आज का इतिहास: 125 साल पहले हुई थी हिन्दुस्तान में सिनेमा की शुरुआत, लोगों ने एक रुपए में टिकट खरीदकर देखी थी पहली बार फिल्म

आज का इतिहास: 125 साल पहले हुई थी हिन्दुस्तान में सिनेमा की शुरुआत, लोगों ने एक रुपए में टिकट खरीदकर देखी थी पहली बार फिल्म

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15 मिनट पहले

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7 जुलाई 1896 को मुंबई के वॉटसन होटल में 6 फिल्में दिखाई गईं। टिकट की कीमत एक रुपए थी। एक अखबार ने इस घटना को सदी का चमत्कार बताया। इस घटना को भारतीय सिनेमा का जन्म माना जाता है। फिल्म दिखाने वाले थे ऑगस्टे लूमियर और उनके भाई लुई लूमियर। 14 जुलाई को उन्होंने बॉम्बे के नॉवेल्टी थिएटर में फिल्मों की दूसरी स्क्रीनिंग रखी, जिसमें कुल 24 फिल्में दिखाई गईं।

अगले साल एक फोटोग्राफर हीरालाल सेन ने कलकत्ता के स्टार थिएटर में एक शो के अलग-अलग फोटो खींचकर एक फिल्म बनाई जिसे ‘फ्लॉवर ऑफ पर्शिया’ नाम दिया गया। 1899 में एच.एस. भाटवडेकर ने मुंबई के एक कुश्ती मुकाबले को शूट कर फिल्म बनाई। इसके बाद अलग-अलग लोग फिल्म कला में हाथ आजमाने लगे। 18 मई 1912 को दादा साहब तोरने ने श्री पांडुलिक नाम से फिल्म रिलीज की।

अभी तक किसी भारतीय ने फुल लेंथ फीचर फिल्म नहीं बनाई थी, लेकिन 1910 से दादा साहेब फाल्के इस काम में लग चुके थे। उन्होंने ‘द लाइफ ऑफ क्राइस्ट’ देखकर फैसला ले लिया था कि वो भी भारतीय पौराणिक कथाओं पर फिल्म बनाएंगे। दादा साहेब लंदन गए और वहां से फिल्म बनाने के लिए जरूरी तकनीक सीखीं और सामान लेकर आए।

बॉम्बे की वॉटसन होटल, जहां फिल्में दिखाई गई थीं।

बॉम्बे की वॉटसन होटल, जहां फिल्में दिखाई गई थीं।

तमाम कठिनाइयों के बाद आखिरकार करीब 7 महीने बाद दादा साहेब की फिल्म बनकर तैयार हुई और इसे राजा हरिश्चंद्र नाम दिया गया। 3 मई 1913 के दिन इस फिल्म को रिलीज किया गया। भारतीय सिनेमा इतिहास की ये पहली फीचर फिल्म थी।

दुनिया की बात करें तो 28 दिसंबर 1895 को लूमियर ब्रदर्स ने ही पहली बार पेरिस के ग्रांड कैफे में बड़े पर्दे पर मूवी स्क्रीनिंग की थी। इस 50 सेकंड की फिल्म में लूमियर फैक्ट्री में काम करने वाले वर्करों को दिखाया गया था। देखने वाले अचंभित रह गए और इस तरह सिनेमा का जन्म हुआ।

1928: पहली बार हुई थी स्लाइस्ड ब्रेड की बिक्री

आज ही के दिन 1928 में अमेरिका के ओहायो में एक बेकरी ने स्लाइस्ड ब्रेड बेचने की शुरुआत की थी। लोगों को ये आइडिया इतना पसंद आया कि दूर-दूर से लोग इस बेकरी पर ब्रेड खरीदने आने लगे। दरअसल उससे पहले ब्रेड स्लाइस्ड फॉर्म में नहीं आता था। आपको पूरा का पूरा ब्रेड का टुकड़ा खरीदने के बाद घर पर काटना पड़ता था।

