कोरोना से 4 लाख मौतें, देखें 10 तस्वीरें: लोग ऑक्सीजन और इलाज के अभाव में दम तोड़ रहे थे; गंगा में लाशें तैर रही थीं, श्मशान और कब्रिस्तान में शवों के लिए लेने पड़ रहे थे टोकन
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नई दिल्ली34 मिनट पहले
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देश में कोरोना महामारी से हुई मौतों का आंकड़ा शुक्रवार को 4 लाख के पार पहुंच गया। महामारी की सेकेंड वेव में इन मौतों की दास्तां इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गईं। इस साल मई और जून में हालात ऐसे थे कि मरीजों को अस्पतालों में बेड नहीं मिल रहे थे।
कई अस्पतालों में बेड पर पड़े मरीज डॉक्टरों के सामने ऑक्सीजन की कमी से दम तोड़ रहे थे। प्रशासन मौतों की गिनती छिपा रहा था। लाशों को श्मशान और कब्रिस्तान में दो हाथ जमीन तक नसीब नहीं थी। शहरों में लोग अपने परिजन के शवों को जलाने के लिए टोकन ले रहे थे। वहीं गंगा में लाशों को बहाने का सिलसिला भी पहली बार देखने को मिला।
पहली बार ऑक्सीजन के लिए हाहाकार
देश ने ऑक्सीजन की कमी ऐसी कभी भी नहीं देखी थी। क्या अमीर और क्या गरीब। सबके हालात एक जैसे थे। पैसे तो थे लेकिन जिंदगी खरीदना नामुमकिन था। हालात ऐसे बने कि सरकार को ट्रेन और सेना के विमान से जवानों की सुरक्षा के बीच अस्पतालों में ऑक्सीजन पहुंचानी पड़ रही थी।
दुनियाभर के देशों से भारत को ऑक्सीजन, जरूरी दवाइयां और मेडिकल सामान भेजे जा रहे थे। अप्रैल से शुरू हुई महामारी की दूसरी वेव वाकई में दिल दहला देने वाला थी। आइए देखते हैं वो तस्वीरें जो इतिहास के पन्नों में न भूलने वाली दास्तां बन गई…
अस्पतालों में टूट रही थी सांसे
स्वास्थ्य सुविधाओं के मामले में पूरी तरह से सक्षम महाराष्ट्र और दिल्ली जैसे राज्यों में मरीज ऑक्सीजन, इलाज और दवाइयों की कमी से दम तोड़ रहे थे। डॉक्टर असहाय थे, क्योंकि उनके हाथ में हुनर था, ऑक्सीजन नहीं। देश के बाकी अस्पतालों में भी ऑक्सीजन की कमी से कुछ यही हालात बने हुए थे।
श्मशान में लाशों का ढेर लगा था, सरकारें आंकड़ेबाजी में लगी रहीं
महामारी के दौरान मौतों को कम बताने की आंकड़ेबाजी खूब हुई। देश का कोई ऐसा राज्य नहीं था, जो दूध का धुला हो। हर कोई रोज होने वाली मौतों को कम बताता ताकि उनकी व्यवस्था की पोल न खुले। लेकिन महामारी ने हर छोटे और बड़े राज्य में स्वास्थ्य व्यवस्था की सच्चाई की परत उधेड़कर सबके सामने रख दी।
यह तस्वीर भोपाल के भदभदा विश्राम घाट की है, गुरुवार को यहां एकसाथ कोरोना संक्रमितों की 40 से ज्यादा चिताएं जलती नजर आईं। सरकार ने 4 मौतें बताईं।
गंगा में लाशें तैर रही थीं, नदी की धारा ने सच्चाई की परतें उधेड़ डालीं उत्तर प्रदेश में गंगा से लगे प्रयागराज, वाराणसी, बलिया समेत कई जिलों में कोरोना से हो रही मौतों के बाद शवों को या तो गंगा में फेंका जा रहा था या फिर उसे दफना दिया जा रहा था। यह किसी को पता नहीं था। लेकिन गंगा की लहरों ने सच्चाई की परत उधेड़कर सबके सामने रख दी। शव जब घाट के किनारे लगे तो कुत्ते उन्हें नोच रहे थे।
तस्वीर बिहार के बक्सर जिले की है। यहां गंगा में शव तैर रहे थे। इन्हें कौवे और कुत्ते नोच रहे थे।
