आज का इतिहास: पाकिस्तान के पास कोई बड़ा शहर नहीं था, इसलिए रेडक्लिफ ने हिंदुओं की अधिक जनसंख्या के बाद भी लाहौर उसे दे दिया
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12 मिनट पहले
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भारत 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्र हुआ, लेकिन इसकी प्रक्रिया बहुत पहले शुरू हो गई थी। लॉर्ड माउंटबेटन ने 3 जून 1947 को भारत की आजादी का प्लान पेश किया था। उन्होंने फैसला भी सुना दिया था कि भारत आजाद तो होगा, पर वह दो हिस्सों में बंट जाएगा। इस प्लान को जवाहरलाल नेहरू और मोहम्मद अली जिन्ना स्वीकार कर चुके थे।
अब गोरों के लिए सबसे बड़ी चुनौती थी- बंटवारा। भारत में इतनी विविधता थी कि गोरों के लिए बंटवारा बहुत मुश्किल हो गया था। किस हिस्से को भारत में रखा जाए और किसे पाकिस्तान में दिया जाए, इसका जवाब इतना आसान न था। इतना ही तय हुआ था कि बंटवारा धर्म के आधार पर होगा। इसके बाद भी कई इलाके ऐसे थे, जहां हिन्दू-मुस्लिम आबादी लगभग बराबर थी।
तब ब्रिटिश सरकार ने सिरिल रेडक्लिफ नाम के एक वकील को बंटवारे की जिम्मेदारी सौंपी। इससे पहले न तो रेडक्लिफ भारत आए थे और न ही उन्हें भारत की विविधता के बारे में कोई जानकारी थी। माउंटबेटन ने इसी वजह से उन्हें इस काम के लिए चुना भी था। उन्हें उम्मीद थी कि रेडक्लिफ ही निष्पक्षता के साथ विभाजन का काम कर सकते हैं।
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सिरिल रेडक्लिफ।
रेडक्लिफ को दो सीमा आयोगों का अध्यक्ष बनाया गया- एक बंगाल और एक पंजाब। उनकी सहायता के लिए दो हिन्दू और दो मुस्लिम वकीलों को भी नियुक्त किया गया। 8 जुलाई 1947 को रेडक्लिफ भारत आए। बंटवारे जैसी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी के लिए उन्हें सिर्फ 5 हफ्ते का समय मिला था। उन्हें 15 अगस्त तक दोनों देशों का बंटवारा करना था।
बंगाल और पंजाब दोनों ही इलाकों में आबादी के लिहाज से विभाजन एक बड़ी चुनौती थी। दोनों ही इलाकों में हिन्दू-मुस्लिम की आबादी लगभग बराबर थी। रेडक्लिफ ने 12 अगस्त 1947 तक अपना काम पूरा कर लिया था। 17 अगस्त 1947 को रेडक्लिफ ने विभाजन रेखा को सार्वजनिक किया। भारत को बांटने वाली इस रेखा को ही रेडक्लिफ लाइन कहा जाता है।
लाहौर में उस समय हिंदू आबादी अधिक थी। किसी को नहीं लग रहा था कि रेडक्लिफ लाहौर पाकिस्तान को दे देंगे। जब इस फैसले पर सवाल उठे तो रेडक्लिफ ने एक इंटरव्यू में बताया कि वे लाहौर को भारत में रख चुके थे, लेकिन तब पाकिस्तान के हिस्से में कोई बड़ा शहर नहीं आया था। इस वजह से उन्होंने लाहौर पाकिस्तान को देने का फैसला किया।
भारत-पाकिस्तान की सीमा तय होने के बाद ही पलायन का दौर शुरू हुआ। करोड़ों लोगों ने पाकिस्तान से भारत और भारत से पाकिस्तान पलायन किया। विभाजन का काम पूरा करने के बाद रेडक्लिफ अगले ही दिन ब्रिटेन लौट गए और कभी नहीं लौटे।
1998: क्लिंटन ने मोनिका लेविंस्की से संबंधों की बात मानी
