आज का इतिहास: 21 सिख सैनिकों ने 14 हजार पठानों से किया था मुकाबला, उनका पराक्रम देख ब्रिटिश संसद ने कहा – पूरे ब्रिटेन और भारत को आप पर गर्व है

आज का इतिहास: 21 सिख सैनिकों ने 14 हजार पठानों से किया था मुकाबला, उनका पराक्रम देख ब्रिटिश संसद ने कहा – पूरे ब्रिटेन और भारत को आप पर गर्व है

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3 मिनट पहले

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आज का इतिहास: 21 सिख सैनिकों ने 14 हजार पठानों से किया था मुकाबला, उनका पराक्रम देख ब्रिटिश संसद ने कहा – पूरे ब्रिटेन और भारत को आप पर गर्व है

नॉर्थ वेस्ट फ्रंटियर प्रोविंस का तिराह इलाका। अब ये जगह पाकिस्तान में है। करीब 6 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित इस इलाके में अंग्रेजों के 2 किले थे। ये किले गुलिस्तां और लॉक्हार्ट में थे। इन किलों के बीच में सारागढ़ी की चौकी थी।

अपने इलाके में अंग्रेजों की घुसपैठ स्थानीय पठान लोगों को पसंद नहीं आई थी। वे इन किलों से अंग्रेजों को भगाने के लिए हमले किया करते थे। अंग्रेजों ने लेफ्टिनेंट कर्नल जॉन हॉटन के नेतृत्व में 36 सिख रेजीमेंट की पांच कंपनियों को इस इलाके में तैनात कर रखा था। सारागढ़ी की कमांड हवलदार ईशर सिंह और 20 दूसरे जवानों के जिम्मे थी।

12 सितंबर 1897 को 12-14 हजार पठानों ने दोबारा सारागढ़ी पर हमला किया। इन हजारों पठानों से निपटने के लिए चौकी में 21 सिख जवान मौजूद थे। हजारों की तादाद में पठानों को देखकर सैनिकों ने इसकी सूचना कर्नल हॉटन को दी। हॉटन उस समय लॉक्हार्ट के किले में थे। उन्होंने कहा कि वे इतने कम समय में कोई मदद नहीं पहुंचा पाएंगे।

21 सिख सैनिकों ने अकेले ही हजारों पठानों से लड़ने का फैसला किया। पूरा इलाका- ‘बोले सो निहाल, सतश्री अकाल’ के नारे से गूंज उठा।

21 सैनिकों ने 2 बार पठानों को पीछे खिसकने पर मजबूर कर दिया। पठान किले के भीतर घुसने में कामयाब नहीं हो पाए। आखिर में उन्होंने फैसला लिया कि किले की दीवार को तोड़कर अंदर घुसा जाएगा। सिखों के पास गोलियां खत्म हो गईं तो उन्होंने अपनी राइफलों में लगे संगीन से हमला करना शुरू कर दिया।

सारागढ़ी के सैनिकों की याद में अमृतसर में बनाया गया गुरुद्वारा।

सारागढ़ी के सैनिकों की याद में अमृतसर में बनाया गया गुरुद्वारा।

6 घंटे तक चले युद्ध में 21 सैनिकों ने 600 से ज्यादा पठानों को मार गिराया। हालांकि किले पर पठानों ने कब्जा कर लिया, लेकिन 1 दिन बाद ही अंग्रेजों ने पठानों से किले को वापस छुड़ा लिया। 2019 में आई अक्षय कुमार की फिल्म केसरी इसी युद्ध पर आधारित है।

1919: हिटलर की राजनीति में एंट्री

तानाशाह एडोल्फ हिटलर ने आज ही के दिन जर्मन वर्कर्स पार्टी की मीटिंग पहली बार अटेंड की थी। यहीं से उसे राजनीति में आने का शौक लगा और फिर उसने जो किया, उसने इतिहास को शर्मसार कर दिया।

कॉर्पोरल हिटलर को जर्मन वर्कर्स पार्टी की जासूसी का काम मिला था। 12 सितंबर 1919 को सादे कपड़ों में म्यूनिख के बियर हॉल में उसने पहली पार्टी मीटिंग अटेंड की। सभी वक्ताओं के बोलने के बाद हिटलर खड़ा हुआ और उसने सभी के साथ अपनी असहमति जताई।