प्रयागराज में गंगा की लहरों ने प्रशासन की व्यवस्था की पोल खोल दी। पानी की धार ने शवों की सच्चाई सामने ला दी।
वाराणसी के गंगा घाट पर लगातार शवों को जलाया जा रहा था। यहां लोगों को अपनी बारी के लिए घंटों इंतजार करना पड़ रहा था।
वाराणसी में मां के कदमों में बेटे की निकली जान
वाराणसी में इलाज के अभाव में बेटे ने मां की गोद में दम तोड़ दिया। युवक अपनी मां के साथ इलाज कराने बीएचयू गया था। डॉक्टरों ने इलाज करने से मना कर दिया। बेटा घंटों मां के साथ इलाज का इंतजार करता रहा, लेकिन डॉक्टर नहीं मिले। आखिरकार ऑटो में बैठे-बैठे बेटा मां के पैरों में गिर गया और उसकी मौत हो गई।
इलाज के अभाव में मां के कदमों में ही बेटे की जान चली गई।
ऑक्सीजन नहीं मिला तो पति को मुंह से दी सांस, लेकिन टूट गई आस
आगरा में एक महिला अपने पति को ऑक्सीजन देने के लिए भटकती रही। लाख कोशिशों के बाद जब ऑक्सीजन नहीं मिली तो महिला ने अपनी सांसों से अपने पति की जिंदगी बचाने की कोशिश की, लेकिन वह भी काम नहीं आई। पति ने ऑटो के अंदर ही अपनी पत्नी की गोद में तड़प-तड़प कर दम तोड़ दिया।
आगरा में पति को ऑक्सीजन नहीं मिला तो पत्नी खुद मुंह से सांस देने लगी, लेकिन जान नहीं बचा पाई।
खून का रिश्ता भी संक्रमण की भेंट चढ़ा
महामारी से कोई नहीं बच सका। क्या जिंदा और क्या जान गंवाने वाला। अंतर बस इतना था कि किसी का शरीर मर चुका था तो किसी की आत्मा और इंसानियत। उत्तर प्रदेश के संत कबीरनगर जिले में ऐसा ही एक चौंकाने वाला मामला सामने आया। यहां कोरोना संक्रमित मृतक पिता का अंतिम संस्कार करने की बजाय बेटों ने शव को JCB से कूड़े की तरह उठाया और गड्ढा खोदकर दफना दिया।
यूपी के संत कबीरनगर जिले में कोरोना संक्रमित पिता का शव बेटे जेसीबी दफनाने ले गए।
मौत के बाद भी श्मशान में शवों की लाइन
तस्वीर दिल्ली की है। दो महीने पहले महामारी के पीक में अस्पतालों में इतनी मौतें हो रही थीं कि शवों को जलाने के लिए श्मशानों में लाइन लगी हुई थी। यहां मृतकों के परिजनों को टोकन दिया जा रहा था। उनका नंबर आने पर ही शवों की अंत्येष्टि की जा रही थी।
दिल्ली के शव गृह में शवों की लाइन लगी हुई थी।
श्मशान में एक साथ जल रही थीं कई चिताएं
इस तरह की तस्वीरें बताती हैं कि ये दौर कितना बुरा है। श्मशान घाटों में एक साथ कई चिताएं जल रही थीं। कई जगह तो इसके लिए भी टोकन बंट रहे हैं। यहां काम करने वाले लोग थक कर चूर हो जाते हैं, लेकिन लाशें आने का सिलसिला नहीं थमता। कई घंटे इंतजार करने के बाद मरने वाले को अंतिम संस्कार नसीब होता है।
श्मशान घाटों में एक साथ कई चिताएं जल रही हैं।
..और आखिर में वो जिन्हें लाशों पर भी पॉकेट भरने की पड़ी रही
इस महामारी के बीच कई ऐसे लोग थे जो जी जान से लोगों की मदद कर रहे थे। लेकिन एक बात ने मानवता को शर्मसार कर दिया। दरअसल, इस आपदा में ऐसे लोग भी थे जो ऑक्सीजन, अस्पताल और यहां तक की जरूरी दवाइयों की ब्लैक मार्केटिंग और फर्जीवाड़े में लगकर अपना पाॅकेट भरने में लगे रहे। इन्हें इंसानियत के फर्ज की फिक्र नहीं थी, ये बस जेब भरने की चिंता में महापाप करते रहे। हद तो तब हो गई जब वैक्सीनेशन में भी फर्जीवाड़ा करने लगे।
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