अमेरिकन इंजीनियर ओटो फ्रेडरिक रोहवेडर ने एक मशीन बनाई थी जिसके जरिए ब्रेड को स्लाइस में आसानी से काटा जा सकता था। कहा जाता है कि साल 1912 से ही ओटो एक ऐसी मशीन बनाने की कोशिश कर रहे थे जो ब्रेड को आसानी से काट सके।

इसके लिए उन्होंने अपने ज्वैलरी स्टोर को बेच दिया था और एक सिक्योरिटी गार्ड का काम करने लगे, लेकिन 1917 में उनकी फैक्ट्री में आग लगने से उनके मशीन का ब्लूप्रिंट और प्रोटोटाइप दोनों जलकर खाक हो गए। ओटो को सारा काम फिर से शुरू करना पड़ा।

ओटो फ्रेडरिक रोहवेडर की बनाई ब्रेड कटिंग मशीन।

ओटो फ्रेडरिक रोहवेडर की बनाई ब्रेड कटिंग मशीन।

1924 तक ओटो इस तरह की एक मशीन बनाने में कामयाब हो गए थे, लेकिन अब एक नई परेशानी थी। दरअसल स्लाइस्ड ब्रेड जल्दी खराब हो रहे थे। ओटो ने इस परेशानी से निपटने के लिए इसी मशीन में ऑटोमैटिक पैकिंग की सुविधा भी जोड़ी। 1927 में वो इस तरह की मशीन बनाने में कामयाब हुए और अब ब्रेड मशीन से पैक होकर ही बाहर आने लगे। 1928 में मिसूरी की एक बेकरी को उन्होंने अपनी पहली मशीन बेची।

आज ही के दिन इस बेकरी ने पहली बार स्लाइस्ड ब्रेड बेचने की शुरुआत की। अमेरिकियों को ये आइडिया बेहद पसंद आया। बाकी बेकरियों से भी ओटो के पास इस तरह की मशीन खरीदने की डिमांड आने लगी। हालांकि दूसरे विश्वयुद्ध की वजह से ओटो कंगाल हो गए और उन्हें अपनी फैक्ट्री बेचनी पड़ी।

7 जुलाई के दिन को इतिहास में और किन-किन घटनाओं की वजह से याद किया जाता है…

2013: बिहार के बोध गया में महाबोधी मंदिर परिसर में सिलसिलेवार 10 धमाके हुए।

2008: काबुल में भारतीय दूतावास पर आतंकी हमले में 41 लोगों की मौत हुई और 141 लोग घायल हुए।

2007: न्यू 7 वंडर्स फाउंडेशन ने दुनिया के 7 अजूबों की घोषणा की। भारत के ताजमहल को भी इस लिस्ट में शामिल किया गया।

2005: लंदन में 4 आत्मघाती हमलों में 700 से ज्यादा लोग घायल हुए और 39 लोगों की मौत हुई।

1999: कारगिल युद्ध के दौरान परमवीर चक्र विजेता कैप्टन विक्रम बत्रा शहीद हो गए।

1982: ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ के बकिंघम पैलेस के उनके बेडरूम में एक आदमी घुस आया था।

1930 में आज ही के दिन अमेरिका में कोलोराडो नदी पर हूवर डैम बनाने का काम शुरू हुआ था। ये अमेरिका का सबसे ऊंचा डैम है। पहले इसका नाम बोल्डर डैम था लेकिन बाद में अमेरिकी राष्ट्रपति हर्बर्ट हूवर के नाम पर डैम का नाम हूवर कर दिया गया।

1930 में आज ही के दिन अमेरिका में कोलोराडो नदी पर हूवर डैम बनाने का काम शुरू हुआ था। ये अमेरिका का सबसे ऊंचा डैम है। पहले इसका नाम बोल्डर डैम था लेकिन बाद में अमेरिकी राष्ट्रपति हर्बर्ट हूवर के नाम पर डैम का नाम हूवर कर दिया गया।

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