चुनावी जंग में उतरेंगे किसान!: पंजाब के 32 संगठनों के नेताओं की गुप्त मीटिंग; खुद चुनाव लड़ने पर मंथन, सहमति बनाने की कोशिश
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चंडीगढ़33 मिनट पहले
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कुछ किसान नेताओं का यह मत था कि उन्हें सीधे चुनाव मैदान में उतरना चाहिए।
पंजाब विधानसभा चुनाव 2022 की जंग में किसान नेता भी मैदान में उतर सकते हैं। गुरुवार को पंजाब के 32 किसान संगठनों के नेताओं की लुधियाना के समराला में गुप्त मीटिंग हुई, जिसमें किसान नेताओं ने चुनाव पर मंथन किया। कुछ किसान नेताओं का यह मत जरूर था कि उन्हें सीधे चुनाव मैदान में उतरना चाहिए।
हालांकि फिलहाल किसान नेताओं ने खुद चुनाव लड़ने के अलावा किसी एक पार्टी, किसी एक यूनियन या नेता का समर्थन या राजनीति से दूरी बनाए रखने का विकल्प भी खुला रखा है। इसको लेकर फिर से किसान नेताओं की मीटिंग हो सकती है। वहीं मीटिंग की जानकारी बाहर आते ही नेताओं में हड़कंप मचा हुआ है।
लुधियाना के खन्ना में बलबीर राजेवाल को CM बनाने के पोस्टर लग चुके हैं। राजेवाल के आम आदमी पार्टी के CM चेहरे की भी चर्चा है। मीटिंग भी राजेवाल ने ही बुलाई थी।
किसान नेताओं का तर्क, राजनीतिक लालसा से बड़ा हमारा मसला
किसान नेताओं का मानना है कि उनके लिए चुनाव लड़ना राजनीतिक लालसा से ज्यादा बड़ा है। किसानों के मसले पर सभी राजनीतिक दल और नेता वादे करते हैं, लेकिन उन्हें पूरा नहीं करते। 2017 के चुनाव में भी कैप्टन अमरिंदर सिंह ने पूर्ण कर्ज माफी का वादा किया था, लेकिन अभी तक सबको इसका लाभ नहीं मिला। केंद्र ही नहीं बल्कि राज्य से जुड़े बिजली, फसलों के रेट समेत कई मुद्दों पर भी उन्हें सुनवाई के लिए धरना देने को मजबूर होना पड़ता है। इसलिए वह पारंपरिक पार्टियों से किनारा करने के मूड़ में हैं।
सहमति बनाने की कोशिश
मीटिंग में कुछ किसान नेताओं ने कहा कि पंजाब के लोग सत्ता कभी कांग्रेस और कभी अकाली दल को दे देते हैं। इसके बावजूद किसानों से जुड़े मुद्दे हल नहीं होते। इसलिए अब 32 संगठनों के बीच सहमति बनाने की कोशिश चल रही है कि क्यों न किसान संगठनों के नेता ही चुनाव लड़ें और फिर किसानों के मुद्दे हल करवाएं।
किसान नेता बूटा सिंह बुर्ज गिल
चुनाव लड़ने पर अब रोक नहीं
किसान नेता बूटा सिंह बुर्ज गिल ने कहा कि समराला में बलबीर सिंह राजेवाल ने फतेह पार्टी रखी थी, जिसमें सब इकट्ठा हुए थे। जब तक किसान आंदोलन चल रहा था तो किसान नेताओं को राजनीति से दूर करने को कहा गया था। अब कृषि कानून वापसी के बाद आंदोलन खत्म हो चुका है। अब किसी पर कोई रोक नहीं है कि वह राजनीति करें या फिर चुनाव लड़ें।
हरियाणा के किसान नेता गुरनाम चढ़ूनी।
चढ़ूनी बने पंजाब के संगठनों की चुनौती
संयुक्त किसान मोर्चा में रहे हरियाणा के किसान नेता गुरनाम चढ़ूनी पंजाब के संगठनों की चुनौती बने हुए हैं। चढ़ूनी पंजाब की राजनीति में सक्रिय हो चुके हैं। वह खुद चुनाव नहीं लड़ेंगे, लेकिन अपने उम्मीदवार उतारेंगे। उनकी शनिवार को चंडीगढ़ में प्रेस कॉन्फ्रेंस है, जिसके बाद वह पार्टी की भी घोषणा कर सकते हैं। चढ़ूनी अगर पंजाब की सियासत में किसानों के सहारे कामयाब हो गए तो पंजाब के संगठनों को बड़ा झटका लग सकता है। इसलिए चुनाव पर मंथन किया जा रहा है।
राजनीतिक दलों की चिंता, पंजाब में ताकतवर किसान वोट बैंक
पंजाब में किसान चुनाव में उतरते हैं तो राजनीतिक दलों के लिए बड़ी चिंता साबित होगी। इसकी वजह पंजाब में वोट बैंक का गणित है। पंजाब की कुल 117 विधानसभा सीटों में से 77 सीटों पर किसानों का डोमिनेंस हैं। किसान आंदोलन में पंजाब का हर संगठन ने साथ दिया। किसान किसी ने किसी संगठन से जुड़े हुए हैं। ऐसे में अगर सभी 32 किसान संगठन एकजुट होकर चुनाव में आ गए तो पंजाब चुनाव में बड़ा सियासी धमाका होना तय है। किसान नेताओं को सिर्फ किसानों का ही नहीं, बल्कि उनसे जुड़े आढ़ती वर्ग, खेतीबाड़ी से जुड़े दुकानदारों आदि का भी समर्थन मिल सकता है।
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