उत्तराखंड के स्कूल में छुआछूत का मामला: बच्चों ने दलित महिला का बनाया खाना खाने से मना किया, पेरेंट्स बोले- यह भर्ती जानबूझकर की गई
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देहरादून18 मिनट पहले
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उत्तराखंड के चंपावत जिले में ऊंची जाति के छात्रों ने दलित महिला के पकाए गए भोजन को खाने से इनकार कर दिया है। इस पर राज्य में सामाजिक भेदभाव और जातिगत पूर्वाग्रह को लेकर विवाद खड़ा हो गया है। अनुसूचित जाति की सुनीता देवी को हाल ही में सुखीढांग इलाके के जौल गांव के गवर्नमेंट सेकेंडरी स्कूल में भोजनमाता के तौर पर नियुक्त किया गया। उन्हें कक्षा 6 से 8 तक के छात्रों के लिए मिड डे मील तैयार करने का काम सौंपा गया था।
स्कूल के प्रिंसिपल प्रेम सिंह ने बताया कि सुनीता की ज्वाइनिंग के पहले दिन ऊंची जाति के स्टूडेंट्स ने भोजन किया था। हालांकि, दूसरे दिन से उन्होंने भोजन का बहिष्कार शुरू कर दिया। स्टूडेंट्स ऐसा क्यों कर रहे हैं, यह समझ से परे है। कुल 57 छात्रों में से अनुसूचित जाति के 16 बच्चों ने ही भोजन किया।
प्रिंसिपल बोले- सरकारी मानदंडों के हिसाब से नियुक्ति हुई
प्रिंसिपल सिंह ने कहा कि उन्हें सभी सरकारी मानदंडों के हिसाब से नियुक्त किया गया। उन्होंने बताया, ‘हमें भोजनमाता के पद के लिए 11 आवेदन मिले थे। दिसंबर के पहले सप्ताह में आयोजित अभिभावक शिक्षक संघ और स्कूल प्रबंधन समिति की ओपन मीटिंग में उनका चयन किया गया था।’
मालूम हो कि सरकारी स्कूलों में स्टूडेंट्स की अटेंडेंस बढ़ाने और उन्हें पौष्टिक आहार देने के लिए मिड डे मील की व्यवस्था की गई है। सुखीढांग हाई स्कूल में रसोइयों के दो पद हैं। शकुंतला देवी के रिटायर होने के बाद सुनीता देवी की नियुक्ति हुई।
ऊंची जाति के योग्य कैंडिडेट को नहीं चुनने का आरोप
भोजन का बहिष्कार करने वाले स्टूडेंट्स के पेरेंट्स ने इसे लेकर मैनेजमेंट कमेटी और प्रिंसिपल पर आरोप लगाया है। उनका कहना है कि ऊंची जाति के योग्य कैंडिडेट को जानबूझकर नहीं चुना गया। स्कूल के अभिभावक शिक्षक संघ के अध्यक्ष नरेंद्र जोशी ने कहा, “25 नवंबर को हुई ओपन मीटिंग में हमने पुष्पा भट्ट को चुना था, जिनका बच्चा स्कूल में पढ़ता है। वह भी जरूरतमंद थीं, लेकिन प्रिंसिपल और स्कूल मैनेजमेंट कमेटी ने उसे दरकिनार कर दिया और एक दलित महिला को भोजनमाता नियुक्त किया।”
‘गैर-जरूरी विवाद खड़ा किया जा रहा’
जोशी ने कहा कि ऊंची जाति के स्टूडेंट्स की संख्या अनुसूचित जाति के छात्रों से अधिक है, इसलिए उच्च जाति की महिला को भोजनमाता के रूप में नियुक्त किया जाना चाहिए। वहीं, प्रिसिंपल सिंह ने कहा कि उन्होंने उच्च अधिकारियों को नियुक्ति और उसके बाद बहिष्कार के बारे में जानकारी दे दी है। कुछ पेरेंट्स गैर-जरूरी विवाद खड़ा कर रहे हैं।
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