1998 में 17 अगस्त को ही अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने व्हाइट हाउस इंटर्न मोनिका लेविंस्की से अपने अंतरंग रिश्तों को स्वीकार किया था। मोनिका लेविंस्की ने खुलासा किया था कि नवंबर 1995 से मार्च 1997 के दौरान उनके और क्लिंटन के बीच 9 बार शारीरिक संबंध बने थे। हालांकि, यह रजामंदी से हुआ था।
क्लिंटन पर राष्ट्रपति पद के दुरुपयोग के आरोप लगे। शुरुआत में तो क्लिंटन इन आरोपों से मुकर गए थे, पर 17 अगस्त 1998 को उन्होंने मोनिका के साथ अपने संबंधों की बात सार्वजनिक रूप से स्वीकार कर ली थी।
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व्हाइट हाइस में मोनिका लेविंस्की के साथ बिल क्लिंटन।
इस खुलासे में सरकारी कर्मचारी लिंडा ट्रिप की भूमिका अहम थी। लिंडा ने ही दोनों के बीच संबंधों का खुलासा किया था। लिंडा ने क्लिंटन और मोनिका के बीच फोन पर की गई बातचीत रिकॉर्ड कर ली थी। क्लिंटन पर महाभियोग भी चला, लेकिन उनकी कुर्सी बच गई। इसके बाद भी वे दूसरे कार्यकाल के लिए राष्ट्रपति चुने गए।
1978: अटलांटिक सागर के पार पहली हॉट एयर बैलून यात्रा
1978 में आज ही के दिन पहली बार हॉट एयर बैलून से अटलांटिक सागर को पार किया गया था। बेन अब्रुजो, मैक्सी एंडरसन और लेरी न्यूमैन ने 5,021 किलोमीटर का सफर पूरा कर इतिहास रचा था। इस बैलून को डबल ईगल नाम दिया गया था।
इससे पहले 17 बार हॉट एयर बैलून अटलांटिक सागर को पार करने की कोशिशें की जा चुकी थीं, लेकिन एक बार भी सफलता नहीं मिली थी। इन प्रयासों में 7 लोगों की मौत भी हो गई थी। सितंबर 1977 में बेन अब्रुजो और मैक्सी एंडरसन ने अटलांटिक सागर को पार करने का प्रयास किया था, लेकिन तेज हवाओं की वजह से उनका प्रयास भी सफल नहीं रहा। दोनों ने दोबारा प्रयास करने की ठानी। इस बार उन्होंने अपने साथ पायलट लेरी न्यूमैन को भी रखा।
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5,021 किलोमीटर के सफर के दौरान आसमान में उड़ता डबल ईगल सेकेंड।
11 सितंबर 1978 को तीनों ने अमेरिका के मैन से उड़ान भरी। शुरुआती चार दिनों का सफर आसान था, लेकिन 16 अगस्त को खराब मौसम की वजह से बैलून 20 हजार फीट की ऊंचाई से गिरकर 4 हजार फीट तक आ गया था। तीनों पायलट ने बैलून को दोबारा सुरक्षित ऊंचाई तक पहुंचाया। 17 अगस्त को तीनों ने पेरिस में उसी जगह पर लैंड किया, जहां 1927 में चार्ल्स लिंडनबर्ग ने न्यूयॉर्क से पेरिस की सोलो प्लेन फ्लाइट के बाद लैंड किया था।
17 अगस्त के दिन को इतिहास में और किन-किन महत्वपूर्ण घटनाओं की वजह से याद किया जाता है…
1999: तुर्की में 7.4 तीव्रता के भूकंप से 17 हजार से भी ज्यादा लोगों की मौत हुई।
1988: पाकिस्तानी राष्ट्रपति जिया-उल-हक की एक विमान हादसे में मौत हो गई।
1970: सोवियत संघ ने वेनेरा-7 स्पेसक्राफ्ट को लॉन्च किया। 15 दिसंबर को इस स्पेसक्राफ्ट ने शुक्र ग्रह पर लैंडिंग की। किसी भी दूसरे ग्रह पर सॉफ्ट लैंडिंग करने वाले ये पहला स्पेसक्राफ्ट है।
1945: इंडोनेशिया ने नीदरलैंड से आजादी की घोषणा की।
1909: क्रांतिकारी मदनलाल ढींगरा को हत्या के मामले में फांसी दी गई।
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