कांग्रेस को रास नहीं आया संगठन का ‘सिद्धू मॉडल’: पार्टी प्रधान की भेजी कार्यकारिणी लिस्ट हाईकमान ने रोकी; विधायकों और वरिष्ठ नेताओं ने जताया एतराज
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चंडीगढ़30 मिनट पहले
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पंजाब कांग्रेस प्रधान नवजोत सिद्धू का संगठन मॉडल कांग्रेस को पसंद नहीं आया। सिद्धू ने करीब 2 हफ्ते पहले संगठन की लिस्ट कांग्रेस हाईकमान को भेजी थी। इसे वहीं रोक लिया गया है। यह लिस्ट पंजाब कांग्रेस इंचार्ज हरीश चौधरी के पास अटकी हुई है।
चर्चा है कि सिद्धू ने संगठन बनाते वक्त पार्टी के MLA और वरिष्ठ नेताओं की नहीं सुनी। सिद्धू ने अपने करीबी MLA और नेताओं से चर्चा कर लिस्ट तैयार कर दी। इससे कई विधायक और नेताओं ने नाखुशी जाहिर की है। हालांकि इसे सही करने के लिए जल्द ही हरीश चौधरी और सिद्धू की मुलाकात हो सकती है।
हरीश चौधरी लगातार सीएम चन्नी और सिद्धू को साथ लेकर चलने की कोशिश कर रहे हैं।
सिद्धू ने दिया यह फार्मूला
सिद्धू राज्य की तरह ही जिले में संगठन बनाना चाहते हैं। राज्य में सिद्धू प्रधान और 4 वर्किंग प्रधान हैं। जिला कमेटियों में एक प्रधान और 2 वर्किंग प्रधान बनाने का प्रपोजल दिया है। राज्य में कांग्रेस की 29 जिला कमेटी हैं। इसमें इस फॉर्मूले से 89 नेताओं को एडजस्ट किया गया है। हालांकि इसमें जिन नेताओं के नाम चुने गए हैं, सब सिद्धू या फिर उनके करीबियों के करीबी हैं। यही वजह है कि कांग्रेस हाईकमान इसको लेकर खुश नहीं है।
सिद्धू पक्ष का तर्क- यह लिस्ट मेरिट पर, बाकी करीबियों को चाह रहे
सिद्धू के करीबी लोगों का तर्क है कि पंजाब में कांग्रेस संगठन की लिस्ट में मेरिट के आधार पर चेहरे शामिल किए गए हैं। इसके उलट कुछ MLA और नेता अपने करीबियों को कुर्सी दिलाना चाहते हैं, जिनका कोई ज्यादा आधार या फिर पूरी तरह स्वीकार्यता नहीं है। अगर उन्हें पद दिया जाएगा तो फिर संगठन में निचले स्तर पर कोई बदलाव नहीं आ पाएगा। वर्कर भी इससे नाराज होंगे। सूत्रों की मानें तो सिद्धू संगठन से लेकर टिकट बंटवारे तक अपनी छाप छोड़ने के लिए उत्सुक हैं।
CM और चौधरी ब्लॉक प्रधानों से मिले, सिद्धू गैरहाजिर
CM चरणजीत चन्नी और पंजाब इंचार्ज हरीश चौधरी ने सोमवार को चंडीगढ़ में कांग्रेस के ब्लॉक प्रधानों की मीटिंग बुलाई। इसमें सिद्धू गैरहाजिर थे। इसको लेकर 2 तरह की चर्चाएं चल रही हैं। कुछ कह रहे हैं कि सिद्धू को बुलाया गया था, लेकिन वह नहीं आए, जबकि संगठन प्रधान होने के नाते उनका इस मीटिंग में शामिल होना जरूरी था। कुछ का यह भी तर्क है कि इस मीटिंग को बुलाने से लेकर सिद्धू को संदेश भेजने में कोई उत्साह नहीं था, जिससे सिद्धू नहीं आए।
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