हिटलर (सबसे दाएं) जर्मनी की आर्मी का भी हिस्सा रहा था।

हिटलर (सबसे दाएं) जर्मनी की आर्मी का भी हिस्सा रहा था।

राष्ट्रवाद के मुद्दे पर उसका भाषण इतना जबर्दस्त था कि उसे पार्टी का सदस्य बनने का आमंत्रण दिया गया। हिटलर दो साल में उसी पार्टी का सर्वेसर्वा बन गया। आगे चलकर इस पार्टी का नाम बदलकर नाजी पार्टी किया गया।

हिटलर की पार्टी ने पहले विश्व युद्ध के बाद जर्मनी में बढ़ी बेरोजगारी का मुद्दा उठाया। यहूदी-विरोधी भावनाओं को हवा दी। 1930 तक नाजी पार्टी जर्मनी में एक बड़ी ताकत बन गई और 1933 में हिटलर जर्मनी का चांसलर बन गया। तानाशाही चरम पर थी और कहते हैं कि अपनी नाकामियों को छिपाने के लिए ही हिटलर ने दुनिया को दूसरे विश्व युद्ध की चौखट पर पहुंचाया।

1959: चांद पर पहुंचा था रूस

सोवियत संघ ने आज ही के दिन 1959 में लूना-2 स्पेसक्राफ्ट लॉन्च किया था। चांद की दिशा में लॉन्च किया गया ये दूसरा स्पेसक्राफ्ट था। ये सौरमंडल के किसी भी ग्रह-उपग्रह को छूने वाला दुनिया का पहला मानवनिर्मित ऑब्जेक्ट था। पहले इसे 9 सितंबर को लॉन्च किया जाना था, लेकिन तकनीकी दिक्कत की वजह से लॉन्च को टालना पड़ा।

इस तरह दिखता था लूना-2।

इस तरह दिखता था लूना-2।

इस स्पेसक्राफ्ट में ऐसी व्यवस्था थी कि वह सोडियम गैस छोड़ता चल रहा था, ताकि उसे स्पेस में ट्रैक किया जा सके। यह भी पता चला कि गैस का स्पेस में बर्ताव क्या होता है। 33.5 घंटे की उड़ान के बाद यह स्पेसक्राफ्ट चांद की सतह पर क्रैश हो गया।

1944: जर्मनी में दाखिल हुई थी अमेरिकी सेना

आज ही के दिन 1944 में अमेरिकी सेना ने पहली बार जर्मनी में प्रवेश किया। दूसरे विश्वयुद्ध के खत्म होने के बाद से जर्मनी यूरोप में अमेरिका की रक्षा रणनीति का महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है। युद्ध खत्म होने के बाद जर्मनी पर 10 साल तक मित्र देशों का कब्जा रहा। अमेरिकी सेना उसका ही हिस्सा थी। हालांकि, सेना की संख्या धीरे-धीरे कम होती गई।

12 सितंबर के दिन को इतिहास में इन घटनाओं की वजह से भी याद किया जाता है…

2007: रूस ने नॉन न्‍यूक्‍लियर वैक्‍यूम बम का परीक्षण किया।

2006: सीरिया की राजधानी दमिश्क में अमेरिकी दूतावास पर हमला।

2004: उत्तर कोरिया ने अपना परमाणु कार्यक्रम जारी रखने का निर्णय लिया।

2002: नेपाल में माओवादियों ने संघर्ष विराम का प्रस्ताव रखा।

2001: अमेरिका ने आतंकवाद के खिलाफ जंग का ऐलान किया।

2000: न्यूयॉर्क में अंतरराष्ट्रीय आयुर्वेद सम्मेलन प्रारंभ।

1998: कुआलालंपुर में 16वें राष्ट्रमंडल खेल शुरू।

1997: संयुक्त राष्ट्र के कार्यों की वार्षिक रिपोर्ट में 48 वर्ष बाद कश्मीर का जिक्र पहली बार नहीं किया गया।

1997ः 43.5 करोड़ मील लंबी यात्रा के बाद ‘मार्स ग्लोबल सर्वेयर’ यान मंगल की कक्षा में पहुंचा।

1991: अंतरिक्ष शटल एसटीएस 48 (डिस्कवरी 14) का प्रक्षेपण हुआ।

1966: भारतीय तैराक मिहिर सेन ने डार्डानेलेस जलडमरूमध्य को तैरकर पार किया।

1928ः फ्लोरिडा में भीषण तूफान से 6000 लोगों की मौत।

खबरें और भी हैं…

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