंपी। उसके बाद शुक्रवार शाम साढ़े 5 बजे ACS देवेंद्र सिंह की अगुवाई वाली प्रशासनिक टीम ने 13 किसान नेताओं के साथ तकरीबन 4 घंटे तक बातचीत की। इसी बातचीत में दोनों पक्षों के बीच दो प्रमुख मांगों पर सहमति बन गई लेकिन मामले को शनिवार सुबह तक के लिए टाल दिया गया। किसान नेताओं ने ऐसा इसलिए भी किया क्योंकि अगर शुक्रवार शाम को ही मांगें मानने का ऐलान कर दिया जाता तो उनके लिए रात हो जाने की वजह से उसी समय मिनी सचिवालय के सामने चल रहा धरना उठाना मुश्किल हो जाता। ऐसे में संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस के लिए शनिवार सुबह का समय तय किया गया।

ACS बोले- सरकार की सहमति से किसानों को मनाया

शनिवार सुबह बारिश थमने के बाद दोनों पक्ष इकट्‌ठा हुए। प्रेस कॉन्फ्रेंस में ACS देवेंद्र सिंह ने बताया कि शुक्रवार शाम किसानों के साथ सौहार्दपूर्ण माहौल में बातचीत हुई। इसमें किसानों ने पूरा सहयोग दिया और प्रदेश सरकार की सहमति से उनकी मांगों को मान लिया गया है। इसके बाद अधिकारियों ने किसान नेताओं से भी संतुलित बात कहलवाकर उन्हें बाहर भेज दिया।

किसान बोले- मुआवजा भी मिलेगा, जांच का रिजल्ट भी आएगा

प्रेस कॉन्फ्रेंस वाले हॉल से बाहर निकलने के बाद किसान नेताओं ने दावा किया कि सरकार ने उनकी अन्य मांगों को भी मान लिया है। किसान नेताओं के अनुसार, ‘हम जो चाह रहे थे उससे भी ज्यादा मिला है।’

करनाल के तत्कालीन SDM आयुष सिन्हा को सस्पेंड करने की मांग छोड़ने संबंधी सवाल पर भाकियू प्रदेशाध्यक्ष गुरनाम सिंह चढूनी ने कहा कि सस्पेंड की मांग मनवाते तो सरकार उस अफसर को फिर बहाल कर देती। केस दर्ज करने की मांग पर ही अड़ते तो सरकार जांच के दौरान उसे बाहर निकाल सकती थी। ऐसे में घटना की न्यायिक जांच कराना ही किसानों के लिए सबसे मजबूत विकल्प था और सरकार इसे मानने को मजबूर हो गई है।

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