क्या है LGBTQIA+: अपीयरेंस नहीं, सेक्शुअल प्रेफरेंस से होती है पहचान; आपको बताते हैं क्या है इन अक्षरों के मायने

क्या है LGBTQIA+: अपीयरेंस नहीं, सेक्शुअल प्रेफरेंस से होती है पहचान; आपको बताते हैं क्या है इन अक्षरों के मायने

[ad_1]

  • Hindi News
  • National
  • What Is LGBTQIA+ Community; Saurabh Kirpal India’s First Gay Delhi High Court Judge

15 मिनट पहले

  • कॉपी लिंक
क्या है LGBTQIA+: अपीयरेंस नहीं, सेक्शुअल प्रेफरेंस से होती है पहचान; आपको बताते हैं क्या है इन अक्षरों के मायने

देश को जल्द पहला गे (समलैंगिक) जज मिल सकता है। सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम ने सीनियर वकील सौरभ कृपाल (49) को दिल्ली हाईकोर्ट का जज बनाने की सिफारिश की है। वे LGBTQIA+ समुदाय से हैं। इस समुदाय में लोगों की पहचान उनके पहनावे या अपीयरेंस से नहीं, बल्कि उनके सेक्शुअल प्रेफरेंस से होती है। यानी वे सेक्शुअल रिलेशनशिप के लिए किस जेंडर के प्रति आकर्षित होते हैं और खुद को शरीर के अलावा मैस्कुलिन (पौरुष) या फैमिनाइन (स्त्रैण) तरीके से देखते हैं। हम आपको बताते हैं कि इस समुदाय में कौन-कौन आते हैं और इस प्लस (+) साइन का मतलब क्या है।

LGBTQIA+ के हर अक्षर के मायने जानें…

L – ‘लेस्बियन’: यानी एक महिला या लड़की का समान लिंग के प्रति आकर्षण। इसमें दोनों पार्टनर महिला ही होती हैं। कई बार किसी एक पार्टनर का लुक, पर्सनालिटी पुरुष जैसी हो सकती है या नहीं भी हो सकती है।

लेस्बियन प्राइड फ्लैग। इसे 2010 में बनाया गया था।

लेस्बियन प्राइड फ्लैग। इसे 2010 में बनाया गया था।

G – ‘गे’: जब एक पुरुष को एक और पुरुष से ही प्यार हो तो उन्हें ‘गे’ कहते हैं। ‘गे’ शब्द का इस्तेमाल कई बार पूरे समलैंगिक समुदाय के लिए किया जाता है, जिसमें ‘लेस्बियन’, ‘गे’, ‘बाइसेक्सुअल’ सभी आ जाते हैं।

B – ‘बायसेक्सुअल’: जब किसी पुरुष या महिला को पुरुष और महिला दोनों से ही प्यार हो और सेक्शुअल रिलेशन भी बनाते हों तो उन्हें ‘बायसेक्शुअल’ कहते हैं। पुरुष और महिला दोनों ही ‘बायसेक्शुअल’ हो सकते हैं। दरअसल एक इंसान की शारीरिक चाहत तय करती है कि वो L है G है या फिर B है।

बायसेक्शुअल प्राइड फ्लैग 1998 में बनाया गया था।

बायसेक्शुअल प्राइड फ्लैग 1998 में बनाया गया था।

T- ‘ट्रांसजेंडर’: वह इंसान जिनका शरीर पैदा होते समय कुछ और था और वह बड़ा होकर खुद को एकदम उलट महसूस करने लगे। जैसे कि पैदा होने के वक्त बच्चे के निजी अंग पुरुषों के थे और उसका नाम लड़के वाला था मगर कुछ समय बाद उसने खुद को पाया कि वो तो लड़की जैसा महसूस करता है। इस पर कुछ लोग लिंग परिवर्तन भी कराते हैं। लड़के लड़कियों वाले हार्मोंस डलवा लेते हैं जिससे स्तन उभर आते हैं। ये लोग ‘ट्रांसजेंडर’ हैं। इसी तरह औरत भी मर्द जैसा महसूस करती है तो वो मर्दों की तरह लगने के लिए चिकित्सा का सहारा लेती है। वह भी‘ट्रांसजेंडर’ है।

Q – ‘क्वीयर’: ऐसे इंसान जो न अपनी पहचान तय कर पाए हैं न ही शारीरिक चाहत। मतलब ये लोग खुद को न आदमी, औरत या ‘ट्रांसजेंडर’ मानते हैं और न ही ‘लेस्बियन’, ‘गे’ या ‘बाईसेक्सुअल’, उन्हें ‘क्वीयर’ कहते हैं। ‘क्वीयर’ के ‘Q’ को ‘क्वेश्चनिंग’ भी समझा जाता है यानी वो जिनके मन में अपनी पहचान और शारीरिक चाहत पर अभी भी बहुत सवाल हैं।

I- ‘इंटरसेक्स’: इंटरसेक्स सोसायटी ऑफ नॉर्थ अमेरिका के मुताबिक, यह शब्द उन लोगों को परिभाषित करता है जो महिला या पुरुष के सामान्य प्रजनन अंगों के साथ पैदा नहीं होते हैं। वे लोग जो बाहर से तो महिला या पुरुष लगते हैं, लेकिन उनके प्रजनन अंग उस जेंडर से मेल नहीं खाते।

इंटरसेक्स प्राइड फ्लैग का यह वर्जन 2013 में बनाया गया।

इंटरसेक्स प्राइड फ्लैग का यह वर्जन 2013 में बनाया गया।

A- ‘एसेक्शुअल’ या ‘एलाई’: इस अक्षर के दो मायने हो सकते हैं। पहला है एसेक्शुअल- यह शब्द उन लोगों के लिए जो इस्तेमाल होता है जो किसी जेंडर के प्रति सेक्शुअल अट्रैक्शन महसूस नहीं करते। ये लोग किसी के साथ रोमांटिक रिलेशनशिप में तो आ सकते हैं, तो सेक्शुअल रिलेशंस नहीं बना पाते। ऐसा किसी मनोरोग या डर के कारण नहीं होता है, बस इन्हें सेक्शुअल फीलिंग नहीं आती।

दूसरा शब्द है एलाई– यह शब्द ऐसे लोगों के लिए इस्तेमाल किया जाता है जो LGBTQI लोगों के साथी या दोस्त के तौर उनके अधिकारों के लिए आवाज उठाता है, भले ही वह खुद इस समुदाय से संबंधित न हो।

प्लस (+): इसके अलावा LGBTQIA के आगे प्लस (+) का निशान भी लगाया जाने लगा है। इसमें पैनसेक्शुअल, पॉलीएमॉरस, डेमिसेक्शुअल सहित कई अन्य समूह रखे जाते हैं। इससे और भी समूहों के लिए खुला रखा गया है, जिनकी अभी तक पहचान भी नहीं हो पाई है।

खबरें और भी हैं…

[ad_2]

Source link

Published By:

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *