कांग्रेस में लाने वाली सोनिया ही बोलीं- सॉरी अमरिंदर: ब्लू स्टार से आहत कैप्टन 1984 में कांग्रेस छोड़ अकाली दल में गए; 1992 में बादल ने टिकट नहीं दी तो अलग पार्टी बनाई, 1998 में हुई वापसी

कांग्रेस में लाने वाली सोनिया ही बोलीं- सॉरी अमरिंदर: ब्लू स्टार से आहत कैप्टन 1984 में कांग्रेस छोड़ अकाली दल में गए; 1992 में बादल ने टिकट नहीं दी तो अलग पार्टी बनाई, 1998 में हुई वापसी

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अमृतसर3 मिनट पहले

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कांग्रेस में लाने वाली सोनिया ही बोलीं- सॉरी अमरिंदर: ब्लू स्टार से आहत कैप्टन 1984 में कांग्रेस छोड़ अकाली दल में गए; 1992 में बादल ने टिकट नहीं दी तो अलग पार्टी बनाई, 1998 में हुई वापसी

कांग्रेस को पंजाब में मजबूत करने में कैप्टन अमरिंदर सिंह का अहम रोल रहा है। पार्टी 2002 और 2017 में कैप्टन का चेहरा आगे कर ही सत्ता तक पहुंची। पंजाब कांग्रेस की मौजूदा लीडरशिप पर नजर डाली जाए तो कैप्टन इकलौते ऐसे लीडर हैं, जिन्हें खुद पूर्व प्रधानमंत्री स्व. राजीव गांधी सियासत में लेकर आए। हालांकि कैप्टन एक बार पहले भी कांग्रेस छोड़ चुके हैं मगर उसके 14 साल बाद वह सोनिया गांधी के आग्रह पर दोबारा पार्टी में लौटे और वो भी कांग्रेस को मजबूत करने के नाम पर।

शनिवार सुबह कैप्टन ने पूरे प्रकरण पर जब कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी से बात की तो उन्होंने इस बार कहा कि सॉरी अमरिंदर। इसके कुछ ही घंटे बाद कैप्टन ने राज्यपाल को अपना इस्तीफा सौंप दिया। सेना की सिख रेजिमेंट में वर्ष 1963 में बतौर कैप्टन ज्वाइन करने वाले कैप्टन अमरिंदर सिंह ने 1965 में पाकिस्तान के साथ हुई जंग के बाद सेना छोड़ दी। कैप्टन और राजीव गांधी मशहूर सनावर स्कूल में साथ पढ़े थे और उसी समय से एक-दूजे के दोस्त थे।

राजीव गांधी और सोनिया गांधी की लवमैरिज से इंदिरा गांधी नाराज थीं और उस समय पटियाला राजघराने के कैप्टन अमरिंदर सिंह ने ही राजीव और सोनिया को अपने महल में ठहराया था। वर्ष 1980 में राजीव गांधी के कहने पर ही कैप्टन ने पहली बार चुनाव लड़ा और लोकसभा सांसद बने। पूर्व प्रधानमंत्री स्व. इंदिरा गांधी के कार्यकाल में वर्ष 1984 में गोल्डन टैंपल पर हुए ऑपरेशन ब्लू स्टार से आहत होकर कैप्टन ने कांग्रेस छोड़ दी।

दो बार अकाली दल से विधायक बने

कांग्रेस छोड़ने के बाद कैप्टन अमरिंदर सिंह शिरोमणि अकाली दल में चले गए और बठिंडा की तलवंडी साबो सीट से विधायक चुने गए। तत्कालीन अकाली दल की सरकार में कैप्टन मंत्री बने और एग्रीकल्चर, फॉरेस्ट और पंचायतीराज मंत्रालय संभाला।

बादल ने सीट नहीं दी तो छोड़ दी पार्टी

वर्ष 1992 में कैप्टन ने शिरोमणि अकाली दल से डकाला विधानसभा सीट मांगी मगर पार्टी ने वहां से गुरचरण सिंह टोहड़ा के जंवाई हरमेल सिंह टोहड़ा को टिकट दे दिया। इसके बाद कैप्टन ने तलवंडी साबो सीट मांगी जहां से वह 2 बार विधायक बन चुके थे मगर पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल के दबाव में उन्हें वो सीट भी नहीं दी गई। दरअसल बादल नहीं चाहते थे कि कैप्टन मजबूत हों।

अपनी पार्टी फ्लॉप, खुद भी हारे

अकाली दल से टिकट नहीं मिलने से नाराज होकर कैप्टन ने शिरोमणि अकाली दल छोड़कर 1992 में अकाली दल पंथक नाम से नई पार्टी बना ली। हालांकि 1998 के विधानसभा चुनाव में कैप्टन की पार्टी कुछ खास नहीं कर सकी और खुद कैप्टन को उनकी सीट से महज 856 वोट मिले।

सोनिया के कहने पर कांग्रेस में गए

वर्ष 1998 में सोनिया गांधी ने कांग्रेस की कमान संभाल ली जिनसे कैप्टन परिवार के मधुर संबंध थे। सोनिया के आग्रह पर कैप्टन ने अपनी पार्टी का कांग्रेस में विलय कर दिया और 1999 में कांग्रेस हाईकमान ने कैप्टन अमरिंदर सिंह को पंजाब में कांग्रेस का प्रधान बना दिया।

2002 में कैप्टन ने दिलाई सत्ता

पंजाब में वर्ष 2002 का विधानसभा चुनाव कांग्रेस ने कैप्टन अमरिंदर सिंह के नेतृत्व में लड़ा और 117 विधानसभा सीटों में से 62 पर जीत दर्ज की। उस समय कैप्टन की लोकप्रियता चरम पर थी और बतौर सीएम उनके 2002 से 2007 के कार्यकाल को लोग आज भी याद करते हैं। हालांकि सरकार के आखिरी साल में पंजाब में सिटी सेंटर घोटाला उजागर हुआ और कांग्रेस को सत्ता गंवानी पड़ी।

सोनिया के कहने पर जेटली के सामने लड़ा चुनाव

वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान देश में नरेंद्र मोदी की लहर चल रही थी। पंजाब में अकाली-भाजपा गठबंधन की सरकार थी। अकाली दल के आग्रह पर भाजपा ने अमृतसर से अपने सीटिंग एमपी नवजोत सिद्धू का टिकट काटकर अरुण जेटली को मैदान में उतारा। उस समय कांग्रेस के पास जेटली के सामने कोई दमदार चेहरा नहीं था इसलिए सोनिया गांधी ने अंतिम समय में कैप्टन अमरिंदर सिंह को चुनाव लड़ने को कहा। कैप्टन ने सोनिया गांधी के आदेश पर न सिर्फ चुनाव लड़ा बल्कि अरुण जेटली को एक लाख से अधिक वोटों से शिकस्त भी दी।

10 साल बाद कैप्टन ने दिलाई कांग्रेस को सत्ता

पंजाब में 2017 के विधानसभा चुनाव से सालभर पहले तक, राहुल गांधी के खासमखास प्रताप बाजवा प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष थे और उनका कैप्टन से छत्तीस का आंकड़ा था। कैप्टन खुद प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी चाहते थे और उनके दबाव के आगे झुकते हुए हाईकमान ने प्रताप बाजवा को हटाते हुए राज्यसभा में भेज दिया। 2016 में नवजोत सिद्धू ने भी कांग्रेस पार्टी ज्वाइन कर ली।

2017 के विधानसभा चुनाव में कैप्टन के नेतृत्व में कांग्रेस को 70 से ज्यादा सीटों पर जीत मिली। 2019 के लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान कैप्टन की सिद्धू से अनबन हो गई और उसके बाद धीरे-धीरे सिद्धू ने कैप्टन से नाराज धड़े के साथ मिलकर अंतत: उनका इस्तीफा करवा ही दिया। हालांकि विधानसभा चुनाव से 6 महीने पहले कैप्टन का सीएम पद से इस्तीफा देने से किसे कितना फायदा या नुकसान होगा? यह 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव के बाद ही स्पष्ट हो पाएगा।

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